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आखिर कब थमेगी घाघरा, शारदा से हर साल होने वाली तबाही

लखीमपुर धौरहरा संसदीय क्षेत्र के धौरहरा विधानसभा क्षेत्र में घाघरा और शारदा नदियों का कहर सबसे बडा मुद्दा रहा है। खास बात यह कि बीते तमाम सालों में इसपर बातें तो बहुत हुईं लेकिन संजीदगी से काम नहीं हुआ। क्षेत्र के दर्जन भर गांव घाघरा की कटान से हर साल उजड़ते बसते हैं। हजारों लोग बेघर हैं जिनका सब कुछ नदी लील गई और सरकारों ने बातों के सिवाय कुछ ना दिया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 03 May 2019 09:44 PM (IST)Updated: Fri, 03 May 2019 09:44 PM (IST)
आखिर कब थमेगी घाघरा, शारदा से हर साल होने वाली तबाही
आखिर कब थमेगी घाघरा, शारदा से हर साल होने वाली तबाही

लखीमपुर : धौरहरा संसदीय क्षेत्र के धौरहरा विधानसभा क्षेत्र में घाघरा और शारदा नदियों का कहर सबसे बडा मुद्दा रहा है। खास बात यह कि बीते तमाम सालों में इसपर बातें तो बहुत हुईं, लेकिन संजीदगी से काम नहीं हुआ। क्षेत्र के दर्जन भर गांव घाघरा की कटान से हर साल उजड़ते बसते हैं। हजारों लोग बेघर हैं, जिनका सब कुछ नदी लील गई और सरकारों ने बातों के सिवाय कुछ ना दिया।

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हर साल जब बरसात का सीजन शुरू होता है तो क्षेत्र के दर्जन भर से ज्यादा गांवों की आबादी नया ठिकाना तलाश करने को मजबूर हो जाती है। उन दिनों घरों को तोड़ते हुए, छप्पर लादकर दूसरी जगह जाते हुए तमाम फोटो अखबारों में छपते रहे हैं, लेकिन सरकारों के कान पर कभी जूं नही रेंगी। अगर सरकारों ने कुछ किया भी तो अधिकारी उन योजनाओं को बीच में ही पचा गए। बीते साल बाढ़ राहत कार्यों का निरीक्षण करने मुख्यमंत्री खुद छह बार क्षेत्र में आए, लेकिन हर बार अफसरों ने उन्हें फाइलों पर गुलाबी मौसम दिखाकर लौटा दिया। एक बार भी मुख्यमंत्री सीधे बाढ़ और कटान से बर्बाद परिवारों से रूबरू नहीं हो सके। तेजी से कट रहे ईसानगर ब्लॉक के हटवा गांव में जाने का सीएम का प्रोग्राम लखनऊ से ही बना। प्रोटोकाल भी यही जारी हुआ कि सीएम हटवा गांव जाकर पीड़ित परिवारों से मिलेंगे, लेकिन ऐन वक्त पर रास्ता ना होने की बात कह कर सीएम को सिसैया के ओएनजीसी अस्पताल में सीमित कर दिया गया। यहीं पर अफसरों ने कुछ तथाकथित पीड़ितों को बुलाकर मुख्यमंत्री से राहत सामग्री के पैकेट बंटवा दिए। सीएम की फटकार भी जिम्मेदार लोग बेशर्मी से सह गए और कागजों पर युद्ध स्तर पर राहत कार्य चलता रहा। इतना ही नहीं, साहबदीनपुरवा गांव में नदी तटबंध से टकरा रही थी। इसकी शिकायत जब लोगों ने सीएम से की तो सिचाई विभाग ने कट रहे तटबंध की जगह पर दूसरी तरफ से वहीं तटबंध खोद कर मिट्टी डालनी शुरू कर दी। इसकी भी शिकायतें होती रहीं और शासन निर्देश देता रहा, लेकिन विभाग का यह काम नहीं रुका। आखिरकार जिसका डर था वही हुआ। नदी खोदे गए तटबंध को पार कर गांव में घुस गई। इलाके के लोगों को इन हालातों से गुजरे अभी साल भर नहीं हुआ है। लिहाजा डरावनी यादें जनता के जहन में अब तक हैं और संसदीय चुनावों में इनका असर साफ देखा भी जा रहा है।

यह गांव होते हैं हर साल तबाह

भदईपुरवा, सरैयांकलां, मिर्जापुर, मोचनापुर, हटवा, साहबदीनपुरवा, हुलासपुरवा, कबिरहा, राजापुर, रामनगर बगहा, बेलागढ़ी, ओझापुरवा, चिकनाजती, रैनी, समदहा, चहमलपुर आदि।

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