संवादी 2018 : परंपराएं शरीर का अंग हैं तो संस्कृति समूचा शरीर
संवादी के तीसरे सत्र में दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश के संपादक आशुतोष शुक्ल के साथ संस्कार और संस्कृति विषय पर नृत्यांगना सोनल मान सिंह ने बेबाकी से रखा अपना पक्ष।
लखनऊ, जेएनएन। पद्म विभूषण और भारत नाट्यम व ओडिसी जैसे शास्त्रीय नृत्य की पारंगत नृत्यांगना सोनल मानसिंह संस्कृति को अंग्रेजी के शब्द कल्चर से जोड़ कर देखने से कतई इत्तेफाक नहीं रखतीं बल्कि इसे लेकर उनका ऐतराज है। उनका कहना है कि कल्चर ठहरा हुआ शब्द है जबकि संस्कृति प्रवाहमान। संस्कृति आध्यात्मिक और मानसिक है जबकि कल्चर कृत्रिम। शुक्रवार को दैनिक जागरण संवादी के तीसरे सत्र में 'संस्कार और संस्कृति' विषय पर संपादक उत्तर प्रदेश आशुतोष शुक्ल के सवालों जबाब देते हुए उन्होंने विषय पर अपनी सोच को बड़ी बेबाकी से साझा किया।
अपने देश में एक से अधिक संस्कृतियों की चर्चा से विमर्श को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि परंपरा वह सुनहरा सूत्र है, जिससे विविध संस्कृतियां एक सी दिखती हैं। यह सूत्र बेहद खामोशी से देश की विविध संस्कृति को एक सूत्र में बांधे हुए है। चर्चा के क्रम में सोनल रूढ़ीवादिता और परंपरा का अंतर बताना भी नहीं भूलीं। रुढ़ीवादिता को एक खूंटे से बंधा होने की दलील देते हुए उन्होंने कहा कि परंपरा चलायमान है, इसलिए स्वस्थ है और यही स्वस्थ परंपरा संस्कृति का निर्माण करती है। उन्होंने मानव शरीर का उदाहरण देते हुए अपने पक्ष को पुष्ट करते हुए कहा कि परंपरा शरीर का अंग है तो संस्कृति समूचा मानव शरीर।
इस संस्कृतिरूपी शरीर को आक्रांताओं ने कई बार नष्ट करने की कोशिश की लेकिन मजबूत परंपराओं की नींव पर बने भारतीय संस्कृति के वटवृक्ष को वह हिला भी नहीं सके, नष्ट करना तो दूर की बात है। सवालों के जवाब के क्रम में उन्होंने इस बात को लेकर चिंता जताई कि आज की पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में शामिल होने के लिए संस्कृति में बदलाव चाह रही है और यही आक्रांता चाहते थे। ऐसे में नुकसान हमारा ही होगा। एक माल में क्रिसमस ट्री की जगह गदा रखने को लेकर सोनल के ट्वीट की चर्चा छेड़ते हुए जब सांस्कृतिक परिवर्तन की संभावनाओं पर उनसे सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि गदा शक्ति का प्रतीक है और हमें अपनी शक्ति के प्रतीक का संवद्र्धन करना ही चाहिए। नीरज सी चौधरी द्वारा उत्तर भारत के लोगों के लिए 'सांस्कृतिक सर्वहारा' शब्द का इस्तेमाल किए जाने को लेकर जब मंच से बात उठी तो उन्होंने साफ कह दिया कि हमारे समाज में जो क्षीणता जो आई है, यह उसी का नतीजा है।
यह तो हमें सोचना होगा कि हमें क्या लेकर चलना है और क्या छोड़ देना है। खूबियों को साथ लेकर चलना होगा और कुप्रथाओं को पीछे छोडऩे की आदत डालनी होगी। दुनिया से अपेक्षा रखने की जगह हमें खुद अपनी संस्कृति का सम्मान रखना होगा। यदि ऐसा नहीं करते तो हमें दूसरों से भी कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए। लोक संस्कृति को समझने की तरीके के सवाल पर सोनल मान सिंह ने कहा कि हमें अपनी शिक्षण प्रणाली में गुरु-शिष्य परंपरा को बढ़ावा देना होगा। आज गूगल ही आचार्य बन गया है, ऐसे में हम यह नई पीढ़ी से यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह लोक पंरपराओं को समझेगी।
