संवादी : युवा लेखक बोले : साहित्य कोई धर्म सभा नहीं...
नए लेखन में कितना दम सत्र में नई वाली नई हिंदी पर बात, वक्ताओं ने कहा, हम वो भाषा लिखेंगे जो अनपढ़ व्यक्ति को भी समझ आए।
लखनऊ, [दुर्गा शर्मा] । 'होंठ कटवा चुम्मा' और 'रगड़ के धुना' जैसी बातों के साथ कनपुरिया लफंगई और भागलपुर की रंगबाजी अब साहित्य का हिस्सा हो रही है। भाषा में ये नई वाली बात 20-35 साल उम्र के युवा लेखकों के कारण आई है। हिंदी के इस बदलते स्वरूप पर सवाल उठे तो युवा लेखक बोले, साहित्य कोई धर्म सभा नहीं है। समाज में गंदगी है तो साहित्य में उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति होनी चाहिए। हम वो भाषा लिखेंगे जो अनपढ़ व्यक्ति को भी समझ आए। फिर चाहे वो गाली ही क्यों ना हो...। 'नए लेखन में कितना दम' सत्र में युवा लेखक प्रवीण कुमार, भगवंत अनमोल, क्षितिज राय और सिनीवाली शर्मा ने अपनी बात रखी। सत्र का संचालन मनोज राजन त्रिपाठी ने किया।
मनोज राजन त्रिपाठी ने नई हिंदी 'एक्चुअली' है क्या? प्रश्न के साथ सत्र की शुरुआत की। इस पर 'छबीला रंगबाज का शहर' किताब लिख चुके प्रवीण कुमार ने कहा, आपने 'एक्चुअली' शब्द लगाकर जो प्रश्न किया, वही नई वाली हिंदी है। हर पांच-छह साल बाद नई भाषा विकसित होती है। भाव तो शाश्वत रहते हैं, पर भाषा बदलती रहती है। हर युग में लेखक के देखने का अपना तरीका होता है, जो लेखन में उतरता है। क्रिस्पी लैंग्वेज कह लें या नई वाली हिंदी, ये बाजार का भी खेल है।
'गंदी बात' किताब के लेखक क्षितिज राय ने कहा कि जिस समय और परिवेश के बारे में लिख रहे हैं, उसकी भाषा वैसी ही होगी। जयशंकर प्रसाद जी ने 'प्रकोष्ठ' शब्द का इस्तेमाल किया हम 'रूम' लिखते हैं। बावजूद इसके कहीं प्रकोष्ठ शब्द की जरूरत हुई तो हम उसका प्रयोग भी करेंगे। प्रकाशक की तरफ से भी भाषा और विषय को लेकर भी कोई सुधारवादी बात नहीं आती। डिस्ट्रीब्यूशन (वितरण) भी एक मुद्दा है।
हंस अकेला रोया किताब की लेखिका सिनीवाली शर्मा ने कहा कि गांव और शहर में बराबर रही हूं। पालन-पोषण साहित्यिक वातावरण में ही हुआ है। किसानें की पीड़ा को करीब से महसूस किया है। किसानों की बरसती आखों को देखा है, जिसे शब्दों में ढाला। दर्द जहां होगा उसे लिखूंगी, शैली पता नहीं।
हिंदी नहीं हिंदियां हैं...
