शहर की उल्ल नदी को है भगीरथ की तलाश
लखीमपुर शहर की लाइफ लाइन कहलाई जाने वाली उल्ल नदी को अब किसी भगीरथ की तलाश है जो इसे एक बार फिर से पुनर्जीवित कर सकें। प्रदूषण से ग्रस्त इस नदी का अस्तित्व अब खतरे में है। नदी के दोनों किनारे डलाव घर बन चुके हैं। इसमें मिलने वाले सैकड़ों नाले इसे इतना गंदा कर चुके हैं कि यह नदी खुद किसी नाले से कम नहीं लगती। पूरा पानी काला हो चुका है तैरती हुई जलकुंभी और पॉलीथिन इस नदी का जीवन बन चुकी है। शासन की ओर से भी इस नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए।
लखीमपुर : शहर की लाइफ लाइन कहलाई जाने वाली उल्ल नदी को अब किसी भगीरथ की तलाश है जो इसे एक बार फिर से पुनर्जीवित कर सकें। प्रदूषण से ग्रस्त इस नदी का अस्तित्व अब खतरे में है। नदी के दोनों किनारे डलाव घर बन चुके हैं। इसमें मिलने वाले सैकड़ों नाले इसे इतना गंदा कर चुके हैं कि यह नदी खुद किसी नाले से कम नहीं लगती। पूरा पानी काला हो चुका है, तैरती हुई जलकुंभी और पॉलीथिन इस नदी का जीवन बन चुकी है। शासन की ओर से भी इस नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। शहर की लाइफ लाइन कहलाए जाने का प्रमुख कारण यह है कि इसी नदी से इस शहर का जल स्तर कायम है। यदि यह नदी ही सूख गई तो शहर का जलस्तर भी काफी नीचे चला जाएगा। इसलिए भी इस नदी का बने रहना जरूरी है। बारिश के दिनों में यह नदी जब पूरे उफान पर होती है तब इसे पास पड़ोस के खेतों को भी पानी मिल जाता है। शहर से होकर गुजरने वाली इस नदी की लंबाई करीब 70 किलोमीटर है। पीलीभीत जिले से निकलने वाली यह नदी दुधवा क्षेत्र से होकर लखीमपुर शहर की सीमा से होती हुई बहती है और सीतापुर जिले की सीमा के पास घाघरा नदी में विलीन हो जाती है। एक शोधार्थी राघवेंद्र प्रताप सिंह ने उल्ल नदी का उद्गम किशनपुर सेंचुरी के झादीताल बताया है।
विद्यार्थी परिषद ने कई बार चलाई सफाई की मुहिम
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने करीब चार साल पहले कई बार इसकी सफाई की मुहिम चलाई। तत्कालीन विभाग प्रमुख आशीष श्रीवास्तव के साथ कार्यकर्ताओं ने इसे साफ करना चाहा, लेकिन यह मुहिम भी मुहिम ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई।