देश की फलक पर राॅकेट लांच साइट के रूप में उभरा कुशीनगर, चार दिनों में हुआ 35 सफल प्रक्षेपण
कुशीनगर जिले का नारायणी नदी तट अब राकेट लांच साइट के रूप में उभरा है। यहाँ 600 युवा विज्ञानियों ने राकेट्री प्रतियोगिता में भाग लिया, जिसमें 37 सफल प्रक्षेपण हुए। इस क्षेत्र को पूर्वांचल के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान से जोड़ने के लिए विकसित किया जा रहा है। सांसद शशांक मणि त्रिपाठी ने इसे संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उत्तर भारत में आयोजित पहली राकेट्री व कैनसेट प्रतियोगिता ने रचा इतिहास
अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। पूर्वांचल के पिछड़े जिलों में शुमार कुशीनगर और उसका भी बिहार की सीमा पर स्थित अति पिछड़ा इलाका जंगली पट्टी का नारायणी नदी का तट देश की फलक पर राकेट लांच साइट के रूप में उभर कर सामने आया है। दस किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैली यहां की बेकार पड़ी रेतीली भूमि अब देश के 600 युवा विज्ञानियों के सपनों को मूर्त रूप देने की नर्सरी बनकर उभरी है।
आसमान में उड़े सफलता के राकेटों से निकले खोज व नवाचार के पौधे इसी में अंकुरित हुए हैं, जो अब देश को बट वृक्ष के रूप में अंतरिक्ष में तकनीक की नई क्रांति के रूप में फल देंगे। यह सब यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे एक दूरदर्शी सोच और छह माह का लंबे समय का इंतजार शामिल है।
नारायणी के तट पर चार दिनों तक चली इन स्पेस माडल राकेट्री कैनसेट इंडिया स्टूडेंट प्रतियोगिता ने इस स्थान को राकेट लांच साइट के रूप में दर्ज कराया है। इसमें 600 युवा विज्ञानियों ने प्रतिभाग किया, जिसमें 133 छात्राएं शामिल रही। 40 टीमों ने हिस्सा लिया। 37 ने सफल प्रक्षेपण किया, जिसमें 24 कैनसेट और 13 माडल राकेट शामिल रहे।
पहले दिन 10 की जगह चार का ही प्रक्षेपण हुआ, लेकिन सभी सफलता की पथ पर रहे। दूसरे दिन 20 की जगह 10, तीसरे दिन 30 की जगह 13 और अंतिम दिन खराब मौसम के चलते 40 की जगह 10 की ही प्रक्षेपण हो सका। 37 सफल प्रक्षेपणों के संदेश की गूंज पूरे देश ने सुनी है।
दरअसल, पूर्वांचल के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान से जोड़ने व देश को नया लांचिंग पैड देने के उद्देश्य से छह माह पूर्व बिहार सीमा पर स्थित इस तट पर बीते जुलाई में दो ट्रायल प्रक्षेपण किया गया तो 10 किमी का बड़ा क्षेत्रफल व रेतीली भूमि लांचिंग व रिकवरी के लिए पूरी तरह फिट पाई गई।
पिछडे इलाके में संभावनाएं खोजी गईं तो इस क्षेत्र ने भी निराश नहीं किया। ऐसे में बदहाली और गुमनामी का चादर ओढ़े जंगलीपट्टी का जीरो बंधा का नारायणी नदी का तट शोध व नवाचार स्थली के रूप में खड़ा हो उठा। अंतरिक्ष पर कदम रखने वाले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के पांव भी यहां पहुंचे तो इन स्पेस के चेयरमैन डा. पवन गोयनका भी अपनी खोजी नजर के साथ आए।
प्रक्षेपण की सफलता को देख युवा विज्ञानियों काे शुभांशु ने देश के लिए अंतरिक्ष विज्ञान का भविष्य बताया तो अपने सपनों को सच करने के लिए अपनी बांह खोलने वाले पिछड़े क्षेत्र को डा. गोयनका ने स्थाई लांच पैड बनाने की मंशा जताई। इन सबके पीछे देवरिया के आइआइटीएन सांसद शशांक मणि त्रिपाठी की बड़ी भूमिका उभर कर सामने आई, जो इस कार्यक्रम को यहां लेकर आए। अब पूर्वांचल के युवाओं में भी अंतरिक्ष विज्ञान को लेकर जिज्ञासा पैदा होगी और वे इस ओर कदम बढ़ाएंगे, ऐसा मानने वाले सांसद त्रिपाठी कहते हैं कि, अभी तो यह शुरुआत है। आगे बहुत कुछ होना बाकी है।

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