बीमार सेहत महकमा..सात साल से दिल के डॉक्टर की तलाश
थोड़ी मेहनत करके ठीक किया जा सकता है या कोई ऐसा मरीज जिसका समाज में थोड़ा असर है तो फिर जिला अस्पताल के डॉक्टर जरा भी लोड नहीं लेते और उसे रेफर कर देते हैं। ------------------------------------------------------- बनकर तैयार फिर भी बेकार दो सौ बेड का अस्पताल अब इसके लिए कौन जिम्मेदार है? माननीय से लेकर खुद सीएमओ साहब तक जनवरी के पहले ही सप्ताह में सीतापुर रोड पर बनकर तैयार खड़े जिस वातानुकूलित अस्पताल को शुरू किए जाने का दंभ भर रहे थे उसे भी शुरू नहीं किया जा सका। इस अस्पताल में महिला अस्पताल को शिफ्ट होने का तर्क भी दिया जा रहा था लेकिन ये सब केवल वादे ही रहे और दो सौ बेड का अस्पताल बनने के बाद भी आम आदमी के काम नहीं आ सका।
लखीमपुर: खीरी जिले में नेताओं व सरकार के दावों से बिल्कुल इतर सेहत महकमे की बिल्कुल बदरंग सी तस्वीर है। 45 लाख की आबादी के की सेहत को हर दिन दुरुस्त रखने वाले जिला अस्पताल की हालत तो देखिए कि यहां सात साल से हृदय विभाग में ताला लटक रहा है और दिल का डॉक्टर सरकार को ढूंढे नहीं मिल पा रहा। बात केवल इतनी ही नहीं। सरकार के दावों से इतर एक और सच्चाई भी स्वास्थ्य सेवाओं की है कि इनके पास जांच पड़ताल की मशीनें तो कई हैं लेकिन उनका इस्तेमाल नहीं होता या यूं कहें कि मरीजों को पैसा ही देना है तो उनको प्राइवेट पर यकीन ज्यादा है। जिले के सबसे बड़े सदर अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ भी ऊंट के मुंह में जीरा है और दवाइयां भी गाहे-बगाहे ही मिलती हैं। ये हाल तब है जब जिला अस्पताल में हर दिन दो हजार के करीब ओपीडी होती है और करीब पचास मरीज भर्ती होते हैं। ये आंकड़ा जिला अस्पताल का है मगर हैरत की बात ये है गांव देहात के सरकारी हालात इससे भी बुरे और बदतर हैं। कहीं मोमबत्ती की रोशनी में प्रसव हो रहा है तो कहीं एएनएम ही पूरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ही चलाती है। पेश है बीमार सेहत महकमे पर धर्मेश शुक्ला की खास रिपोर्ट:- इसलिए बाहर की जांच पर करते हैं भरोसा
ऐसा नहीं कि सरकार ने जिला अस्पताल को पैथालॉजी के संसाधन नहीं दिए। वह तो मिले लेकिन फ्री में होने वाली जांच के जब सुविधा शुल्क मांगे जाने लगे तो तीमारदारों ने बाहर से ही मरीज की जांच कराना मुनासिब समझा। कहने को तो टीएलसी, डीएलसी, शुगर, टीबी, एक्सरे, अल्ट्रा साउंड और सीटी स्कैन तक जिला अस्पताल में मौजूद है पर फिर भी जिला अस्पताल के इर्द-गिर्द खुले पैथालॉजी सेंटर पर हर दिन जिला अस्पताल के पचास से सौ मरीज जांच कराने को जाते हैं अब उनकी क्या मजबूरी है और बाहर की जांच पर जिला अस्पताल के डॉक्टर को इतना यकीन क्यों है ये तो धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर साहब ही बेहतर बता पाएंगे।
यहां हर चौथे मरीज को होना पड़ता है रेफर
ये जिला अस्पताल आने वाले मरीजों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा तो बेहतर है कि यहां हर चौथे मरीज को लखनऊ रेफर होने की सलाह डाक्टर आंख बंद कर दे देते हैं। इसे दूसरी भाषा में ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर मरीज जरा भी गंभीर है , उस पर थोड़ी मेहनत करके ठीक किया जा सकता है या कोई ऐसा मरीज जिसका समाज में थोड़ा असर है तो फिर जिला अस्पताल के डॉक्टर जरा भी लोड नहीं लेते और उसे रेफर कर देते हैं।
बनकर तैयार फिर भी बेकार दो सौ बेड का अस्पताल
अब इसके लिए कौन जिम्मेदार है? माननीय से लेकर खुद सीएमओ साहब तक जनवरी के पहले ही सप्ताह में सीतापुर रोड पर बनकर तैयार खड़े जिस वातानुकूलित अस्पताल को शुरू किए जाने का दंभ भर रहे थे उसे भी शुरू नहीं किया जा सका। इस अस्पताल में महिला अस्पताल को शिफ्ट होने का तर्क भी दिया जा रहा था लेकिन ये सब केवल वादे ही रहे और दो सौ बेड का अस्पताल बनने के बाद भी आम आदमी के काम नहीं आ सका।