डॉक्टरों को छोटी सी इमरजेंसी ट्रेनिंग देकर 80 फीसद मरीजों को बचा सकते हैं मुसीबत से
सीने में चोट लगने से घायल सिर्फ 20 प्रतिशत को ही होती है जटिल सर्जरी की जरूरत। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाए तो न परेशान हों 80 फीसद मरीज।
लखनऊ, जेएनएन। गिरने से या धारदार हथियार से सीने में चोट लगने से घायल व्यक्तियों में से सिर्फ 20 प्रतिशत को ही जटिल सर्जरी की जरूरत होती है। 80 प्रतिशत मरीज सामान्य ढंग से ही ठीक हो सकते हैं। अगर सरकारी अस्पतालों में सभी डॉक्टरों को छोटी सी ट्रेनिंग दी जाए तो दूर-दराज के मरीजों को बेवजह ट्रॉमा सेंटर जाने की जरूरत न पड़े। यह विचार केजीएमयू के सर्जरी विभाग के प्रोफेसर और डीन पैरामेडिकल डॉ. विनोद जैन ने व्यक्त किए। सर्जरी विभाग के 107वें स्थापना दिवस समारोह के मौके पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यशाला में उन्होंने यह जानकारी दी।
प्रो. विनोद जैन ने बताया कि छोटी सी इमरजेंसी ट्रेनिंग सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को देकर मरीज का काफी पैसा व दौड़ भाग भी बचा सकते हैं। देश में हर साल ट्रॉमा के मरीजों पर जीडीपी का करीब तीन प्रतिशत खर्च होता है और हेल्थ केयर के लिए जो बजट मिलता है वह जीडीपी का 1.2 प्रतिशत ही है। ऐसे में डॉक्टरों को ट्रेनिंग देकर न सिर्फ ट्रॉमा सेंटरों से भीड़ कम की जा सकती है, बल्कि मरीजों को भी राहत दी जा सकती है।
एक ट्रॉमा डेथ से 40 लाइफ ईयर का नुकसान
ट्रॉमा में मौत ज्यादातर युवाओं के सड़क दुर्घटनाओं में चोटिल होने से होती है। ऐसे में एक ट्रॉमा डेथ से 40 लाइफ ईयर का नुकसान होता है। अगर ट्रॉमा डेथ को रोक लिया जाए तो युवा कम से कम आगे 40 साल तो और जीवन जी सकता है।