कई चुनौतियाँ है नये डीएफओ के सामने
ललितपुर ब्यूरो : जनपद में भरी पड़ी अकूत वन सम्पदा की सुरक्षा और संरक्षण के लिए महोबा से स्थानान्तरि
ललितपुर ब्यूरो :
जनपद में भरी पड़ी अकूत वन सम्पदा की सुरक्षा और संरक्षण के लिए महोबा से स्थानान्तरित होकर आये नवागन्तुक प्रभागीय निदेशक सामाजिक वानिकी (डीएफओ) ईश्वर दयाल को कड़े कदम उठाने होंगे। जंगल और जंगली जानवरों की सुरक्षा के साथ-साथ अवैध खनन व कटान पर भी अंकुश लगाना होगा। इसके लिए अधीनस्थों के साथ मिलकर संयुक्त रणनीति बनानी होगी, तभी जंगल की विरासत को सहेजकर सँवारा जा सकेगा।
बुन्देलखण्ड के अन्तिम छोर पर स्थित इस जनपद में लगभग 75 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में जंगल है। इस जंगल को दो उप प्रभाग ललितपुर और महरौनी के साथ-साथ 8 वन रेन्ज ललितपुर, मड़ावरा, गौना, बार, जखौरा, माताटीला, तालबेहट, महरौनी में भी बाँटा गया है। जनपद की सीमा में बेतवा नदी के पुल झरर घाट से प्रवेश करते ही हरा भरा जंगल अगुवानी करता है। पेड़ पौधे, नदियाँ, हरे भरे पहाड़, इस जनपद की शान है। तीन ओर से पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से घिरे इस जनपद के सीमावर्ती इलाकों के जंगल अपनी विभिन्न विशेषताओं के लिए जाने जाते है। मध्य प्रदेश के सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, शिवपुरी, अशोकनगर, दतिया आदि जनपदों की सीमायें लगी हुई है। इन जिलों के गाँव व कस्बों तक जाने के लिए यहाँ के जंगल से भी रास्ते है। जनपद के जंगल में बाघ, तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा, जंगली कुत्ता, बन्दर, राष्ट्रीय पक्षी मोर, खरगोश, हिरण, चीतल, साँभर, चिंकारा, हिल पाइथन प्रजाति के अजगर, आठ प्रजाति के दुर्लभ विषैले साँप, मगरमच्छ, चार प्रकार के गिद्ध, सैकड़ों प्रकार के दुर्लभ पक्षी पाये जाते है। यहाँ के जंगल में कई ऐसे जंगली जानवर व पक्षी है, जो दुर्लभ और संरक्षित है, लेकिन वे यहाँ खूब पाये जाते है। यही वजह है कि प्रकृति और वन्य जीव प्रेमी इन जानवरों को देखने के लिए यहाँ खिंचे चले आते है। जंगल में सागौन, शीशम, खैर, छेवला, महुआ आदि कई प्रकार के इमारती पेड़, तो वहीं सैकड़ों प्रकार की दुर्लभ जड़ी बूटियाँ पायी जाती है। जंगल में अवैध खनन और कटान को रोकना वन अफसरों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। नवागन्तुक डीएफओ ईश्वर दयाल को अवैध खनन और कटान माफिया के नेटवर्क को तोड़ने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे, इसके लिए अपने अधीनस्थ व कर्मचारियों के साथ योजनाबद्ध तरीके से रणनीति बनानी होगी। साथ ही इस पर तत्परता से काम करना होगा। खनन और कटान के अलावा जंगली जानवरों के शिकार पर भी रोक लगाना बड़ी चुनौती है। सीमावर्ती इलाकों में मध्य प्रदेश के शिकारी भी सक्रिय रहते है। साथ ही स्थानीय शिकारी भी मूक जानवरों का शिकार करते है। शिकार पर सख्ती से रोक लगाने के लिए भी रणनीति बनानी होगी। भौगोलिक स्थिति के हिसाब से इस पर रोक लगाने में कई कठिनाइयाँ सामने आती हैं, लेकिन यदि दृढ़ निश्चय हो और योजनाबद्ध तरीके से काम किया जाये, तो कुछ भी असम्भव नहीं है। अगले माह होने वाले पौधारोपण कार्यक्रमों को पूर्ण कराने के लिए शासन की मंशा के अनुरूप काम करने होंगे।