प्रवीण कुमार ने कहा, मराठी, हैदराबादी और बिहार आदि की हिंदी अलग है। एक ही हिंदी के कई रंग हैं। यहां हिंदी नहीं हिंदियां हैं, यही विविधता ही हमारी पूंजी है। हिंदी पानी है, जिसमें सामग्री मिलाकर हम मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा कुछ भी तैयार कर सकते हैं। एक रूपी हिंदी के निर्माण से 'रीजनल टोन' मिट जाएंगे। बावजूद इसके भाषा की बुनियाद, उसके मानकीकरण से होती है। नींव की मूल चीजें हैं, उसे समझने की जरूरत है। हिंदी को हिंगलिश करना ठीक नहीं है।
... जब श्रोता को खटक गई बात
एक श्रोता को हिंदी को हिंदियां कहना खटक गया। वो बोले, हिंदियां शब्द कहां से आया? नई और पुरानी हिंदी का आधार क्या है? तब प्रवीण कुमार ने कहा, साहित्य को आदर्श के खांचे में देखने की जरूरत नहीं है। जैसे गंगा की कई सहायक नदियां हैं, वैसे ही हिंदी की कई भाषाएं हैं। संचालक मनोज राजन त्रिपाठी ने कहा, जैसे स्टेशनों होता है, वैसे ही हिंदियां भी है। जो भाषा सबको समझ में आए उसका प्रयोग होना चाहिए।
गाली ना लिखने का वादा नहीं
लेखन में गाली के प्रयोग ना करने की हामी की बात उठी, इस पर क्षितिज राय ने कहा कि गाली ना लिखने का वादा नहीं कर सकते। जैसा किरदार-माहौल होगा, वैसी भाषा लिखेंगे। भगवंत अनमोल ने कहा, मैं बात कहने का तरीका थोड़ा बदल सकता हूं, पर पूर्णतया नहीं। सिनीवाली शर्मा ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, अगर इसका ख्याल करके लिखेंगे तो अच्छे परिणाम मिलेंगे। गाली कहां और कितना उपयोग हो, यह समझना चाहिए क्योंकि हम समाज भी गढ़ रहे हैं। लेखकों की सामाजिक दायित्व भी होता है, इसका निर्वहन जरूरी है।
योग्यता नहीं सरलता चाहिए
भगवंत अनमोल ने एक किस्सा सुनाया कि एक योग्य गणित के शिक्षक का पढ़ाया हुआ समझ नहीं आता था। वही गणित जब एक अन्य शिक्षक द्वारा आसान भाषा में पढ़ाया गया तो समझ में आने लगा। योग्यता झाडऩे से बातें समझ नहीं आतीं, सरलता चाहिए। प्रवीण कुमार ने कहा कि जो क्लिष्ट हिंदी बोलकर खुद को श्रेष्ठ कहते हैं, वह भ्रम में हैं।
योग्यता नहीं सरलता चाहिए
भगवंत अनमोल ने एक किस्सा सुनाया कि एक योग्य गणित के शिक्षक का पढ़ाया हुआ समझ नहीं आता था। वही गणित जब एक अन्य शिक्षक द्वारा आसान भाषा में पढ़ाया गया तो समझ में आने लगा। योग्यता झाडऩे से बातें समझ नहीं आतीं, सरलता चाहिए। प्रवीण कुमार ने कहा कि जो क्लिष्ट ङ्क्षहदी बोलकर खुद को श्रेष्ठ कहते हैं, वह भ्रम में हैं।
हिंदी पाठकों की खरीद कम
प्रवीण कुमार बोले, पाठकों के दो क्लास हैं, अंग्रेजी और ङ्क्षहदी...। अंग्रेजी वाली क्लास की खरीद ज्यादा है। ङ्क्षहदी के लेखकों को पाठक नहीं मिलते। उनकी किताबें प्रकाशक के पास पड़ी रहती हैं। क्षितिज राय ने कहा कि आज लेखक केवल लेखन से अपनी जीविका नहीं चला सकता है। आप राइटर से ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकते।
हिंदी की अपनी ताकत है
प्रवीण कुमार ने कहा कि जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत और निराला जी ने ये दिखाया कि ङ्क्षहदी में महीन बातों को भी किस खूबसूरती से बयां कर सकते हैं। कोमल से कोमल भावों की व्याख्या ङ्क्षहदी में हो सकती है। भाषाओं की ट्रेनिंग देना भी हमारी जिम्मेदारी है, पर हर काल में एक तरह की भाषा नहीं हो सकती।