ट्रेंच विधि से गन्ना बोआई..बूंद-बूंद सिंचाई यानी किसानी में कमाई
राकेश मिश्रा लखीमपुर अगर आप गन्ना किसान हैं.. गन्ने की खेती से परिवार की रोजिका चलती है तो उसके लिए नया फार्मूला भी आ चुका है। किसान परंपरागत तरीके से गन्ने की बुवाई से अब निजात पाईये और ट्रेंच विधि को अपनाईए। इस विधि से गन्ने की बुवाई करके ज्यादा पैदावार कर सकते हैं।
लखीमपुर : अगर आप गन्ना किसान हैं.. गन्ने की खेती से परिवार की रोजिका चलती है तो उसके लिए नया फार्मूला भी आ चुका है। किसान परंपरागत तरीके से गन्ने की बुवाई से अब निजात पाईये और ट्रेंच विधि को अपनाईए। इस विधि से गन्ने की बुवाई करके ज्यादा पैदावार कर सकते हैं। इस विधि से फसल में ज्यादा पानी भी नहीं लगाना पड़ता है। गन्ना विभाग ट्रेंच विधि से खेती करने और शहद असली खेती को अपनाने के लिए किसानों को जागरूक कर रहा है और उन्हें प्रेरित किया जा रहा है इसके चलते लखीमपुर में ज्यादातर किसानों ने गन्ने की नयी तकनीक को अपना लिया है। जिले के पलिया तहसील क्षेत्र के कई प्रगतिशील किसानों ने ट्रेंच विधि से गन्ने की बुवाई शुरू कर दी है।
लागत कम और कमाई ज्यादा
दूसरी विधि से जहां गन्ने की उपज 600-800 क्विटल प्रति हेक्टेयर होती है, वहीं ट्रेंच विधि से गन्ने की उपज 1200 से 2400 कुंतल प्रति हेक्टेयर ली जा सकती है। ट्रेंच विधि में विशेष प्रकार के औजार यानी ट्रेंच ओपनर से 17 से 20 सेमी. गहरा और 30 सेमी चौड़ा गड्ढा किया जाता है।.
सूखे और बाढ़ में भी नहीं बर्बाद होती फसल
जिला गन्ना अधिकारी बृजेश पटेल बताते हैं कि दूसरी विधियों से गन्ना बुवाई करने में चार से पांच बार गन्ना होता है।लेकिन इस विधि से गन्ना लगाने पर दस से पंद्रह बार गन्ना हो सकता है। उन्होंने कहा कि गन्ने की नई किस्म लगाएं।सूखे और बाढ़ में भी नहीं बर्बाद होगी फसल।
दो आंख के पोर वाले गन्ने की करे बेआई
खीरी जिले में किसान प्रमुख रूप से गन्ने की खेती करते हैं। ज्यादा किसान सीधे तौर पर गन्ने की खेती से जुड़े हैं। जिले में दो सहकारी चीनी मिलों समेत कुल नौ गन्ना चीनी मिल चल रही है । डीसीओ बृजेश पटेल बताते हैं कि ट्रेंच विधि में दो आंख के पोर वाले गन्ने को आठ से दस सेमी. की दूरी पर ट्रेंच के दोनों तरफ बराबर डालकर बुवाई की जाती है। इसमें सामान्यत: 45-50 कुंतल प्रति हेक्टेयर बीज गन्ने की जरूरत होती है। इसके लिए प्रति सिचाई 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
मेड़ों पर करें सहफसली खेती
गन्ने की बोआई नाली में तथा सहफसली बोआई मेड़ों पर होती है। सामान्य विधि की तुलना मे इस विधि से पेड़ी गन्ना की पैदावार 25 से 49 प्रतिशत अधिक होती है। दीमक का प्रभाव भी कम होता है। इसे साल में दो बार बोया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर मोहम्मद सोहेल बताते हैं कि प्रत्येक गड्ढे में सिचाई करने के लिए गड्ढों को एक दूसरे से पतली नाली से जोड़ दिया जाता है। इस तरह खेती करके अपनी आय को दोगुनी कर सकते हैं।