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कुशीनगर में शीतगृह बंद होने से आलू की खेती प्रभावित

कुशीनगर में कभी गन्ने की जगह आलू की खेती से किसानो को मिलता था लाभ भंडारण के अभाव में बंद हो गई आलू की खेती।

By JagranEdited By: Published: Mon, 14 Dec 2020 12:00 AM (IST)Updated: Mon, 14 Dec 2020 12:00 AM (IST)
कुशीनगर में शीतगृह बंद होने से आलू की खेती प्रभावित
कुशीनगर में शीतगृह बंद होने से आलू की खेती प्रभावित

कुशीनगर: फाजिलनगर विकास खंड के अमवा गांव में स्थापित शीतगृह दो दशक से बंद है। यही वजह है कि इस इलाके के किसानों की हिम्मत टूट गई और आलू की खेती से मुंह मोड़ लिए। नकदी फसल के रूप में गन्ने के बाद आलू को ही किसान पसंद करते थे, लेकिन भंडारण की समस्या राह में रोड़ा बनने लगी।

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पीसीएफ की ओर से बनाए गए इस शीतगृह का उद्घाटन तत्कालीन सहकारिता राज्यमंत्री बच्चा पाठक ने तीन अप्रैल 1982 को किया था। भंडारण की सुविधा मिलने के बाद क्षेत्र के किसानों ने गन्ने की खेती छोड़ आलू को नकदी फसल के रूप में अपनाया। व्यापक पैमाने पर खेती होने लगी, आय बढ़ने लगी तो किसानों की किस्मत भी बदलने लगी। चार वर्ष बाद वर्ष 1986 में यह शीत गृह बंद हो गया। कई वर्षों तक किसान इस उम्मीद में रहे कि शीतगृह दोबारा चालू होगा। भंडारण की समस्या के चलते किसानों ने आलू की खेती छोड़ दी। आसमानपुर, भानपुर, जोकवा, धौरहरा, भठही, सठियांव, पठखौली, पिपरा रज्जब, फाजिलनगर समेत दर्जनों गांव के किसान शीतगृह चलाने के लिए सरकार व पीसीएफ के अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद आंदोलन भी किए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब भवन काफी जर्जर हो गया है, मशीनें जंग लगने से खराब हो गई हैं।

राजेंद्र शर्मा ने कहा अमवा का शीतगृह अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। जिम्मदारों की उदासीनता से यह चालू नहीं हो सका। इसी वजह से इलाके के किसानों ने आलू की खेती छोड़ दी।

सुदामा कुशवाहा ने कहा शीतगृह की बंदी से यहां के किसान आर्थिक तंगी झेलने को मजबूर हैं। अगर यह चालू हो जाए तो आलू की खेती कर किसानों का परिवार खुशहाल हो जाएगा।

प्रमोदनाथ गुप्ता ने कहा फाजिलनगर विकास खंड का इलाका आलू की पैदावार में पूर्वांचल में स्थान रखता था। जब से शीतगृह बंद हुआ, इस इलाके के किसानों की किस्मत खराब हो गई।

वशिष्ठ सिंह ने कहा कि पूर्व की सरकारों जैसा ही वर्तमान सरकार भी कार्य कर रही है। जिम्मेदारों को आमजन की समस्या से सरोकार नहीं हैं। कोल्ड स्टोरेज चलता तो खुशहाली आ जाती।

यहां भी बंद हैं शीतगृह

स्थान- बंद होने का वर्ष

कठकुइयां- 1998

कसया- 1999

रामकोला- 1998

फाजिलनगर- 1995


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