परिवार दिवस : संयुक्त परिवार, समझौता छोटा; खुशियां अपार
रिश्तों की डोरी से बंधा स्नेह और विश्वास का बंधन। साथ मिलकर बांटते सुख-दुख एक दूसरे की जरूरतों का रखते ख्याल।
By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 15 May 2019 01:36 PM (IST)Updated: Wed, 15 May 2019 01:36 PM (IST)
v style="text-align: justify;">लखनऊ, जेएनएन। सुख जो परिवार में है, वो कहीं और नहीं। घर में वट वृक्ष सरीखे बुजुर्गों का सानिध्य छोटों में संस्कारों के बीज बोता है। अनुशासन लाता है। बात संयुक्त परिवार की हो तो रिश्तों की डोरी से बंधा स्नेह और विश्वास का बंधन और भी खास हो जाता है। तब समझौता छोटा और खुशियां अपार हो जाती हैं। शहर में ऐसे ही कुछ संयुक्त परिवार हैं, जो एक दूसरे की जरूरतों का ख्याल रखते हुए कई वर्षों से साथ हैं। आज एकल परिवार के चलन के बीच एकता के सूत्र में बंधे ये संयुक्त परिवार खास हैं।
साथ चलेंगे, साथ बढ़ेंगे (सदस्य : 43)
खुद के साथ छोटा का समझौता न केवल आपको बड़ा फायदा देता है बल्कि आपके कुनबे में एकता और भाईचारे को बढ़ावा भी मिलता है। सब मिलकर साथ चलेंगे तो हर काम आसान हो जाता है। यह कहना है कि 43 सदस्यों वाले परिवार को एक सूत्र में बांधने वाले कुर्सी रोड के गुडंबा गांव निवासी राजेश बाबू मिश्र का।
खुद के साथ चार भाइयों के परिवार और सभी के मिलाकर 19 बच्चों वाले इस परिवार की चर्चा आसपास न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। उनका कहना है कि बड़े भाई के निधन के बावजूद उनके परिवार को कभी इसका अहसास नहीं होने दिया। सभी भाइयों की बहुओं के बीच किसी बात को लेकर कभी कुछ होता है तो सभी खुद को छोटा दिखाने और माफी मांगने में तनिक भी संकोच नहीं करती हैं। सभी की बहुएं भी आ गई हैं।
विकास के साथ संस्कार भी जरूरी
राजेश बाबू मिश्र का कहना है कि विकास के साथ संस्कार भी जरूरी है। हम आधुनिकता के भंवर में जरूर फंसे हैं, लेकिन बच्चों में संस्कार लाने की जिम्मेदारी परिवार का हर सदस्य निभाता है। त्योहार पर पत्नी शशिलता मिश्र सभी के लिए कपड़ों का इंतजाम करने की जिद करने लगती हैं। सभी बच्चे अपनी डिमांड को उनके पास दर्ज कराते हैं और फिर एक साथ खरीदारी होती है। जिस दुकान पर जाते हैं वह भी हैरान होने के साथ ही छूट भी देने को तैयार हो जाता है। सभी की पसंद का खास ख्याल रखा जाता है।
एक साथ बनता है खाना
43 लोगों का खाना एक साथ एक ही रसोई में बनता है, लेकिन कभी यह अहसास नहीं हुआ कि किसी को भोजन बनाने में परेशानी हो। घर की बड़ी महिलाओं के निर्देशन में छोटी बहुएं भोजन बनाती हैं। मंडी से सस्ती सब्जी लाने से लेकर अन्य सामानों के लाने की जिम्मेदारी एक सदस्य पर रहती है। वह अन्य सदस्यों के साथ समन्वय बनाकर सामान लाने का काम करता है।
भोजन के लिए होती है वोटिंग
राजेश बाबू मिश्र का कहना है कि बड़े सदस्य छोटों की पसंद का खास ध्यान रखते हैं। जैसे कोई बच्चा पूड़ी-सब्जी बनाने की बात करता है तो कुछ दाल-चावल खाने की बात करते हैं। इसके बाद फिर वोटिंग होती है जिस पर ज्यादा वोट पड़ता है बस वही बन जाता है। हारने वाला भी खुश रहता है क्योंकि दूसरे दिन उसकी पसंद का ही भोजन बनता है। बस ऐसे ही छोटे-छोटे समझौते के साथ एकता की डोर बनी रहती है।
हम साथ-साथ हैं... (सदस्य : 24)
