काश कोई इन वक्त के मारो के घर भी जलाए दिवाली का एक दीया
लखीमपुर): बुधवार की रात जब देश रोशनी से जगमग होगा तब ही तराई के कुछ कोनो में अमावस क
लखीमपुर): बुधवार की रात जब देश रोशनी से जगमग होगा तब ही तराई के कुछ कोनो में अमावस का डेरा भी रहेगा। देश दिवाली मनाएगा, लेकिन इन कुछ कोनो में मिठाई और पकवान क्या दाल रोटी भी शायद जद्दोजहद से जुटे, जैसे रोज जुटती है। यह तराई क्षेत्र के वह कोने हैं जहां अभी कुछ समय पहले ही शारदा और घाघरा में सब कुछ गंवाए लोग बसे हैं।
कटान से विस्थापितों की ऐसी बस्तियां धौरहरा तहसील के ईसानगर ब्लाक में कटौली और ईसानगर के बीच हैं। इस साल कटान से बेघर होकर भागे साहबदीन पुरवा के कुछ परिवार तो पास ही अपने खेतों में जैसे तैसे बस गए, लेकिन जिनके पास खेत भी नहीं थे वह तटबंध की तलहटी में बसेरा बनाए सरकारी मदद की राह देख रहे है। इससे पहले के वर्षों में नदियों की कटान से विस्थापित हुई बड़ी आबादी तो यत्र-तत्र बस गई है और पेट पालने के जुगाड़ भी जुटा लिए हैं। ऐसे ही रमियाबेहड़ ब्लाक के रामनगर बगहा का मजरा गांव गोड़ियाना का हाल भी है। घाघरा नदी ने यह छोटा सा गांव निगल लिया है। इससे पहले घाघरा ने यहीं के गांव मोटेबाबा को निगला था। इन दोनों गांवों में कभी खुशहाल परिवार आज आसपास के इलाकों में छप्पर और तंबू डालकर खानाबदोश ¨जदगी जी रहे हैं। बगहा में भी इस साल कटान से सैकड़ों किसान भूमिहीन हो चुके हैं। धौरहरा ब्लाक के चिकनाजती, चहमलपुर, समदहा और रैनी में सैकड़ों परिवार बिना छत के हैं। इनके पास घर, जमीन सब कुछ था, लेकिन शारदा नदी सब लील गई। कई साल हो गए यह परिवार पंचायत घर, खेत, चकरोड और स्कूलों में बसेरा कर रहे हैं। इन परिवारों की होली में न रंग होता है न ही दिवाली में उजाला। आतिशबा•ाी तो भूल जाइये जनाब, रोटी के लाले पड़ते हैं इन्हे। हर साल की तरह इसबार भी बुधवार को दिवाली आएगी, चली जाएगी। अमीरों के घरों में फेस्टिवल के नाम पर करोड़ो उड़ेंगे। हर जगह उजाला होगा, लेकिन इन वक्त के मारों के घर कोई एक दीया जलाने नहीं जाएगा। यहां अमावस का साम्राज्य कायम है।