Kushinagar News: 200 साल पुराना है तमकुहीराज के दशहरा मेले का इतिहास, पहली बार इस राजा ने किया था आयोजन
मेले के इतिहास की जानकारी देते हुए राजा महेश्वर प्रताप शाही ने बताया कि बंगाल नवाब क्षेत्र के हुस्सेपुर के महाराजा फतेहबहादुर शाही ने अंग्रेजों के विरुद्ध बिगुल फूंका तो उनको जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए इनाम घोषित कर दिया गया।
कुशीनगर, जागरण संवाददाता। तमकुहीराज मेले का इतिहास 200 साल पुराना है। इसका आयोजन वर्ष 1821 से लगातार होता चला आ रहा है। इस वर्ष भी मेले की तैयारी पूरी कर ली गई है। रावण दहन बुधवार को होगा।
मेले के इतिहास की जानकारी देते हुए राजा महेश्वर प्रताप शाही ने बताया कि बंगाल नवाब क्षेत्र के हुस्सेपुर के महाराजा फतेहबहादुर शाही ने अंग्रेजों के विरुद्ध बिगुल फूंका तो उनको जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए इनाम घोषित कर दिया गया। तब फतेहबहादुर शाही ने अवध के नबाब के क्षेत्र में 1765 में तमकुहीराज इस्टेट की स्थापना की। वर्ष 1790 में उन्होंने अपने छोटे पुत्र राजा रणबहादुर शाही को राज्य का दायित्व सौंपा तथा संन्यास ग्रहण कर लिए। महाराजा रणबहादुर शाही ने वर्ष 1821 में तमकुहीराज में दशहरा मेला और रामलीला आयोजन किया।
पीढ़ियां निभा रहीं परंपरा
राजा इंद्रजीत प्रताप शाही के शासन काल में यहां एक माह तक दशहरा एवं पशुओं का मेला लगता था। राजा खगेन्द्र प्रताप शाही ने भी यह परंपरा बनाए रखी। अब राजा महेश्वर प्रताप शाही रावण दहन, जुलूस, रामलीला आदि का आयोजन कराते हैं। इस वर्ष तमकुही इस्टेट में दशहरा के अवसर पर बुधवार को रावण दहन कार्यक्रम के निमित्त सभी तैयारियां पूरी हो गई।
शाम को होगा रावण दहन
राजा महेश्वर प्रताप शाही ने कहा कि दोपहर बाद तीन बजे से शोभा यात्रा निकाली जाएगी, जिसमें भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की झांकी के साथ रावण का विशालकाय पुतला होगा। राजदरबार के लोग हाथी-घोड़े पर सवार होकर बैंडबाजे के साथ समूचे तमकुहीराज कस्बे का भ्रमण करते हुए सायं पांच बजे रामलीला मैदान में पहुंचेंगे, जहां रावण चबूतरे पर राम-रावण युद्ध का सजीव मंचन होगा। इसके बाद रावण दहन किया जाएगा।