गांव में रोजगार नहीं, शहर जाना मजबूरी
स्कील के हिसाब से काम ढूंढ रहे प्रवासी ग्रामीण इलाकों में नहीं हैं लघु व कुटीर उद्योग
कुशीनगर : वैश्विक महामारी कोरोना को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन का जनजीवन पर व्यापक असर दिखने लगा है। शहर छोड़कर सुकून के लिए गांव पहुंचे प्रवासी मजदूरों व कारीगरों के लिए रोजगार नहीं मिल रहे हैं। शासन की ओर से प्रवासियों को गांव में ही रोजगार दिलाने का दावा तो किया जा रहा, लेकिन धरातल पर ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है। मनरेगा के तहत केवल मिट्टी भराई का कार्य चल रहा है। ऐसे में कारीगरों को उनके स्कील के मुताबिक काम मिलना मुश्किल है। उनका कहना है कि मजबूरी में शहर की ओर रुख करना पड़ेगा।
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रोजगार का खड़ा हुआ संकट
राजापाकड़: तमकुहीराज तहसील के राजापाकड़ गांव के बैजनाथ गुप्ता दिल्ली के छतरपुर में एक पेट्रोल पंप पर कार्य करते थे। लॉकडाउन के बाद किसी तरह घर आ गए। उनके समक्ष रोजगार का संकट है। उनके स्कील के हिसाब से गांव में रोजगार नहीं हैं। इसी गांव के भरत वर्मा गुजरात के सूरत में कपड़ा बुनने का कार्य कर रहे थे। लॉकडाउन में कंपनी बंद हो गई। दो माह तक वहीं रहे, पैसा खत्म हो गया तो परिचित से कर्ज लेकर ट्रेन से घर आए। उनके सामने भी रोजगार का संकट है।
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कुशल कारीगर होने के बाद भी काम नहीं
अजीजनगर: मोतीचक विकास खंड के लोहेपार गांव के टोला अमोलापट्टी निवासी रामू विश्वकर्मा कारपेंटर हैं। न्यू मुंबई के रायगढ़ की एक कंपनी में कार्य करते थे। लॉकडाउन में कार्य बंद होने के कारण घर आना पड़ा। वहां रामू के अंडर में छह श्रमिक कार्य करते थे। घर आए डेढ़ माह बीत गए, लेकिन रोजगार नहीं मिल रहा। काम की तलाश में जगह-जगह चक्कर लगाने को मजबूर हैं। काम नहीं मिलने से परिजनों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
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काम न मिलने से परेशानी
सूरजनगर: मिठहां माफी गांव के इम्तियाज अंसारी मुंबई की एक कंपनी में कार्य करते थे। कंपनी बंद होने की वजह से जैसे-तैसे गांव पहुंचे। एक माह हो गया, उन्हें काम नहीं मिला। धीरे-धीरे रोटी का संकट बढ़ने लगा है। मजदूरी कर परिवार का खर्च चला रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि रोजगार के लिए क्या करें।