पुलवामा हमले में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर मुजफ्फरनगर के BSA निलंबित
कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर वाट्सएप ग्रुप पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना मुजफ्फरनगर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी दिनेश कुमार यादव को महंगा पड़ा।
लखनऊ, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले पर सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट लिखने पर मुजफ्फरनगर के बीएसए को निलंबित का दिया गया है। डीएम मुजफ्फरनगर अजय शंकर पाण्डेय ने बीएसएस दिनेश कुमार यादव को निलंबित करने की सिफारिश की थी।
वाट्सएप ग्रुप पर आपत्तिजनक टिप्पणी करना मुजफ्फरनगर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी दिनेश कुमार यादव को महंगा पड़ा। जिलाधिकारी मुजफ्फरनगर अजय शंकर पाण्डेय की ओर से इसकी शिकायत किये जाने पर शासन ने बीएसए को निलंबित कर उनके खिलाफ अनुशासनिक जांच शुरू कर दी है। मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक को जांच अधिकारी बनाया गया है। निलंबित बीएसए को बेसिक शिक्षा निदेशक के शिविर कार्यालय से संबद्ध कर दिया गया है।
जिलाधिकारी अजय शंकर पाण्डेय ने शासन को पत्र लिखकर बताया कि बीएसए दिनेश कुमार यादव ने पीईएस (प्रांतीय शिक्षा सेवा) एसोसिएशन के नाम से बने वाट्सएप ग्रुप पर दो आपत्तिजनक टिप्पणियां की हैं। 19 फरवरी को सुबह 8.10 बजे उनकी पहली टिप्पणी में कहा गया है कि 'आप जैसे लोग रूम के अंदर रहकर बोलते हैं हिम्मत है तो गलत को गलत बोलकर दिखाओ। वाट्सएप पर उपदेश सबको अच्छा लगता है दम हो तो बाहर निकलो, जवानों पर अटैक कराया गया है, हुआ नहीं है।' वहीं सुबह 8.56 बजे दूसरी टिप्पणी में कहा गया है कि 'अभी लिख देंगे तो बहुत से उपदेश देने वाले ग्रुप छोड़कर भाग जाएंगे।' जिलाधिकारी ने पत्र में शासन को सूचित किया है कि दिनेश कुमार की टिप्पणी से गंभीर प्रतिक्रियाएं हुई हैं। शासन ने टिप्पणियों को पदीय दायित्वों का उल्लंघन व उप्र कर्मचारी आचरण नियमावली, 1956 का उल्लंघन माना है और उन्हें निलंबित कर दिया है।
अहम के भंवर में डूबे थे यादव
बीएसए मुजफ्फरनगर के सस्पेंशन का तत्कालिक कारण तो पुलवामा हमले पर उनकी अनर्गल टिप्पणी रहा, लेकिन इस सबके पीछे उनके अंतर्मन की नकारात्मक भावना को भी अहम माना जा रहा है। कारण कुछ भी रहा हो, आखिरकार बीएसए मुजफ्फरनगर अपने अहम के भंवर में डूब गए। बसपा सरकार में आगरा का बीएसए रहते हुए दिनेश कुमार यादव ने जिस तरीके और अंदाज में नौकरी की, योगी आदित्यनाथ सरकार में वही अंदाज उनकी बड़ी भूल साबित हुआ।
पुलवामा हमले पर की गई पोस्ट के तीन दिन के भीतर जो बात छनकर सामने आई, उससे जाहिर हुआ कि बीएसए ऊपर से सख्ती का दिखावा भर करते थे। उनका मकसद कुछ और ही था। सस्पेंशन के बाद बेसिक शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारी दबी जुबान में कह रहे हैं कि उनकी अशिष्टता और अभद्र व्यवहार से शिक्षक परेशान थे। वह सरकार और बेसिक शिक्षा के शासन स्तर पर बैठे वरिष्ठ अधिकारियों के बारे में भी टिप्पणी करने से नहीं चूकते थे। मृतक आश्रित की नौकरी देने के मामले में भी वह चर्चाओं में रहे। अंतरजनपदीय स्थानांतरण में जनपद में आए 121 शिक्षकों को जिले में पोस्टिंग दी गई। इन दोनों ही मामलों में बीएसए बदनामी से नहीं बच पाए।
डायट में काउंसिलिंग समिति ने जिले के एकल विहीन विद्यालयों में अध्यापकों को नियुक्ति दी थी। यह शिक्षक दुर्गम रास्तों से होकर विद्यालयों तक पहुंचते थे, इनमें महिला शिक्षकों की संख्या अधिक थी। इसके बाद शिक्षकों के सामने समस्या आई तो फिर तोल-मोल कर नई पोस्टिंग दे दी गई। यह बात भी किसी से छिपी नहीं रही कि नई पोस्टिंग देने में खूब खेल हुआ।
नेतृत्व पर सवाल खड़ा करने पर फंसे
बीएसए की गई टिप्पणी पर 'दैनिक जागरण' ने 18 फरवरी के अंक में विस्तृत समाचार प्रकाशित किया था। जिसके बाद विभिन्न संगठनों ने विरोध में धरना-प्रदर्शन कर बीएसए कार्यालय में तोडफ़ोड़ की थी।
जिस पर डीएम ने जांच बैठा दी थी। जांच रिपोर्ट पर शासन ने भी माना कि बीएसए दिनेश यादव को शब्दों और उसके भाव पर नियंत्रण रखा जाना आवश्यक था। शासन ने उनकी टिप्पणी को परिषदीय दायित्वों का उल्लंघन एवं उप्र. कर्मचारी आचरण नियमावली-1956 का स्पष्टतया उल्लंघन माना।