Move to Jagran APP

फ्रैक्चर के मरीजों में दूर होगा संक्रमण का खतरा, KGMU के डॉक्टरों की उपलब्‍ध‍ि lucknow news

केजीएमयू के डॉक्टरों ने बायोमार्कर का लगाया पता। शोध में जल्द आएंगे नतीजे ऑपरेशन से पहले चलेगा पता।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 09:08 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 07:36 AM (IST)
फ्रैक्चर के मरीजों में दूर होगा संक्रमण का खतरा, KGMU के डॉक्टरों की उपलब्‍ध‍ि lucknow news
फ्रैक्चर के मरीजों में दूर होगा संक्रमण का खतरा, KGMU के डॉक्टरों की उपलब्‍ध‍ि lucknow news

लखनऊ, जेएनएन। फ्रैक्चर के मरीजों में संक्रमण फैलने का खतरा जल्द दूर होगा। केजीएमयू लखनऊ के डॉक्टरों ने ऐसे बायोमार्कर की पहचान कर ली है, जिससे संक्रमण का पहले ही पता चल जाएगा। जल्द ही इस बायोमार्कर पर शोध प्रारंभ होगा, जिसकी हरी झंडी एशिया पेसफिक एसोसिएशन ने दे दी है। दावा है, नतीजे आते ही फ्रैक्चर के मरीजों का ऑपरेशन आसान होगा। वे फेल नहीं होंगे और मरीजों का खर्च भी काफी हद तक घट जाएगा। 

loksabha election banner

केजीएमयू में प्रदेश का इकलौता पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक विभाग है। यहां के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय सिंह के मुताबिक, फ्रैक्चर के ऑपरेशन में संक्रमण बहुत बड़ी चुनौती होता है। अभी तक इन मरीजों में बुखार व सूजन के जरिए संक्रमण की पहचान की जाती है। यह लक्षण ऑपरेशन के तीन से चार हफ्ते में उभर कर आते हैं। ऐसे में मरीज में संक्रमण भयावह हो जाता है। लिहाजा ,ऑपरेशन फेल्योर का खतरा बढ़ जाता है। 

बायोमार्कर लेवल पर होगी स्टडी

डॉ. अजय ने बताया कि उन्होंने हाइपो थीसिस की। इसमें ब्लड में मौजूद बायोमार्कर एनसीडी-64 व थायरोडीन में ऑपरेशन के बाद बदलाव पाया गया। एंटीबायोटिक देने के बाद यह पांचवें दिन तक नॉर्मल हो जाते हैं। कई बार एंटीबायोटिक देने की वजह से मरीजों में बायोमार्कर का सही आकलन नहीं हो पाता है। मरीज धीरे-धीरे संक्रमण की चपेट में आ जाता है। ऐसे में इन बायोमार्कर पर गहन स्टडी की जाएगी। 

छुपा संक्रमण आएगा बाहर 

डॉ. अजय सिंह ने बताया कि ऑपरेशन के बाद हर मरीज को एंटीबायोटिक दी जाती है। इस दौरान जांच में मरीज का संक्रमण स्पष्ट नहीं होता है। बायोमार्कर लेवल पर शोध के बाद एंटीबायोटिक डोज के बावजूद 10 दिन के अंदर शरीर में संक्रमण फैलने की पहले जानकारी मिल जााएगी।

एक वर्ष चलेगा शोध

डॉ. अजय सिंह ने संबंधित प्रोजेक्ट पर रिसर्च के लिए आवेदन किया गया। एशिया पेसफिक एसोसिएशन ने हरी झंडी दे दी गई। तीन दिन पहले 15.5 लाख रुपये के बजट की मंजूरी मिल गई है। इस पर एक साल स्टडी की जाएगी।

मरीजों का खर्च घटेगा

यह शोध मरीजों के लिए फायदेमंद साबित होगा। कारण, फ्रैक्चर के बाद संक्रमण होने से इंप्लांटेशन असफल होने का खतरा रहता है। ऐसे में मरीज का इलाज पर खर्च किया गया धन बर्बाद हो जाता है। उसे दोबारा ऑपरेशन कराना होता है। शोध के बाद अस्पताल में मरीजों का ठहराव कम होगा। मरीज को बेवजह एंटीबायोटिक भी नहीं देनी पड़ेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.