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Hello Doctor: महिलाओं को कई बीमारियां दे रहा PCOS, 15 से 20 फीसद हो रहीं बांझपन का शिकार

Hello Doctor स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. स्मृति अग्रवाल ने महिलाओं की परेशानी सुनी और उसके हल जवाब में दिए।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 10:45 AM (IST)Updated: Sat, 29 Feb 2020 08:34 AM (IST)
Hello Doctor: महिलाओं को कई बीमारियां दे रहा PCOS, 15 से 20 फीसद हो रहीं बांझपन का शिकार
Hello Doctor: महिलाओं को कई बीमारियां दे रहा PCOS, 15 से 20 फीसद हो रहीं बांझपन का शिकार

लखनऊ, जेएनएन। पॉलिसिस्टिक ओबेरियन सिंड्रोम (PCOS) बीमारी बढ़ रही है। कम उम्र में ही युवतियां इसकी गिरफ्त में आ रही हैं। इसमें ओवरी में पानी की छोटी-छोटी बूंदें इकट्ठा हो जाती हैं। अंडे का फूटना प्रभावित हो जाता है। ऐसे में महिलाओं में कोलेस्ट्रॉल, ब्लड शुगर व ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ने लगती है। लंबे समय तक अनदेखी कई गंभीर बीमारियों का कारण बन जाती हैं। गुरुवार को ‘हेलो डॉक्टर’ कार्यक्रम में क्वीन मेरी की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. स्मृति अग्रवाल मौजूद थीं। इस दौरान उन्होंने पाठकों के सवालों के जवाब भी दिए।

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Q: 55 वर्ष की हूं। कमर के नीचे के हिस्से से पैर तक दर्द बहुत होता है, क्या करें। (कलावती, रायबरेली)

A: मीनोपॉज के बाद यह समस्या होने लगती है। कैल्सियम की डोज लें। दुग्ध उत्पादों का सेवन करें। सुधार न होने पर डॉक्टर को दिखा लें।

Q: 48 वर्ष की हूं। कभी-कभार धड़कन बढ़ जाती है। उदासी रहती है, मन भारी रहता है। (अनीता, बहराइच)

A: यह मीनोपॉज की वजह से है। इस दरम्यान हार्मोनल बदलाव आते हैं। प्रतिदिन कुछ देर ध्यान लगाएं व व्यायाम करें। गेहूं, सोयाबीन के मिक्स आटा की रोटी खाएं। सुधार आ जाएगा।

Q: बीपी, थायरॉयड की समस्या है। तीन बच्चे खराब हो चुके हैं। (रचना, हरदोई)

A: घबराएं नहीं। पहले दोबारा सभी टेस्ट कराएं। इलाज कराएं। इस बार बीपी-थायरॉयड नियंत्रित होने पर ही प्रेग्नेंसी प्लान करें।

Q: 18 वर्ष की हूं। चार वर्ष से पीरियड अनियमित हो रहे हैं। (मुस्कान, गोंडा)

A: शुरुआत में एक-दो वर्ष पीरियड अनियमित होना कोई बात नहीं, मगर चार वर्ष हो जाए तो डॉक्टर को दिखा लें। अल्ट्रासाउंड व हार्मोनल टेस्ट भी करा लें।

Q: 50 वर्ष उम्र है। तीन वर्ष से जननांगों से सफेद पानी निकलने की दिक्कत है। (लीला, आलमबाग)

A: यह सर्वाइकल डिस्चार्ज है। इंफेक्शन हो सकता है। इसके अलावा ट्यूमर आदि की पुष्टि के लिए पैप स्मीयर की जांच करा लें।

Q: यूट्रस में सीवियर बर्निग होती है। दवा बंद होने पर दिक्कत फिर उभर आती है। (मीना, राजेंद्र नगर)

A: मीनोपॉज के बाद हार्मोनल बदलाव हो जाते हैं। एस्ट्रोजेन की डोज फिर चलेगी। डॉक्टर से परामर्श लेकर दवा लें।

Q: पहले पेशाब में जलन, हैवी पीरियड होते थे। अब चेहरे पर सूजन आ गई है। (सन्नो, अमेठी)

A: चेहरे पर सूजन के कारण, किडनी, हार्ट व हार्मोनल समस्या हो सकती है। डॉक्टर को दिखा लें।

Q: बच्चेदानी में सिस्ट है। पीरियड जल्दी और ब्लीडिंग अधिक होती है। (ममता, सीतापुर)

A: ब्लीडिंग अधिक हो रही है तो डीएनसी चेकअप कराएं। यह यूट्रस की जांच है। बीमारी की पुष्टि होने के बाद उपचार कराएं। देर न करें।

Q: ऑपरेशन से बेटी हुई थी। अब क्या दूसरा बच्चा सामान्य प्रसव से संभव है। (रंजीत, सीतापुर)

A: यह प्रेग्नेंसी की कंडीशन पर निर्भर करेगा। यदि नेचुरल दर्द शुरू हो जाता है, तो सामान्य प्रसव की संभावना बढ़ जाती है। पत्‍नी से कहें कि वह सुबह-शाम कम से कम 15 मिनट टहलें।

Q: गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड किस-किस समय कराना चाहिए। (मोहनी, हरदोई)

A: पहला 6 से 12 सप्ताह पर, दूसरा 18 से 20 सप्ताह पर, तीसरा 34 से 36 सप्ताह पर अल्ट्रासाउंड कराएं।

हाईरिस्क प्रेग्नेंसी के कारण

पहले बच्चे में गड़बड़ी, पहले बच्चे में सिजेरियन प्रसव, गर्भपात की समस्या, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट डिजीज, टीबी, एनीमिया, गर्भ में बच्चे का बड़ा होना-उल्टा होना, गर्भ में फ्ल्यूड का अधिक होना या कम होना।

ये भी जानें

  • 11 ग्राम से कम हीमोग्लोबिन माइल्ड एनीमिया
  • नौ ग्राम से कम हीमोग्लोबिन मॉडरेट एनीमिया
  • सात ग्राम से कम हीमोग्लोबिन एनीमिया।

बांझपन-गर्भपात का खतरा

पीसीओएस बीमारी से 15-20 फीसद महिलाएं बांझपन का शिकार हो रही हैं। वहीं 20 फीसद में गर्भपात की समस्या हो रही है। ये महिलाएं गले में काला पन आने पर सतर्क हो जाएं। यह पीसीओएस बीमारी का लक्षण है। वहीं गर्भधारण के वक्त व सात माह पर 75 ग्राम ग्लूकोज पीकर डायबिटीज की जांच कराएं। 140 से अधिक स्तर आने पर डॉक्टर की निगरानी में रहें।

प्लानिंग से करें प्रेग्नेंसी

प्रेग्नेंसी (गर्भावस्था) की पहले पूरी प्लानिंग कर लें। खासकर, मां-शिशु का जोखिम कम करने के लिए गर्भावस्था के पूर्व रक्त, थायरॉयड, शुगर, ब्लड प्रेशर, वायरल मार्कर टेस्ट कराएं। इससे बीमारी को नियंत्रित कर जोखिम कम किया जा सकेगा। इसके बाद प्रसव पूर्व की सभी समय-समय पर जांच अनिवार्य है। ऐसे में जच्चा-बच्चा दोनों का जीवन खुशहाल होगा।


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