बाढ़ ने तबाह किया आशियाना, कैसे बनाएं ठिकाना
महादेवा खास टोला नदी के किनारे है इसलिए यहां के लोग अधिक परेशान हैं। पहले कटान से खेत नदी में विलीन हो गए बाढ़ आने पर घरों में दो फुट मोटा सिल्ट जमा हुआ है। घरों में रखे चौकी मेज कुर्सी अन्य सामान पर सिल्ट की मोटी परत जमी हुई है। दलदल व कीचड़ के कारण घर में रहना मुश्किल है।
कुशीनगर: एक सप्ताह में दो बार बाढ़ की त्रासदी झेल चुके खड्डा ब्लाक के नारायणी उस पार दियारा में बसे गांवों के लोग राहत शिविर व अन्य जगहों से घर लौट चुके हैं। बाढ़ की वजह से आधा दर्जन गांवों में तीन दर्जन से अधिक लोगों की रिहायशी झोपड़ियां ढह गई हैं। बाढ़ पीड़ितों के सामने समस्या खड़ी हो गई है कि कहां गुजर-बसर करें। प्रशासन इसका भौतिक सत्यापन भी नहीं करा रहा है। नई झोपड़ी बनाने के लिए संसाधन जुटाना मुश्किल है, मजबूरी में लोग सार्वजनिक स्थल व दूसरों के घरों में रह रहे हैं।
बीते सप्ताह वाल्मीकि नगर बैराज का डिस्चार्ज बढ़ने के बाद अचानक नारायणी उफना गई थी। गांवों में बाढ़ का पानी घुसने से सालिगपुर, महदेवा, शाहपुर, मरिचहवां, नरायनपुर, शिवपुर, बसंतपुर, हरिहरपुर के हजारों लोग पलायन कर राहत शिविर व आस-पास के गांवों में शरण लिए थे। गांवों से पानी उतरने के बाद ग्रामीण घर लौटे तो दर्जनों की रिहायशी झोपड़ियां ढह गई थीं। सभी लोग कुनबे के साथ घर को ठीक करने में जुटे हैं तो महदेवा खास टोला के लोग फसल समेत खेत कट जाने को लेकर अधिकारियों की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं। सालिगपुर गांव में सिकुट मल्लाह, उमाशंकर चौहान, महातम, अनिल, रूदल, भोली, चंद्रिका साधु, बंधु चौहान, रामा चौहान, हरिद्वार, जोगी चौहान, जवाहर, महदेवा में भोला मियां, सुभावती देवी, सुखल राजभर, मुन्ना राजभर, होसिलदार, नरेश राजभर समेत शिवपुर, मरिचहवा, बसंतपुर, नरायनपुर, हरिहरपुर में तीन दर्जन रिहायशी झोपड़ियां ढह गई हैं। चार दर्जन लटकी झोपड़ियों को बांस व बल्ली का सहारा दिया गया है। परेशानी बाढ़ पीड़ितों की जुबानी
महदेवा खास टोला के सुखल राजभर ने बताया कि पहली बार आई बाढ़ में ही झोपड़ी गिर गई थी। खाने पीने के सामान के सिवाय कुछ नहीं निकाल पाए। झोपड़ी ठीक करने की व्यवस्था कर रहे थे, तभी दूसरी बार बाढ़ आ गई और गांव में दो फीट मोटा सिल्ट जम गया। सुभावती देवी कहती थीं कि कटान से फसल समेत खेत नदी में विलीन हो गए। झोपड़ी भी गिर गई। नया घर बनाने के लिए बांस, खर-पतहर इस समय मिलना मुश्किल है। सालिगपुर के जोगी चौहान ने कहा कि आवास का लाभ नहीं मिलने से झोपड़ी में ही पत्नी व बच्चों समेत गुजर-बसर कर रहे थे। बाढ़ आई तो पत्नी व बच्चों को ससुराल पहुंचा दिया। झोपड़ी गिर गई है, नए सिरे से बनाना पड़ेगा। हरिद्वार चौहान ने कहा कि दियारा के लोगों को बाढ़ से बचाने के लिए नदी के किनारे बांध बनाना आवश्यक है। परिषदीय विद्यालय में शरण लिए बाढ़ पीड़ित
महादेवा खास टोला नदी के किनारे है, इसलिए यहां के लोग अधिक परेशान हैं। पहले कटान से खेत नदी में विलीन हो गए, बाढ़ आने पर घरों में दो फुट मोटा सिल्ट जमा हुआ है। घरों में रखे चौकी, मेज, कुर्सी अन्य सामान पर सिल्ट की मोटी परत जमी हुई है। दलदल व कीचड़ के कारण घर में रहना मुश्किल है। मजबूर होकर प्राथमिक और जूनियर विद्यालय में शरण लिए हैं। किशोर भारती, शाहबाज अंसारी, महावीर भारती, मंगरू, श्रीकृष्ण, गोविद, वासुदेव, हरीलाल, मस्जिद, सुखल, उस्मान, मंजू देवी, कुमार आदि ने बताया कि कीचड़ सूखने के बाद ही घर लौटेंगे। बंद कर दिया गया राहत शिविर
सालिगपुर पुलिस चौकी के समीप संचालित बाढ़ राहत शिविर से शरणार्थी घर चले गए हैं। इस वजह से शिविर को प्रशासन ने बंद कर दिया है। सचल अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मी बीमार लोगों में दवा वितरित कर रहे हैं। स्वास्थ्यकर्मी केएन यादव ने बताया कि त्वचा रोग व बुखार के मरीज बढ़ रहे हैं। उन्हें दवा व मरहम उपलब्ध कराया जा रहा है। शुक्रवार को दोपहर तक 70 मरीजों का इलाज किया गया।
अरविद कुमार, एसडीएम ने बताया कि बाढ़ की वजह से ढही झोपड़ियों का भौतिक सत्यापन करने के लिए लेखपालों की टीम लगाई गई है। रिपोर्ट मिलते ही आपदा विभाग को प्रेषित कर प्रभावित लोगों के खातों में मुआवजा भिजवाया जाएगा।