बांध के सहारे बाढ़ पीड़ितों की ¨जदगी
नारायणी के बाढ़ व कटान की मार झेल चुके बाढ़ पीड़ितों के सामने ठंड में बांध ही एक सहारा बना हुआ है। बांध पर झुग्गी-झोपड़ी डालकर बाढ़ पीड़ित न सिर्फ अपना गुजर-बसर कर रहे हैं अपितु इनके माल मवेशियों का यही ठिकाना है।
कुशीनगर : नारायणी के बाढ़ व कटान की मार झेल चुके बाढ़ पीड़ितों के सामने ठंड में बांध ही एक सहारा बना हुआ है। बांध पर झुग्गी-झोपड़ी डालकर बाढ़ पीड़ित न सिर्फ अपना गुजर-बसर कर रहे हैं अपितु इनके माल मवेशियों का यही ठिकाना है। हम बात कर रहे है, एपी बांध के किनारे बसे दर्जनों गांव के उन ग्रामीणों की जो एपी बांध व नदी के बीच निवास करते है। यहां निवास करना इनकी मजबूरी है। इसके दो कारण हैं, या तो इनकी खेती नदी के उस पार है या खेतिहर मजदूर के रूप में इन्हें कार्य का अवसर यहां मिलता है। नदी में जब पानी कम रहता है तो नदी के करीब अपना ठिकाना बना लेते हैं और नाव के सहारे जीवन-यापन के जुगाड़ में जुटे रहते हैं। यहीं इनके मवेशियों को चारा भी मिलता है। मानसून शुरू होते ही इन ग्रामीणों की दुश्वारियां शुरु हो जाती है। बाढ़ के पानी में मवेशियों का चारा डूब जाता है तो ठिकानों में भी पानी भर जाता है। बाढ़ के पानी में बहकर आने वाले जंगली जानवर व विषैले जंतुओं का भय तो बना ही रहता है, एक सत्र में कई-कई किलोमीटर तक कटान की प्रवृत्ति रखने वाली नारायणी नदी की धारा इन्हें हमेशा भयभीत करती रहती है। इन सभी दुश्वारियों से बचाव का उपाय यही बांध है। ठंड मौसम में नदी की लहरों को छू कर आने वाली ठंडी हवा बांध पर शरण लिए लोगों के हाड़ को हिला देती है। ठंड के साथ गलन बढ़ने से बांध ही इनके एकमात्र ठिकाने के रूप में परिवर्तित हो चुका है। साढ़े तीन दशक पूर्व पुनर्वास की इनकी मांग अभी भी ठंडे बस्ते में है।
-------
बाढ़ पीडितों का होगा पुनर्वास : डीएम
-डीएम डा. अनिल कुमार ¨सह ने पूछे जाने पर बताया कि बाढ़ पीड़ितों को विस्थापित कराने के लिए योजना बनाई जा रही है। इसके लिए शासन को भी प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। शासन स्तर से निर्देश मिलने पर ठोस निर्णय लिया जाएगा।