विदित है कि जंगल में अवैध कटान और खनन में कुछ वनकर्मियों की भी संलिप्तता रहती है। कई मामलों में यह संलिप्तता उजागर भी हुई है, लेकिन इन पर कड़ी कार्यवाही न होने से इनके हौसले बुलन्द हैं। ऐसे लापरवाह व जंगल के दुश्मन बने अपने ही विभाग के कर्मियों के खिलाफ भी नए डीएफओ को कड़े कदम उठाने होंगे।
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बॉक्स में
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दूर करनी होगी दैनिक वेतनभोगियो की पीड़ा
वर्ष 2016-17 में हुए वृक्षारोपण स्थलों की सुरक्षा और देखभाल के लिए जनपद में लगभग 200 दैनिक वेतनभोगी सुरक्षा श्रमिक है। अप्रैल 2017 से मई 2018 के कुल 14 माह में 3 माह की ही वेतन इन सुरक्षा श्रमिकों को दी गयी है। शेष 11 माह की वेतन अब तक नहीं मिली है, ऐसे में ये दैनिक वेतनभोगी कर्मी आर्थिक तंगी के तौर से गुजर रहे है। इनकी समस्या को दूर करना बड़ी चुनौती है।
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कर्मचारियों और संसाधनों की कमी से जूझ रहा विभाग
वन महकमा कर्मचारियों व संसाधनों की कमी से जूझ रहा है। हाल ही में वन दरोगाओं व कर्मियों के स्थानान्तरण के बाद महकमें में कर्मियों की भारी कमी है। जिसके चलते जंगल के सुदूर व दुर्गम इलाकों की सुरक्षा करना बड़ी चुनौती बनी हुई है। नए डीएफओ को इस कमी को भी दूर करना होगा।
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महत्वपूर्ण है ललितपुर, गौना व मड़ावरा रेन्ज
सभी वन रेन्ज का अपना अलग महत्व है। वन और वन्य जीवों की दृष्टि से ललितपुर, गौना व मड़ावरा रेंज बेहद महत्वपूर्ण है। इन रेजों में जंगली जानवर तो है ही, जड़ी बूटियाँ भी भरी पड़ी है। इन रेजों में बाघ और तेंदुआ की दहाड़ भी सुनी जा सकती है, तो वहीं सैकड़ों प्रकार के पक्षियों की मधुर आवाज भी मन को प्रसन्नचित कर देती है। लखंजर, पापड़ा, गोठरा में भालू तो अमझराघाटी, गौना, महोली, देवगढ़, धौर्रा, रणछोर धाम क्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के गिद्ध पाये जाते है।
बार रेज में चंदन वन और केवड़ा के जंगल दुर्लभ और महत्वपूर्ण है। गोविन्द सागर बाध क्षेत्र में हिल पाइथन प्रजाति के अजगर, बेतवा में असंख्य मगरमच्छों की फौज भी वन विभाग की विरासत है, इसे सहेजना होगा।
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सीमावर्ती इलाकों में कड़ी चौकसी की जरूरत
मध्य प्रदेश सीमा से सटी ललितपुर, गौना, मड़ावरा, तालबेहट, बार, महरौनी, जखौरा, रेज अवैध खनन, कटान व जंगली जानवरों के शिकार के लिए सुर्खियों में बनी रहती है। यहाँ के जंगलों में सीमावर्ती मध्य प्रदेश के शिकारियों की सक्रियता भी रहती है। वहीं कटान और खनन माफिया की सक्रियता भी है। ऐसे में माफिया के नेटवर्क को तोड़ना डीएफओ को बड़ी चुनौती है। इसे रोकने के लिए सघन गश्त व चैकिंग अभियान को तेज करना होगा।