शाही के बगिया में गुलाब खास की महक
यूं तो सिद्धेश्वर शाही की बगिया में आजादी पूर्व उनके पुरखों ने आम के जिन पेड़ों को लगाया था, वह लार्ड हे¨स्टग्स के नाम से जाने जाते थे, पर आजाद भारत में इनका नाम गुलाब खास हो गया।
अनिल कुमार त्रिपाठी
कुशीनगर: यूं तो सिद्धेश्वर शाही की बगिया में आजादी पूर्व उनके पुरखों ने आम के जिन पेड़ों को लगाया था, वह लार्ड हे¨स्टग्स के नाम से जाने जाते थे, पर आजाद भारत में इनका नाम गुलाब खास हो गया। सेब सा रंग, गुलाब की सुगंध और मिश्री सी मिठास समेटे इस आम के प्रति देशी-विदेशी लोगों में इस कदर दीवानगी थी कि तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हे¨स्टग्स के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सीजन में इलाके के आम के कद्रदान कसया तहसील क्षेत्र के गांव मल्लूडीह निवासी शाही के बागीचे की ओर ¨खचे चले आते हैं। दुर्लभ प्रजाति के इस आम के कद्रदानों को सीजन का इंतजार बेसब्री से रहता है। हालांकि इस आम के तीन पेड़ ही बचे हैं। पर नई पीढ़ी पुरखों की निशानी मान बचे पेड़ों के संरक्षण की जीतोड़ कोशिश कर रही। कोशिश यह भी है कि इन आमों के नए बाग भी लगाएं जाए। इन आम के पेड़ों को शाही के दादा तत्कालीन रईस सच्चिदानंद किशोर शाही ने वर्ष 1930 में लगवाए थे। दादा के बाद पिता मनमोहन किशोर शाही के समय में भी आम कभी बेचे नहीं गए, बल्कि खास और आम सभी के लिए मुहैया रहे। बाद की पीढ़ी भी इस परंपरा को कायम रखे हुए है। हर साल 8-10 ¨क्वटल के उत्पादन को सगे संबंधियों और मित्रों तक पहुंचा दिया जाता है। वह भी केमिकल फ्री। इस बागीचे में किशनभोग (सब्जा) मुंबई के फेमस हापुस को टक्कर देने में सक्षम है, वहीं साउथ इंडियन प्रजाति और चंपा फूल की सुगंध समेटे जेठू भी मौजूद है। नवीन प्रजाति की आम्रपाली भी बागीचे की शोभा बढ़ा रही है। लब्बोलुआब यह कि वर्तमान समय में व्यावसायिक सोच के लोग आम के बागीचों को काटकर पर्यावरण को क्षति पहुंचा ही रहे हैं। ऐसे में पूर्व रईस के वंशज पर्यावरण का संरक्षण कर स्वाद और सुगंध तक पहुंच आसान कर नजीर बने हुए हैं।