विदेशी प्रजातियों के संक्रमण से तराई के पर्यावरण को खतरा
जैव विविधता के क्षरण में मुख्य भूमिका निभा रहे घुसपैठिए पौधे। विदेशी प्रजातियों के संक्रमण के कारण कृषि वानिकी तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में आ गया है।
लखीमपुर : वैसे तो तराई का यह इलाका अपने जैव विविधता के लिए बेहद समृद्ध है लेकिन, विदेशी प्रजातियों के संक्रमण के कारण कृषि, वानिकी तथा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में आ गया है। इनसे सबसे ज्यादा औषधीय गुणों वाले पौधे तथा जलीय वनस्पतियां प्रभावित हुई हैं।
पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर वनस्पतियों के संक्रमण को रोकने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं तैयार की गई तो तराई में तेजी से हो रहे जैव विविधता के क्षरण को रोक पाना मुश्किल होगा।
विदेशी प्रजातियां सड़कों के किनारे, बंजर भूमि, तालाबों-जलाशयों में पाई जाती हैं। परिणाम स्वरूप देसी वनस्पतियों, वन्यजीवों तथा जलीय जीवों के जीव पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। विदेशी प्रजातियां जहां उग आती हैं, वहां अपने समीप किसी दूसरे प्रजाति की घासों और पौधे को पूरी तरह नष्ट कर देती हैं। इनके कारण जलीय जीवों में मछली, कछुआ आदि जीव नदियों से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गए हैं। नर्सरियों में उगाए गए हैं विदेशी पौधे यूकेलिप्टस, सागौन, चितवन भी नर्सरियों में उगाए गए हैं। जबकि यूकेलिप्टस जलस्तर को नीचे खिसका देता है। चितवन का पौधा शोभाकार है लेकिन, सांस के मरीजों के लिए नुकसानदायक है। सागौन अपने नीचे किसी दूसरे पौध को उगने नहीं देता। इसलिए सागौन के जंगल में ही नई पौध का रोपण होता है। 173 विदेशी प्रजातियों का बढ़ रहा वर्चस्व विदेशी बबूल, गाजर घास, लेंटाना घास, बेशर्मा, जंगली तुलसी, गोंदी, कोगोन ग्रास, गंधेला, मदार, हुरहुर, धतूरा, जलकुंभी, वॉटर लेटूसी, सागौन, पिस्टिया जैसी कुल 173 ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी वजह से संक्रमण फैल रहा है। औषधीय प्रजातियों पर बढ़ रहा खतरा पहले सर्पगंधा, अश्वगंधा, छोटा गोखरू, वला, फरीद बूटी, चित्रक, लटजीरा, पुनर्नवा, भुई आंवला, मकोय, गिलोय, सहजन जैसे औषधीय पौधे आसानी से मिल जाते थे, लेकिन अब इन्हें काफी ढूंढना पड़ता है। विशेषज्ञ की सुनिए
पूर्व रेंज अफसर अशोक कश्यप कहते हैं कि इसके लिए विस्तृत कार्ययोजना तैयार करनी पड़ेगी। प्रयास करना पड़ेगा कि स्थानीय पौधों के लिए उपयुक्त माहौल तैयार पुनस्र्थापित किया जाए। जन जागरूकता महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। विलंब होने की दशा में इन प्रजातियों के दुष्परिणाम जैव विविधता को झेलना पड़ सकता है।