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1991 में पहली बार कुशीनगर आयीं थीं सुषमा

भारतीय राजनीति की मेधा पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं हैं अपनी यादें छोड़ असमय ही चली गयीं। यहां जिले के लोगों ने न केवल उनके व्यक्तित्व को टीवी और और संचार माध्यमों से सुना है बल्कि उन्हें बहुत नजदीक से देखा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 11:40 PM (IST)Updated: Wed, 07 Aug 2019 11:40 PM (IST)
1991 में पहली बार कुशीनगर आयीं थीं सुषमा
1991 में पहली बार कुशीनगर आयीं थीं सुषमा

कुशीनगर: भारतीय राजनीति की मेधा पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं हैं, अपनी यादें छोड़ असमय ही चली गयीं। यहां जिले के लोगों ने न केवल उनके व्यक्तित्व को टीवी और और संचार माध्यमों से सुना है, बल्कि उन्हें बहुत नजदीक से देखा है। अपने राजनीतिक जीवन में वह यहां कई बार आयीं, गयीं और लोगों से मुखातिब हुई हैं। अचानक दुनिया छोड़कर चले जाने से अब जिला गमगीन है। हो भी क्यों न, एक पार्टी की नेता होते हुए भी अपने व्यक्तिव से वह सभी की प्रिय थीं।

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लोग अब उनकी यादें साझा कर रहे हैं। जिले में रहने वाले पांडेय परिवार से भी उनकी नजदीकियां रहीं। दरअसल, वह यहां से विधानसभा व लोकसभा में प्रतिनिधित्व किए पूर्व केंद्रीय मंत्री राजमंगल पांडेय की मुंहबोली बेटी मानी जाती थीं। वर्ष 1993 में पांडेय के परलोक सिधारने के बाद भी इस परिवार से रिश्ता बरकरार रहा, और भी प्रगाढ़ हुआ। इसकी झलक तब दिखी जब वर्ष 1991 में भाजपा के टिकट पर पांडेय के बेटे राजेश पांडेय देवरिया-कुशीनगर स्थानीय निकाय से विधान परिषद चुनाव लड़े, तब उनका मनोबल बढ़ाने वह कसया पहुंच गईं। इसी तरह वर्ष 2009 में पडरौना विधानसभा से उपचुनाव लड़े, तब भी वह प्रचार में पहुंचकर पांडेय परिवार से संबंध का निर्वहन किया।

वर्ष 2000 में पांडेय की पुण्यतिथि में शिरकत करने बतौर केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री पहुंची। तब परिवार से संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा था कि मैं मंत्री या भाजपा के नेत्री के तौर पर नहीं बल्कि गुड्डू (राजेश पांडेय) की बड़ी बहन के रूप में आई हूं। सुषमा वर्ष 2003 व 2014 में भी कसया आईं थीं और अपने प्रिय भाई के लिए चुनाव प्रचार किया था। वह पांडेय परिवार के लखनऊ स्थित अधिकारिक निवास अशोक मार्ग अक्सर आती रहीं। बकौल पूर्व सांसद राजेश वर्ष 2014 में जब वह सांसद निर्वाचित हुए तो दीदी ने अपना आशीर्वाद दिया था। राजेश बताते हैं कि देश ने एक बेहतरीन नेता खोया, लेकिन मैं तो बड़ी बहन को खो दिया। वह कभी मुझसे एक नेता के तौर पर नहीं मिलीं। वह कभी मुझे राजेश पांडेय भी कह कर नहीं बुलातीं थीं। वह हमेशा गुड्डू ही कह कर बुलातीं थी। उनकी यादें और उनके साथ संस्मरण ताउम्र जेहन में ताजा रहेगी।

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