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Lok Sabha Election 2019: जहरीली हवाओं को भी बहा ले गई चुनावी बयार

हवा-हवाई हुआ प्रदूषण का गंभीर मुद्दा। मौत की वजह बन रहें हैं धूल के नन्हें कण।

By Edited By: Published: Sun, 21 Apr 2019 10:21 PM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 09:56 AM (IST)
Lok Sabha Election 2019: जहरीली हवाओं को भी बहा ले गई चुनावी बयार
Lok Sabha Election 2019: जहरीली हवाओं को भी बहा ले गई चुनावी बयार

लखनऊ [रूमा सिन्हा]। अमेरिका के हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट द्वारा हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार पीएम 2.5 (नन्हे श्वसनीय कण) से होने वाली असमय मौतों में भारत दूसरे नंबर पर है। यही नहीं, चिंताजनक तो यह भी है कि चीन जो फिलहाल विश्व में पहले स्थान पर है उसके मुकाबले भारत में बीते कुछ दशकों में इन मौतों में काफी तेजी से इजाफा हुआ है। हवा में मौजूद धूल के नन्हे श्वसनीय कणों (पीएम 2.5) की वजह से हर साल लाखों लोगों की जान जा रही है। दुनिया में पीएम 2.5 से होने वाली कुल मौतों में चौथाई से अधिक तो भारत में ही हैं। 

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बीते माह ग्रीन पीस और एयर विजुअल द्वारा जारी संयुक्त रिपोर्ट जारी हुई जिसमें दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की जो सूची जारी की गई। इसमें 15 शहर भारत के थे। इस सूची में उत्तर प्रदेश की राजधानी नौवें स्थान पर थी। आम लोगों की सेहत के नजरिए से खबर अत्यंत चिंताजनक  व महत्वपूर्ण थी, लेकिन हर बार की तरह एक बार फिर निरंतर जहरीली होती हवाओं से जुड़ी अत्यंत गंभीर खबर चुनावी बयार में कहीं उड़ गई। जैसी कि उम्मीद थी आरोप-प्रत्यारोप में फंसी राजनीति में वायु प्रदूषण का गंभीर मुद्दा किसी भी राजनीतिक दल को नहीं हिला पाया। 

कड़वी हकीकत यह है कि वायु प्रदूषण आज पांचवां सबसे बड़ा मृत्यु का कारण बन चुका है। क्रॉनिक ब्रांकाइटिस, अस्थमा, फेफड़ों के कैंसर जैसे रोगों से वर्ष 2010 में देश में छह लाख 20 हजार लोगों को असामयिक मृत्यु का शिकार होना पड़ा। चिंताजनक यह है कि वर्ष 2000 के मुकाबले यह आंकड़ा छह गुना ज्यादा है। विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2030 तक इसमें कई गुना इजाफे की उम्मीद है। 

दशकों से है समस्या
दिनोंदिन बढ़ते शहर में वायु प्रदूषण की समस्या कोई नई नहीं है। नब्बे के दशक में कोर्ट ने शहर के वायु प्रदूषण के मद्देनजर डीजल चलित टेंपो प्रतिबंधित कर दिया था। साथ ही सड़कों से अतिक्रमण हटाने व चौराहों को बड़ा करने, पार्किंग की व्यवस्था करने सहित कई आदेश जारी किए थे। यही नहीं, नियमित रूप से शहर की आबोहवा की नापजोख करने वाली वैज्ञानिक संस्था भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) के वैज्ञानिक भी दूषित होती हवा को नियंत्रित करने के लिए बीते एक दशक से निरंतर सिफारिशें दे रहे हैं। लेकिन न ही किसी राजनीतिक दल ने और न ही कार्यपालिका ने आम लोगों की सेहत से जुड़े इस गंभीर मसले पर ध्यान दिया। स्थितियां आज विस्फोटक हो चुकी हैं। वायु प्रदूषण की चर्चा आते ही लखनऊ का नाम स्वत: ही आ जाता है। बावजूद इसके शहरवासी जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।  

खतरे से अनभिज्ञ हैं सियासी दल
चिकित्सीय रिपोर्टों के अनुसार बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते लोग बीमार हो रहे हैं। खास बात यह है कि दूषित हवाएं अमीर-गरीब, आम-ओ-खास सभी के लिए बड़ा खतरा हैं, लेकिन शायद सियासी पार्टियां खुद को इससे ऊपर मानती हैं। यही वजह है कि आम लोगों की सेहत से सीधे सरोकार रखने वाले इस अहम मुद्दे पर चुप्पी साधे रहती हैं।  

यह स्थिति तब है जबकि लखनऊ सहित सूबे के लगभग सभी प्रमुख शहरों में फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले तत्व मानक से कई गुना अधिक पाए गए हैं। जाहिर है कि ऐसी हवा में सांस लेने के कारण फेफड़े छलनी हो रहे हैं। चिकित्सकों की मानें तो अगले वर्ष तक देश में दो करोड़ पांच लाख लोग क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की गिरफ्त में होंगे। 

वैज्ञानिक सिफारिशों पर अमल हो तो सुधरे हालात 

आइआइटीआर बीते एक दशक से ज्यादा समय से लखनऊ के एंवायरमेंट पर जारी रिपोर्ट में प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए सिफारिशें देता आ रहा है।

  • ट्रैफिक मैनेजमेंट सुधारा जाए।
  • सड़कों को अतिक्रमण मुक्त किया जाए।
  • जनजागरूकता के जरिए लोगों को वाहनों से होने वाले प्रदूषण के बारे जानकारी दी जाए 
  • वाहनों से प्रेशर हार्न निकलवाए जाएं। 
  • पार्किंग शुल्क बढ़ाया जाए जिससे लोग निजी वाहन का प्रयोग न करें।
  • बैटरी चलित वाहनों को प्रोत्साहित किया जाए।
  • पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ सुरक्षित किए जाएं।

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