नाका हिंंडोला, गुरुद्वारा रोड पर एक परिवार के 24 सदस्य स्नेह और विश्वास की डोर से वर्षों से बंधे हैं। 1960 में हरियाणा से लखनऊ आए महावीर प्रसाद अग्रवाल ने यह बना बनाया घर लिया था। महावीर प्रसाद के तीन भाइयों का नाम स्व. गोपी चंद्र, स्व. ओम प्रकाश और स्व. राजकुमार है। वर्तमान में महावीर प्रसाद के बेटे नरेंद्र कुमार पत्नी अनीता, दीपक पत्नी स्वीटी, स्व. गोपी चंद्र अग्रवाल के बेटों स्व. सुनील कुमार पत्नी अलका अग्रवाल के बेटे विकास पत्नी कोमल अग्रवाल, पंकज अग्रवाल पत्नी रेखा अग्रवाल का परिवार रहता है। साथ में स्व. ओम प्रकाश अग्रवाल की पत्नी विमला और स्व. राजकुमार अग्रवाल पत्नी शारदा का परिवार रह रहा है।
परिवार में कई बेटियां विदा हुईं तो कई घर की लक्ष्मी बनकर आईं। बड़े-बड़े आयोजन आसानी से निपट जाते हैं। परिवार के सदस्य ही सारा काम कर लेते हैं। बिना अतिरिक्त आर्थिक बोझ के सारे विवाह संस्कार संपन्न हुए।
घर पर ही मिल जाते दोस्त
काव्या परिवार की सबसे छोटी सदस्य हैं। इसके बाद तनुष और अन्य बच्चे हैं। घर पर ही सब दोस्तों की तरह खेलते हैं। साथ ही बड़ों के साये तले इनमें संस्कार पल्लवित होते हैं।
पढ़ाई में मिलती मदद
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही परिवार की युवा सदस्य सुरुचि कहती हैं, सबके साथ रहने से पढ़ाई और कॅरियर में भी बहुत मदद मिलती है। ट्यूशन पर खर्चा भी नहीं होता। बड़े शिक्षक की भूमिका भी निभाते हैं।
एकता की ताकत (सदस्य : 25)
चित्रगुप्तनगर वार्ड के पूर्व पार्षद हरसरन लाल गुप्ता अपने चार भाइयों और उनके परिवार के साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं। सुख-दुख के साथ ही और खुशी के पलों को मिल बांटकर जीने वाले यह परिवार सुभाषनगर ही नहीं आसपास के इलाकों के लोगों को भी एकता की प्रेरणा देता है। हरसरन लाल गुप्ता ने बताया कि भाई स्वदेश गुप्ता का छह सदस्यीय परिवार रहता है तो मनोज गुप्ता के पांच, नरेश गुप्ता व पंकज के चार-चार सदस्य एक साथ रहते हैं। उनके दो बेटे व बहू भी एक साथ रहते हैं। 25 सदस्यों के परिवार में कभी भी मनमुटाव नहीं होता है। सभी एक दूसरे के सम्मान के साथ ही सहयोग देते हैं। महिलाएं मिलकर खाना बनाती हैं और सभी लोग एक साथ भोजन करते हैं। जन्मदिन से लेकर शादी की सालगिरह हो, बच्चे का नामकरण हो या फिर मुंडन संस्कार। सभी लोग एक साथ रहते हैं। सभी लोग एक साथ भोजन करते हैं और डाइनिंग हाल व डाइनिंग टेबल भरा रहता है।
पिता ने रखी संयुक्त परिवार की नींव
हरसरन लाला गुप्ता ने बताया कि पिता रामआसरे गुप्ता ने संयुक्त परिवार की नींव रखी थी। उनके पांच भाइयों का परिवार एक साथ रहता था और बड़े होने के नाते मुझे यह जिम्मेदार मिली और मेरी कोशिश रहती है कि सब लोग एक साथ रहें। घर में एक वाहन संयुक्त रूप से प्रयोग होता है जबकि सबका अपना अलग-अलग वाहन भी है। कोई भी निर्णय मिलकर लिया जाता है।
निमंत्रण का रखते हैं ध्यान
रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां जब सपरिवार का निमंत्रण आता है तो जाने से पहले काफी सोचना पड़ता है कि एक साथ सब लोग जाएंगे तो बुलाने वाला क्या सोचेगा? क्योंकि बुलाने वाले को पता ही नहीं होता है कि उनकी फैमिली में 25 लोग हैं। ऐसे में कोशिश करते हैं कि कुछ लोग ही दावत में जाएं, जिससे उसे परेशानी न हो। करीबी रिश्तेदारों के यहां ही सब लोग जाते हैं।
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