जर्जर भवनों में सरकारी कॉलेजों की शिक्षा
चाई विभाग के भवन में पढ़ाई हो रही थी। यहां भी नया भवन बना दिया गया है लेकिन जिला मुख्यालय पर ही यह स्थिति है कि अभी तक मुख्य भवन काफी पुराना है। राजकीय इंटर कॉलेज में तो नए भवन बनवाए गए हैं लेकिन ज्यादा स्थिति राजकीय कन्या इंटर कॉलेज में ही खराब है। यहां कई बार छज्जा भी टूटकर गिर चुका है। इसका मुख्य भवन तो कभी भी गिर सकता है। सुरक्षा के लिहाज से अब यहां पढ़ने के लिए छात्राएं भी नहीं बैठाली जाती। प्रधानाचार्य शालिनी दुबे ने भी कई बार लिखा पढ़ी की लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही निकला। पिछले करीब 30 वर्षों में लोकसभा चुनावों के दौरान किसी प्रतिनिधि ने इसे मुद्दा बनाने की भी जरूरत नहीं समझी। हालत ये है कि लगभग हर माननीय के अपने स्कूल कालेज और किसी को भी सरकारी कालेजों की सुधि नहीं है कि वह इनकी भी जर्जर हालत को सुधरवा दे।
लखीमपुर: राजकीय कन्या इंटर कॉलेज का मुख्य भवन गिरने की कगार पर है। 106 साल पुराने इस भवन में करीब 400 से अधिक बच्चों के बैठने की क्षमता है। ब्रिटिश काल 1913 में बनाया गया यह भवन अब जगह-जगह से न केवल टूट चुका है बल्कि यह कभी भी गिर सकता है। इस खतरे को देखते हुए राजकीय कन्या इंटर कॉलेज की वर्तमान प्रधानाचार्य डॉ. शालिनी दुबे ने शासन को लिखा भी और लोक निर्माण विभाग ने उस पर अपनी रिपोर्ट भी लगा दी। इन सब के बावजूद अभी तक इस भवन को बनवाने की दिशा में शासन ने कोई कदम नहीं उठाया है। यही हाल राजकीय इंटर कॉलेज का भी है उसका भवन भी 1914 का है। तब से लेकर आज तक कई सरकारें आई और गईं शहर के जनप्रतिनिधि भी बदले, लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। करीब तीन लाख की जनसंख्या पर सिर्फ दो सरकारी स्कूल हैं इसके अलावा जिले में धौरहरा लोकसभा क्षेत्र में एक राजकीय इंटर कॉलेज और एक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज है। इनके भवन लगभग 20 साल पुराने ही हैं। मोहम्मदी, निघासन, खीरी टाउन के भी भवन नए हैं। शारदा नगर के राजकीय इंटर कॉलेज में सिचाई विभाग के भवन में पढ़ाई हो रही थी। यहां भी नया भवन बना दिया गया है, लेकिन जिला मुख्यालय पर ही यह स्थिति है कि अभी तक मुख्य भवन काफी पुराना है। राजकीय इंटर कॉलेज में तो नए भवन बनवाए गए हैं, लेकिन ज्यादा स्थिति राजकीय कन्या इंटर कॉलेज में ही खराब है। यहां कई बार छज्जा भी टूटकर गिर चुका है। इसका मुख्य भवन तो कभी भी गिर सकता है। सुरक्षा के लिहाज से अब यहां पढ़ने के लिए छात्राएं भी नहीं बैठाली जाती। प्रधानाचार्य शालिनी दुबे ने भी कई बार लिखा पढ़ी की, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही निकला। पिछले करीब 30 वर्षों में लोकसभा चुनावों के दौरान किसी प्रतिनिधि ने इसे मुद्दा बनाने की भी जरूरत नहीं समझी। हालत ये है कि लगभग हर माननीय के अपने स्कूल कालेज और किसी को भी सरकारी कालेजों की सुधि नहीं है कि वह इनकी भी जर्जर हालत को सुधरवा दे।