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यूपी में हर सल 11,500 महिलाएं 'मां' शब्द सुनने से पहले ही छोड़ देती हैं दुनियां

संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार यूपी में हर वर्ष 11500 प्रसूताओं की डिलीवरी के दौरान हो जाती है मौत।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sun, 12 May 2019 03:17 PM (IST)Updated: Tue, 14 May 2019 08:40 AM (IST)
यूपी में हर सल 11,500  महिलाएं 'मां' शब्द सुनने से पहले ही छोड़ देती हैं दुनियां
यूपी में हर सल 11,500 महिलाएं 'मां' शब्द सुनने से पहले ही छोड़ देती हैं दुनियां

लखनऊ [भाष्कर सिंह]। मां, शब्द वो अहसास है जो किसी भी पहली को पूर्णता दिलाता है। लेकिन हजारों महिलाएं यह शब्द सुनने से पहले ही दुनिया छोड़ देती हैं, इनमें से आधी की तो डिलीवरी के एक घंटे में ही मौत हो जाती है। कई बार अशिक्षा, अंधविश्वास और परंपरा के नाम दुर्भाग्यशाली नवजात अपनी मां को देख नहीं पाता है, तो कई बार समय परिजनों और डॉक्टरों को चंद पल भी नहीं देता है कि प्रसूता की जान बचाई जा सके।

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संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के आंकड़े डराने वाले हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में हर साल 60 लाख डिलीवरी होती हैं। इनमें से 68 फीसद अस्पतालों और मिड वाइफ की देखरेख में होती है, जबकि 32 फीसद घरों में दाइयों के हाथों। यूनिसेफ और भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक प्रति लाख में 201 प्रसूता डिलीवरी के बाद मर जाती हैं। इसमें से लगभग 46 फीसद प्रसूताएं डिलीवरी वाले दिन ही मर जाती हैं। यूनिसेफ के मुताबिक एक साल में अकेले यूपी में 11,500 प्रसूताएं डिलीवरी वाले दिन ही मर जाती हैं।

यूपी का हाल है बुरा

मेटेरनल मोरलिटी रेट (एमएमआर) के मामले में भारत बांग्लादेश (176 प्रति लाख) और इराक (50 प्रति लाख) जैसे गरीब व संकटग्रस्त देशों से भी मीलों पीछे हैं। यूनिसेफ के मुताबकि भारत में 33 हजार महिलाएं डिलीवरी के दिन ही मर जाती हैं। यूपी के आंकड़ें को देखें तो पूरे देश में होने वाली मौतों का एक तिहाई सिर्फ अकेले यूपी में होती हैं। ऐसे में एमएमआर के मामले में देश को स्विट्जरलैंड और न्यूजीलैंड जैसे शीर्ष देशों के बराबर खड़ा करना है तो यूपी की स्वास्थ सेवाओं में लंबी छलांग लगानी होगी।

लगाई है लंबी छलांग

पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश ने अस्पतालों में डिलीवरी और एमएमआर कम करने में लंबी छलांग लगाई है। 2005-06 के आंकड़ों के मुताबिक, सिर्फ 22 फीसद डिलीवरी अस्पतालों में होती थी, जबकि वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक 68 फीसद डिलीवरी अब अस्पतालों में होती है। इसी तरह 2005-06 में प्रसूताओं की मौत का आंकड़ा 285 प्रति लाख डिलीवरी से कम हो कर 201 प्रति लाख हो गया है।

इसलिए होती हैं इतनी मौतें

यूनिसेफ के कम्यूनिटी मेडिसिन के एक्सपर्ट और हेल्थ ऑफिसर डॉ. प्रशांत बताते हैं कि घरों में होने वाली डिलीवरी प्रसूताओं के लिए बेहद घातक हैं। अस्पतालों में भी प्रसूताओं की मौत होती हैं, लेकिन उनका फीसद बहुत कम है। घर में होने वाली प्रसूताओं की मौतों का फीसद बहुत ज्यादा है। इसका कारण है अत्याधिक रक्तस्नाव। वह बताते हैं कि रक्तस्नाव शुरू होने के एक घंटे के अंदर इलाज नहीं मिला तो प्रसूता के बचने की उम्मीद बहुत ही कम बचती है। यह महिलाओं का गोल्डन पीरियड होता है, जिसमें उनकी जिंदगी बचाई जा सकती है।

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