टीईटी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शिक्षकों के साथ राज्य सरकार को भी राहत
हाई कोर्ट के 30 मई 2018 के फैसले को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट ने इससे प्रभावित होने वाले शिक्षकों के साथ ही राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को रद करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि टीईटी पास करने के बाद बीएड या बीटीसी की डिग्री हासिल करने वाले अभ्यर्थी भी सहायक शिक्षक बनने के पात्र हैं। हाई कोर्ट के 30 मई, 2018 के फैसले को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट ने इससे प्रभावित होने वाले शिक्षकों के साथ ही राज्य सरकार को बड़ी राहत दी है।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जिन अभ्यर्थियों ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पहले उत्तीर्ण की और बीएड/बीटीसी ट्रेनिंग बाद में पूरी की, उनकी नियुक्ति अवैध है, क्योंकि उनका टीईटी प्रमाणपत्र वैध नहीं माना जा सकता। 2011 से अब तक सरकार परिषदीय विद्यालयों में तकरीबन पौने दो लाख शिक्षकों की नियुक्ति कर चुकी है। बेसिक शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार तो हाई कोर्ट के निर्णय से इनमें से लगभग दो तिहाई की नौकरी पर तलवार लटक रही थी।
विवाद की शुरुआत परिषदीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में गणित और विज्ञान शिक्षकों के 29,334 पदों के लिए हुई भर्ती को लेकर हुई थी। इस भर्ती में चयनित होने से रह गए अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, यह दलील देते हुए कि सरकार ने उन अभ्यर्थियों को भी शिक्षक नियुक्त कर दिया जिनके बीएड/बीटीसी ट्रेनिंग के रिजल्ट टीईटी के परिणाम के बाद घोषित हुए। हालांकि इस मामले में अदालत में राज्य सरकार का तर्क था कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने टीईटी के लिए जारी दिशानिर्देश में कहा है कि जो अभ्यर्थी बीएड/बीटीसी ट्रेनिंग पास कर चुका है या कर रहा है, वह शिक्षक पात्रता परीक्षा में शामिल हो सकता है।
जब इस बारे में हाई कोर्ट ने एनसीटीई से पूछा तो उसने कहा कि दिशानिर्देश में जिस 'पर्सुइंग' (करते रहना) शब्द का उल्लेख है, उससे तात्पर्य 'लास्ट एग्जामिनेशन पर्सुइंग' यानी ट्रेनिंग पाठ्यक्रम का आखिरी (सेमेस्टर) इम्तिहान है। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने 30 मई, 2018 को फैसला सुनाया था। फैसले से 2011 के बाद से 2018 तक परिषदीय प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए हुईं विभिन्न भर्तियों के तहत चयनित अभ्यर्थियों में अधिकांश की नौकरी पर बन आई थी। फैसले से प्रभावित कुछ शिक्षकों ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी और शीर्ष अदालत ने विभिन्न पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।
यूपीटीईटी के मोर्चे पर भी राहत
शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद कक्षा एक से आठ तक की भर्ती के लिए टीईटी अनिवार्य है। इस क्रम में राज्य सरकार उप्र शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपीटीईटी) आयोजित करती है। यूपीटीईटी उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थी को सरकार इस आशय का प्रमाणपत्र देती है कि यह प्रमाणपत्र हासिल करने वाला ही शिक्षक नियुक्त हो सकता है। इस मामले में टीईटी को लेकर सवालिया निशान खड़े किए गए थे। यदि सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगा दी होती तो बीटीसी/बीएड करते हुए यूपीटीईटी उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थियों के प्रमाणपत्र भी अवैध हो जाते। सरकार को पहले बड़ी संख्या में इन प्रमाणपत्रों को निरस्त करना पड़ता जो कि अब नहीं करना पड़ेगा।