वर्ल्ड पोस्ट ऑफिस डे : दिल में छिपे जज्बात बयां करते थे खत
भावनाएं व्यक्त करने का बेहतरीन जरिया है चिट्ठी। टेक्नोलॉजी के दौर में खत्म हो रही चिट्ठी लिखने की परंपरा, लेकिन आज भी पत्र लेखन के शौकीन चिट्ठी लिखना पसंद करते हैं।
लखनऊ, (कुसुम भारती)। खत संवाद का जरिया नहीं बल्कि जज्बात भरे लफ्ज को सहेज कर रखने का माध्यम भी हैं। चिट्ठी लिखकर पोस्ट करना तो शायद आज बीते दौर की बात हो चुकी है। पर, आज भी पत्र लेखन के शौकीन चिट्ठी लिखना पसंद करते हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें डाक टिकट संग्रह करने का शौक है। पोस्टल सर्विस आज के दौर में किस तरह काम कर रही है, मोबाइल व डिजिटल युग के दौर में लोग कैसे इस सेवा का लाभ ले रहे हैं।
दो महीने पहले लिखी चिट्ठी
भारतीय थल सेना से सेवानिवृत्त, 78 वर्षीय कर्नल पुरुषोत्तम दास गुप्ता कहते हैं, पत्र लेखन पर सिर्फ यही कहूंगा कि चिट्ठी से उत्तम साधन कोई नहीं। इसमें भावनाएं, संवेदनाएं होती हैं। मन जब व्यथित या प्रसन्न होता है तो इंसान अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सिर्फ कागज व कलम का ही सहारा लेता है। मैं आज भी लिखता हूं। दो महीने पहले मैंने अपनी भांजी को जब चिट्ठी लगी और यह पूछा कि इसका जवाब दोगी, तो उसने कहा कि फोन पर तो बात हो ही जाती है। टेक्नोलॉजी का यह दौर भले दूरियां कम कर रहा है, पर भावनाओं को भी खत्म कर रहा है।
अब लिखती हूं ई-चिट्ठी
एक निजी कंपनी में सीनियर मैनेजर, सीमा भटनागर कहती हैं, मुझे लिखने का बहुत शौक है। जिसके चलते दोस्तों, रिश्तेदारों और बॉस को आज भी चिट्ठी लिखती हूं। कागज-कलम की मदद से लिखी जाने वाली मेरी ये चिट्ठियां अब ई-चिट्ठी में बदल गई हैं। मुझे याद है, मैंने आखिरी बार 1997 में अपनी कॉलेज फ्रेंड शालिनी परिहार को चिट्ठी लिखी थी। लखनऊ विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने के बाद उसका एडमिशन दिल्ली में हो गया था। तब हम दोनों एक-दूसरे को लैटर लिखते थे। बेसब्री से चिट्ठी व पोस्टमैन का इंतजार होता था। लैटर राइटिंग की वैल्यू आज भी है।
गांधी जी की पोती ने भेजी चिट्ठी
उप्र जल निगम से 2010 में एक्जीक्यूटिव इंजीनियर पद से सेवानिवृत्त हुए अशोक कुमार ने अपने घर में डाक टिकटों, पोस्टकार्ड व चिट्ठियों का संग्रहालय बना रखा है। वह कहते हैं, आज भी मेरे पास मेरे भाई के लिखे तीन पोस्टकार्ड सुरक्षित हैं, जिसमें उन्होंने पिताजी से अपने हॉस्टल के खर्च का ब्योरा लिखा है जो मात्र सात रुपये था। मैंने अपने माता-पिता, भाई-बहनों के लिखे खतों को आज भी सोने की गिन्नियों की तरह संभाल रखा है। करीब चार पहले महात्मा गांधी की पोती सुमित्रा गांधी कुलकर्णी ने मुझे एक चिट्ठी लिखी थी जो मेरे म्यूजियम में संरक्षित है।
स्टूडेंट ने लिखे तीन हजार से ज्यादा पत्र
भले चिट्ठियों का दौर खत्म हो गया है, पर ई-कॉमर्स का दौर बढ़ रहा है। समय के साथ डाक विभाग ने भी खुद को बदला है। डाक सेवाएं अब डिजिटल हो रही हैं। ऑनलाइन आर्डर के साथ कैश ऑन डिलीवरी भी अब होने लगी है। मुझे भी साहित्य में रुचि है और मेरा मानना है कि पत्र लेखन साहित्य की एक कला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में यह बात कही है कि जब लोग मुझे पत्र लिखकर अपनी समस्याएं या दूसरी जानकारी देते हैं तो अच्छा लगता है। महात्मा गांधी का एक पत्र 50 लाख रुपये में नीलाम हुआ था। क्या व्हाटसएप पर ऐसा संभव है, यहां तो लेटर डिलीट कर दिए जाते हैं। मगर, युवाओं को पत्र लेखन से जोडऩे के लिए डाक विभाग लगातार प्रयास कर रहा है।
क्या कहते हैं अधिकारी
ढाई आखर पत्र लेखन अभियान चल रहा है। सिर्फ लखनऊ में अब तक तीन हजार से भी ज्यादा स्टूडेंट ने पत्र लिखे हैं। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर डाक विभाग की ओर से दादा-दादी, माता-पिता को भी पत्र लिखने की प्रतियोगिता कराई जाती है। पत्र लेखन से हैंड राइटिंग अच्छी होती है। पत्रों को सहेजने की आदत बनती है। इनमें मौलिकता होती है।
केके यादव, निदेशक, डाक सेवाएं, लखनऊ परिक्षेत्र
मैं तो आज भी लिखता हूं चिट्ठी
जीपीओ में पोस्टकार्ड खरीदने आए अध्यापक शशिकांत शुक्ला कहते हैं, इलेक्ट्रॉनिक चकाचौंध व डिजिटल मीडिया के दौर में भले ही हम कितने आधुनिक क्यों न हो गए हों। पर, इस दौर में भी यदि किसी को हाथ से लिखा एक पत्र मिल जाए तो उसकी खुशी ही अलग होती है। मैं तो आज भी अपने खास लोगों को कभी-कभी पोस्टकार्ड और अंतरदेशीय पत्र लिखकर सरप्राइज देता हूं। पत्र में लिखे गए एक-एक शब्द में भावनाएं व संवेदनाएं छिपी होती हैं।