पिछड़ों को मुख्यधारा से जोड़ फातिमा ने पेश की मिसाल
कुशीनगर का अल्पसंख्यक दलित व पिछड़ा समाज दशकों से छुआछूत के कारण उपेक्षित रहा है। परिवेश बदला परिस्थितियां बदली तो समानता के अधिकार की बात उठने लगी तो महिलाएं भी अपने अधिकारों के जनसंख्या नियोजन के लिए संगठित होने लगी।
कुशीनगर: कुशीनगर का अल्पसंख्यक, दलित व पिछड़ा समाज दशकों से छुआछूत के कारण उपेक्षित रहा है। परिवेश बदला, परिस्थितियां बदली तो समानता के अधिकार की बात उठने लगी, तो महिलाएं भी अपने अधिकारों के जनसंख्या नियोजन के लिए संगठित होने लगी। इन लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता व स्वयंसेवी संगठन आगे आने लगे। उन्हीं में से कुशीनगर के सिसवा मठिया गांव की फातिमा बेगम भी हैं, जिन्होंने समाज के दबी कुचली महिलाओं में स्वाभिमान जगाने के लिए एक मुहिम शुरू की, तो स्वयं सहायता समूह के माध्यम से जागरूक किया। एक गांव से शुरू हुआ महिलाओं का कारवां तीन गांवों तक जा पहुंचा। स्थिति यह है कि गांव रोआरी, भैसहां, सिसवा मठिया की लगभग 142 महिलाएं खुद मोमबत्ती, पापड़ बनाती और पैकिंग करती हैं, जिसकी आपूíत गांव के चौराहों से लेकर प्रमुख बाजारों में किया जाता है। मुख्यधारा से कटी ये महिलाएं अब खुद के साथ परिवार की जरूरतों को पूरा करती हैं। बकौल फातिमा मजदूरी करने वाली पीड़िताओं को न्याय दिलाने की छोटी सी कोशिश रंग लाई, तो महिलाएं स्वावलंबी हो गई।