बंदिशों से सूना रहा, उम्मीदों से जीवट हूं.. मैं वट हूं
में लगा वट वृक्ष बहादुरनगर हनुमान मंदिर के पास लगा वट वृक्ष जंगली नाथ मंदिर परिसर का वट वृक्ष और शहर के अन्य कई पुराने वट वृक्ष भी इस बार वट सावित्री पूजन के साक्षी नहीं बन पाए। भले ही सुहागिनें इन वट वृक्षों पर विश्वास का धागा नहीं बांध पाई पर यह वृक्ष उम्मीदों के धागे से बंधे रहे।
लखीमपुर: दशकों से मजबूती से खड़ा, सबको अपनी छाया देता, आस्था का प्रतीक.. मैं वट हूं। हर बार से ज्येष्ठ मास की अमावस्या के उस एक दिन का मुझे इंतजार रहता है, जब सुहागिनें मेरे चारों ओर विश्वास का धागा लपेटकर मनुष्य और पेड़-पौधों के रिश्ते को मजबूती देती हैं। यह अमावस्या यानी वट सावित्री पूजन का शुभ दिन इस बार भी आया। सब कुछ पहले जैसा था। वही भुईफोरवा नाथ मंदिर का परिसर, वहीं खड़ा मैं, पर इस बार मंदिर के कपाट बंद थे। रात के दूसरे पहर से शुरू मेरा इंतजार सुबह होने के बाद भी खत्म नहीं हुआ। न तो सुहागिनें आईं और न ही मेरे इर्द गिर्द विश्वास का धागा लपेटा गया। कोरोना वैश्विक संकट की बंदिशों में जकड़ा मैं भी इस बार सूना ही रह गया, पर मानवता की रक्षा के लिए बरती जा रही सावधानियों और अनुशासन से उपजी उम्मीदों से जीवट हूं.. मैं वट हूं।
पूरे 12 घंटे चलती थी वट सावित्री पूजा
शहर के पौराणिक भुईफोरवा नाथ मंदिर में हर साल वट सावित्री पूजन के दिन हजारों सुहागिनों की भीड़ जुटती थी। मंदिर की महंत श्रीमती रामकली गोस्वामी ने बीते वर्षों की यादें ताजा करते हुए बताया कि रात के 1:00 बजे से ही यहां सुहागिनें जुटने लगती थीं और अगले दिन के 12-01 बजे तक वट सावित्री पूजन यहां चलता रहता था।
300 साल पुराना है मंदिर का वट वृक्ष
भुईफोरवा नाथ मंदिर परिसर में लगा वट वृक्ष तकरीबन 300 साल पुराना है। इतना ही पुराना मंदिर का भी इतिहास है। महंत श्रीमती रामकली गोस्वामी ने बताया कि जब से यह मंदिर है, तब से यह पुराना वट वृक्ष भी है।
डीसीएम से ले जाना पड़ता था धागा
मंदिर में कितनी बड़ी संख्या में सुहागिनें पूजन को आती थीं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वट वृक्ष पर लपेटा गया धागा प्रवाह करने के लिए ले जाने को डीसीएम लानी पड़ती थी। मंदिर के महंत अमित गोस्वामी ने बताया की हर वर्ष सुहागिनों के लिए शरबत की भी व्यवस्था की जाती थी।
उम्मीदों से बंधे रहे ये वट वृक्ष भी
पंजाबी कॉलोनी स्थित ऋषि आश्रम परिसर में लगा वट वृक्ष, बहादुरनगर हनुमान मंदिर के पास लगा वट वृक्ष, जंगली नाथ मंदिर परिसर का वट वृक्ष और शहर के अन्य कई पुराने वट वृक्ष भी इस बार वट सावित्री पूजन के साक्षी नहीं बन पाए। भले ही सुहागिनें इन वट वृक्षों पर विश्वास का धागा नहीं बांध पाई, पर यह वृक्ष उम्मीदों के धागे से बंधे रहे।