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आन लाइन के लिए.. अभियान ...पीढि़यों का संबंध मुश्किल घड़ी में आया काम

नगर के साहबगंज उत्तरी में रहने वाले संजय टिबड़ेवाल ने जहां ग्राहकों से पुराने रिश्तों और विश्वास को मजबूत किया वहीं ग्राहकों ने उनके नए प्रयासों में सहयोग भी किया। संजय के अनुसार 1981 में सेंट्रल बैंक रोड पर चंदन मेडिकल स्टोर के नाम से पिताजी सांवरमल टिबड़ेवाल दुकान चलाते थे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 05:17 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 01:28 AM (IST)
आन लाइन के लिए.. अभियान ...पीढि़यों का संबंध मुश्किल घड़ी में आया काम
आन लाइन के लिए.. अभियान ...पीढि़यों का संबंध मुश्किल घड़ी में आया काम

कुशीनगर: कोरोना काल में नई चुनौतियों के बीच हुए बदलाव से कई सबक मिले, कुछ नया करने की राह मिली। इससे साफ जाहिर है कि अगर जज्बा हो तो मुश्किल हालात से भी आसानी से निपटा जा सकता है। पुराने ग्राहकों के भरोसे व सुझाव से दवा के थोक दुकानदार संजय टिबड़ेवाल उर्फ गुल्लू ने इसे साबित किया है।

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नगर के साहबगंज उत्तरी में रहने वाले संजय टिबड़ेवाल ने जहां ग्राहकों से पुराने रिश्तों और विश्वास को मजबूत किया, वहीं ग्राहकों ने उनके नए प्रयासों में सहयोग भी किया। संजय के अनुसार 1981 में सेंट्रल बैंक रोड पर चंदन मेडिकल स्टोर के नाम से पिताजी सांवरमल टिबड़ेवाल दुकान चलाते थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1991 में इसका मैने विस्तार करते हुए अंकित फार्मा के नाम से थोक दवा की दुकान खोली, जो अब आवास के नीचे के हिस्से में संचालित है। पीढि़यों से बनाए गए ग्राहकों से रिश्तों को चलाता आ रहा हूं। कोरोना काल की मुश्किल घड़ी में उन्हें इसी रिश्ते व भरोसे की ताकत मिली और कारोबार के बदलावों की मदद से वह मुश्किल परिस्थितियों से बाहर निकल सके।

वह कहते हैं कि दवाएं मंगाने के लिए गोरखपुर, देवरिया व लखनऊ के थोक दुकानदारों को मोबाइल फोन से आर्डर दिया जाता था और पहले ही डिजिटल भुगतान कर दिया जाता था। उसके बाद माल यहां पहुंचता था। थोक व्यापारी होने के कारण स्टाकिस्ट व दुकानदारों से कभी परेशानी नहीं हुई। कोरोना काल में दवा का कारोबार लगभग बंद हो गया था। शुरुआती दो माह में दुकानें कम खुल रहीं थीं। ऐसे में वाट्सएप व फोन का सहारा लिया। लोगों से आर्डर लिए तो उन्हें कंपनी रेट व स्कीम के बारे में भी बताया, होम डिलीवरी कराई। दुकान में भी डिजिटल पेमेंट की सुविधा दी गई, इससे कारोबार चल पड़ा। खुद भी दवाएं वाट्सएप व मोबाइल फोन से बात कर मंगाई और फुटकर दुकानदारों को भेजी। दुकान खुलने पर कोरोना संक्रमण से सबको बचाने के लिए दुकान के अंदर व बाहर सैनिटाइजर का इस्तेमाल हुआ। ग्राहकों के खड़े होने के लिए शारीरिक दूरी का पालन कराया। साथ ही सरकार की गाइड लाइन के अनुसार 50 फीसद से कम कर्मचारी बुलाए गए। किसी का वेतन नहीं काटा गया। लाकडाउन के दौरान ग्रामीण इलाकों की दुकानें बंद होने से भी बिक्री काफी प्रभावित हुई। कर्मचारियों के खर्चे निकालने मुश्किल हो गए थे लेकिन इससे निपटने के निरंतर उपाय होते रहे। दवा दुकानदारों व फुटकर ग्राहकों के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाया। जरूरत पड़ने पर कर्मचारियों का सहयोग करने में पीछे नहीं रहे। ग्राहकों का प्यार और भरोसा कोरोना के वक्त में भी कायम रहा। उनके सुझाव पर बदलावों को भी स्वीकार किया गया और उनके मनमाफिक दुकानों तक डिलीवरी कराई गई। पुराने संबंधों का ही परिणाम रहा कि उनके साथ नए व्यापारी व ग्राहक जुड़ गए हैं, जिससे कारोबार में और वृद्धि हुई है।

वह कहते हैं कि धैर्य व वचनबद्धता व विश्वास से कभी भी हार नहीं मिलती है। इस पर कायम रहने से व्यक्ति कभी किसी कारोबार में नाकामयाब नहीं होगा। यही कारण रहा कि कोरोना काल में आई मुश्किलों से निकलने में सफल रहा। जब हमारी दुकानें बंद रहीं तो दुकानदारों से फोन कर उनकी दिक्कतों के बारे में जानकारी ली। कई बार सामान बिना पेमेंट के ही भेजने पड़े, लेकिन उन्होंने भी भरोसा नहीं तोड़ा और समय से भुगतान करते रहे। सामान्य स्थिति बहाल होने के बाद भी ग्राहकों का विश्वास बना रहे, इसी का प्रयास प्रतिष्ठान की ओर से किया जा रहा है। कहते हैं कि कोरोना काल में कुछ कंपनियों के माल की कमी पड़ गई, जिसे आर्डर देकर व्यवसाय को पटरी पर लाया गया। किसी भी दुकानदार को दवा की कमी नहीं होने दी गई, उन्हें होम डिलीवरी कराई गई। पहले वाट्सएप पर फोटो भी भेजा गया। सूई लगाने के लिए कंपाउंडर को घर भेजने की व्यवस्था की गई थी। लोग फोन करते थे और दुकान से कर्मचारी भेज दिए जाते थे। कर्मचारी भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए पूरी तरह सावधानी बरतते थे। सेवा का भाव उनमें बना रहा और धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई।


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