गूगल से संस्कार सिंचित नहीं होगा, ऐसे में लोक संस्कृति को समझने की बात सोचना ही बेमानी है। जब तक यह मानसिक अराजकता का दौर खत्म नहीं होता, संस्कृति को संजोने की बात करने का कोई मतलब नहीं। आज के दौर में प्रणाम और चरण स्पर्श के बदलते चलन की चर्चा करते हुए उन्होंने नई पीढ़ी को घेरे में लिया। कहा कि अब तो इसके भी शार्टकट चलने लगे हैं। चरण स्पर्श चरण से ऊपर चढ़कर घुटनों तक सिमट कर रह गया है। विषय पर चर्चा के बाद श्रोताओं ने भी सोनल से सवाल कर अपनी जिज्ञासा शांत की। बरेली के डॉ. श्वेतकेतु ने मैकाले के उस कथन की याद दिलाई, जिसमें उसने कहा था कि अगर भाषा का परिवर्तन कर दिया जाए तो संस्कार और संस्कृति अपने आप समाप्त हो जाएंगी।
इसके जबाव में सोनल का कहना था कि संस्कृति मंत्रालय को जब से शिक्षण से अलग किया गया, संस्कृति विभाग नाच-गाने तक सिमट कर रह गई है। इलाहाबाद के पृथ्वी नाथ पांडेय ने जब सभ्यता और संस्कृति के संबंध जानने की कोशिश की तो सोनल ने उन्हें बताया कि सभ्यता वह है, जहां संस्कार पनपते हैं। लखनऊ की सतरूपा ने महिलाओं के लिए गॉड फादर की जरूरत पर सवाल किया तो सोनल ने गॉड फादर शब्द पर एतराज जताते हुए गॉड मदर की वकालत की और नारी शक्ति की उपयोगिता बताई। युवा पीढ़ी में शास्त्रीय नृत्य के प्रति घटते रुझान के सवाल पर उन्होंने कहा कि नृत्य हमारी संस्कृति का द्योतक है। कलाकार को सोचना होगा कि वह किस तरह से अपनी कला की पेशगी करे कि लोगों को उसमें रस आए।
सांस्कृतिक क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप पर खफा दिखीं सोनल
भगवाकरण की चर्चा के साथ 2004 में संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद 2014 में सांस्कृतिक बदलाव की चर्चा पर सोनल ने बड़ी बेबाकी से कहा कि 2004 में पहली बार सांस्कृतिक क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप किया गया। उस समय की यूपीए के सरकार ने ऐसे नौ लोगों की कुर्सी छीन ली, जो उनकी विचारधार के नहीं थे। कलाकार का अपना सम्मान होता है, स्वाभिमान होता है और ऐसे निर्णय कलाकारों को आहत करते हैं। इस क्रम में उन्होंने हाल में दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में बुलाए जाने के बाद प्रस्तुति न करने देने को लेकर दिल्ली की केजरीवाल सरकार की सोच पर भी सवाल उठाया।
दीपक का प्रकटाया जाता है जलाया नहीं
संस्कार और संस्कृति की चर्चा के दौरान सोनल मान सिंह ने 'दीपक जलाए जानेÓ जैसे वाक्य के प्रयोग पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने साफ किया कि लैंप जलाए जाते हैं, मुर्दे जलाए जाते हैं, दीप का प्राकट्य होता है। यह प्रथा हमारी संस्कृति से जुड़ी है। ऐसे में दीप प्रज्ज्वलन के लिए मोमबत्ती की बजाय अगर छोटे दीये का इ्रस्तेमाल किय जाए तो यह संस्कार सुरक्षित रहेगा।
सौभाग्य की बात है कुमकुम लगाना
बैंगलुरू में एक कार्यक्रम में स्वागत के दौरान एक महिला के माथे पर कुमकुम न होने पर सोनल के ट्वीट पर जब सवाल उठाया गया तो वह एक बार फिर संस्कार और परंपरा के रिश्तों को साफ करती दिखीं। कहा, कुमकुम एक आज्ञा चक्र है। यह आध्यात्मिक जीवन का अभिन्न अंग है। इसका सीधा संबंध सौभाग्य से है। ऐसे में यह जरूरी नहीं कि इसे केवल महिलाएं ही अपने माथे पर सजाएं। पुरुष भी इसे लगा सकता है क्यों कि सौभाग्य तो उन्हें भी चाहिए।