Move to Jagran APP

देश में लगभग 40 फीसद बच्चे घर में ही होते हैं चोटिल

40 फीसद बच्चों को घर में लगती है चोट। छोटे बच्चे गिरने से और जलने से सबसे ज्यादा होते हैं चोटिल।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 14 May 2019 07:02 PM (IST)Updated: Wed, 15 May 2019 08:03 AM (IST)
देश में लगभग 40 फीसद बच्चे घर में ही होते हैं चोटिल
देश में लगभग 40 फीसद बच्चे घर में ही होते हैं चोटिल

लखनऊ, जेएनएन। एक सर्वे के अनुसार देश में लगभग 40 फीसद बच्चे घर में ही चोटिल हो जाते हैं। इसमें गिरने से लेकर बर्न के मामले शामिल होते हैं। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार नौ फीसद बच्चे घर में जल जाते हैं। वहीं पांच फीसद बच्चे ऊंचाई से गिरने पर चोटिल हो जाते हैं। इसके लिए अभी तक सरकार की ओर से कोई जागरुकता कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है। यह जानकारी डॉ.राम मनोहर लोहिया संस्थान में बालरोग विशेषज्ञ डॉ.दीप्ति अग्रवाल ने फोरेंसिक मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित सीएमई में दी। 

prime article banner

डॉ.दीप्ती ने बताया कि नवजात से लेकर पांच वर्ष की आयु के बच्चे सबसे ज्यादा घर में ही चोटिल होते हैं। घर में गिरकर चोटिल होने वाले पांच फीसद बच्चों में 60 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। यह सभी चीजें ऐसी हैं जिन्हें रोका जा सकता है। इसके लिए भारत सरकार को पहल करनी चाहिए। 

घर में लगाएं स्मोक अलार्म

जलने से बचने के लिए घर में स्मोक अलार्म लगाए, बिजली के स्विच कवर्ड लगाएं, सीढिय़ों पर रैलिंग लगाएं, किचन एरिया सेपरेट हो, विंडों में गार्ड लगाएं, बच्चों को वॉकर पर न छोड़ें। 

15 से 18 वर्ष की आयु में सबसे ज्यादा इंजरी होती है।

बच्चों की पहुंच से दूर रखें सामान 

मेडिकल कॉलेज बांदा के प्रिंं‍स‍िपल डॉ.मुकेश यादव ने बताया कि अगर बच्चा घर में कुछ उल्टी सीधी चीज खा लेता है तो उसे तुरंत किसी अच्छे नजदीकी चिकित्सीय सेंटर ले जाना चाहिए। इसके अलावा छोटे बच्चों को ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। घर में किसी भी तरह की ऐसी चीज नहीं रखनी चाहिए जो उसके हाथ तक पहुंचे। यह है टॉयलेट क्लीनर, डिटरजेंट, ड्रग्स, एल्कोहल, लेड के टॉयज, जंक फूड आदि। इसके अलावा मैकेनिकल चीजें जैसे, कूलर, पंखा आदि। 

रैपर लेकर जाएं 

डॉ.मुकेश ने बताया कि अगर बच्चा उल्टी कर रहा हो, पेट में दर्द हो, सांस लेने में दिक्कत हो, रो रहा हो, ऐसे में तुरंत उसे हॉस्पिटल लेकर जाना चाहिए। इसके अलावा अगर कोई दवा का रैपर आसपास रखा हो या कोई भी ऐसी चीज जो बच्चे के आसपास दिख रही हो जिसे उसने खाई हो सकती है। उसे तुरंत साथ लेकर जाना चाहिए। बदायूं मेडिकल कॉलेज के डॉ.एके सिंह ने कहा कि हमारे यहां कोई भी पॉयजनिंग इंफोरमेशन सेंटर नहीं है, जो फोरेंसिक लैब है वो भी पूरी तरह से अपडेटेड नहीं है। न ही कोई टॉक्सिकोलॉजी का हेल्पलाइन नंबर है। 

यूपी में सबसे ज्यादा चाइल्ड एब्यूज के मामले

टीएसएम मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ.राजेश चतुर्वेदी ने बताया कि 

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) वर्ष 2017, 18 के आंकड़ों के अनुसार देश में हर साल लगभग दो लाख चाइल्ड एब्यूज के मामले आते हैं। वहीं प्रदेश में बाल अपराध के 34,000 के मामलों में 4,194 मामले केवल चाइल्ड एब्यूज के आते हैं। 

78 फीसद मामलों में जानने वाले करते हैं चाइल्ड एब्यूज

डॉ.चतुर्वेदी ने बताया कि चाइल्ड एब्यूज के 75 फीसद मामले घर के अंदर के या जानने वाले करते हैं। वहीं 34 फीसद लोग अंजान होते हैं। बच्चों को स्कूल में और घर में गुड टच और बेड टच के बारे में बताना चाहिए। 12 से 14 वर्ष की आयु में चाइल्ड एब्यूज के मामले और 14 से 18 वर्ष की आयु में रेप के मामले सबसे ज्यादा होते हैं। सीएमई का उद्घाटन सेवानिवृत्त जिला जज विजय वर्मा, निदेशक डॉ.एके त्रिपाठी ने किया।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.