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111 वर्ष के 'जवान' हैं लाहौर में जन्मे लखीमपुर के सरदार रंजीत सिंह

पाकिस्तान के लाहौर में 12 अप्रैल 1908 को जन्मे सरदार रंजीत सिंह अब भी रोजाना आठ किलोमीटर साइकिल चलाते हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 09 Jun 2019 03:15 PM (IST)Updated: Sun, 09 Jun 2019 03:26 PM (IST)
111 वर्ष के 'जवान' हैं लाहौर में जन्मे लखीमपुर के सरदार रंजीत सिंह
111 वर्ष के 'जवान' हैं लाहौर में जन्मे लखीमपुर के सरदार रंजीत सिंह

लखीमपुर [धर्मेश शुक्ला]। उत्तर प्रदेश के तराई बेल्ट लखीमपुर खीरी शहर से करीब दस किलोमीटर दूर मथना फार्म में 111 वर्ष के सरदार रंजीत सिंह रहते हैं। पाकिस्तान के लाहौर में 12 अप्रैल 1908 को जन्मे सरदार रंजीत सिंह अब भी रोजाना आठ किलोमीटर साइकिल चलाते हैं।

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इतना ही नहीं जरूरत पडऩे पर 300 किलोमीटर तक की यात्रा वह अपनी मोपेड से कर लेते हैं। दिन भर खेती किसानी में मशगूल रहने वाले सरदार रंजीत सिंह को लोग बुजुर्ग नहीं 111 साल का जवान बोलते हैं।

सरदार रंजीत सिंह की चौथी पीढ़ी जवान हो चुकी है। परपोते की शादी होने को है फिर भी रंजीत सिंह की सेहत बुढ़ापे से हारी नहीं है। उन्हें अब तक न नजर का चश्मा लगा और न ही वह कोई दवा खाते हैं। वह हिंदी नहीं लेकिन उर्दू और अंग्रेजी फर्राटे से पढ़ते हैं। अपनी सेहत का राज पूछने पर हंसते हुए बोल पड़ते हैं कि घर का खाना खाओ और जितना खाओ उससे दोगुना मेहनत करो।

सरदार रंजीत सिंह से 1985 में तब मौत हार गई थी जब लुटेरों ने छह हजार रुपये छीनते हुए उनके सीने में सटाकर गोली मार दी थी। खून से लथपथ रंजीत सिंह किसी तरह खुद को संभाले रहे और गांववाले उनको अस्पताल ले गए। इस जीवनदान के बाद उन्होंने 11 वर्ष पहले जिंदगी का शतक पूरा किया और अब भी वह नाबाद हैं।

लाहौर के कलेक्टर अब्दुल गनी को नहीं भूले

सरदार रंजीत सिंह को 1947 का वह दिन अब भी याद है जब लाहौर के कलेक्टर अब्दुल गनी की गाड़ी घर आकर रुकी। पिता से उन्होंने ही कहा था कि सामान लेकर भाग जाओ, मारकाट होने वाली है। भारतीय कैंप पहुंचने के अगले ही दिन दंगे होने लगे। कलेक्टर अब्दुल गनी की देन से हम जिंदा बचे और बरेली आ गए। इसके बाद फिर 1980 में लखीमपुर में बस गए। 

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