KGMU : कोरोना पीड़ित 11 साल के बच्चे की खून की नसें फटीं, डॉक्टरों ने बचाई जान
KGMU 11 वर्षीय गंभीर बच्चा भर्ती किया गया। जांच में कोराना पाया गया। रक्तस्राव के चलते बच्चे की जिंदगी खतरे में पड़ी जिनकी मरम्मत कर बच्चे की जान बचाई। बड चिआरी सिंड्रोम से निकला पीड़ित। कोविड अस्पताल में पहली इंडोस्कोपी।
लखनऊ, जेएनएन। 11 वर्षीय बच्चे को खून की उल्टियां हो रही थीं। ऐसे में परिवारजन उसे केजीएमयू लेकर आए। यहां जांच में कोरोना की पुष्टि हुई। लिहाजा, बच्चे को कोविड अस्पताल के पीडियाट्रिक आइसीयू में शिफ्ट किया गया। रक्तस्राव के चलते बच्चे की जिंदगी खतरे में पड़ गई। गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी की टीम ने तत्काल इंडोस्कोपी की। इसमें खून की नसें फटी मिलीं, जिनकी मरम्मत कर बच्चे की जान बचाई।
गत सोमवार को केजीएमयू में सुलतानपुर निवासी 11 वर्षीय गंभीर बच्चा भर्ती किया गया। उसमें जांच में कोराना पाया गया। खून की कई उल्टी होने से बच्चे का बीपी लो हो गया। देखते ही देखते वह शॉक में चला गया। बेहोशी की हालत में उसे कोविड अस्पताल के पीडियाट्रिक आइसीयू में शिफ्ट किया गया। मगर, उसमें रक्तस्राव होने के कारणों की पड़ताल नहीं हो सकी। ऐसे में कुलपति ले. जनरल डॉ. विपिन पुरी ने गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग की टीम को अलर्ट किया। कोविड अस्पताल में इलाज कर रहे डॉ. संजीव वर्मा ने गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुमित रूंगटा से बच्चे की रिपोर्ट साझा की। ऐसे में पहले बच्चे को तत्काल दो यूनिट ब्लड चढ़ाने का फैसला किया गया। वहीं, खून की उल्टी रोकने के लिए दवा दी गई। मरीज में बीपी में सुधार होने पर रक्तस्राव के पड़ताल के लिए इंडोस्कोपी करने का फैसला किया गया।
आहार नली के नसें मिलीं रेप्चर
डॉ. सुमित रूंगटा के मुताबिक बच्चे की हालत गंभीर देख इंडोस्कोपी टीम तैयार की गई। इसमें डॉ. कमलेंद्र वर्मा, डॉ. गुलाम अख्तर, टेक्नीशियन जितेंद्र, अनिकेत ने पीपीई किट व अन्य सुरक्षा प्रोटोकॉल को अपनाया। इसके बाद मुंह मार्ग से आहार नली के जरिए इंडोस्कोपी की। इसमें आहार नली के ऊपर खून की नसें फटी (रेप्चर) पाई गईं। इनकी बाइंडिंग कर दुरुस्त कर दिया गया। वहीं, अंदर जमे रक्त को भी साफ कर दिया गया। बच्चे की हालत अब ठीक है।
कैसे फटीं नसें, कम उम्र में लिवर सिरोसिस
डॉ. सुमित रूंगटा के मुताबिक, जांच में बच्चा 'बड चिआरी सिंड्रोम' से पीड़ित पाया गया। इसमें लिवर से हृदय को जाने वाली खून की नसें ब्लॉक हो जाती हैं। ऐसे में लिवर पर प्रेशर बढ़ जाता है। लिहाजा, लिवर खून की आपूर्ति के लिए दूसरी नसों का निर्माण कर लेता है। यह नसें लिवर के आस-पास व आहार नली पर बनती हैं। मगर, नई बनीं नसें काफी कमजोर होती हैं। यह रक्त का फ्लो सहन नहीं कर पाती हैं। ऐसे में फट जाती हैं। वहीं , लिवर का फंक्शन भी गड़बड़ा जाता है और उसमें सिरोसिस हो जाता है। दावा है कि शहर के कोविड अस्पतालों में कोरोना मरीज की पहली इंडोस्कोपी व बाइंडिंग की गई है।