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आस्ट्रेलिया व थाईलैंड के पौधे से खिलखिला रही बगिया

नगर से पांच किमी दूर स्थित सुसवलिया गांव के 58 वर्षीय राजेश्वर पाठक की बगिया आस्ट्रेलिया व थाईलैंड के पौधों से खिलखिला रही। करीब 17 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे राजेश्वर को दुर्लभ प्रजाति के पौधों की नर्सरी से अलग पहचान मिली तो ख्याति भी बढ़ी है। उनके पौधशाला में आस्ट्रेलिया के पोडोकारपस, एरीथ्रीना ब्लैक आई, कास्ट्रोसपेआमन, अगेथक व थाइलैंड का अप्लाटाइम धूम मचा रहे और हरियाली बांट रहे। असंतुलित हो रहे पर्यावरण को संतुलित करने का बीड़ा उठाए पाठक की बगिया में औषधीय पौधों व फूलों की भी भरमार है। यहां देसी के साथ विदेशी पौधे पेड़ बन कर खड़े हैं तो हरीतिमा की चादर फैल रही है। उनका पर्यावरण प्रेम लोगों को प्रेरणा दे रहा तो धरती को हरा-भरा भी कर रहा

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Sep 2018 11:16 PM (IST)Updated: Sat, 29 Sep 2018 11:16 PM (IST)
आस्ट्रेलिया व थाईलैंड के पौधे से खिलखिला रही बगिया
आस्ट्रेलिया व थाईलैंड के पौधे से खिलखिला रही बगिया

कुशीनगर : नगर से पांच किमी दूर स्थित सुसवलिया गांव के 58 वर्षीय राजेश्वर पाठक की बगिया आस्ट्रेलिया व थाईलैंड के पौधों से खिलखिला रही। करीब 17 वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे राजेश्वर को दुर्लभ प्रजाति के पौधों की नर्सरी से अलग पहचान मिली तो ख्याति भी बढ़ी है। उनके पौधशाला में आस्ट्रेलिया के पोडोकारपस, एरीथ्रीना ब्लैक आई, कास्ट्रोसपेआमन, अगेथक व थाइलैंड का अप्लाटाइम धूम मचा रहे और हरियाली बांट रहे। असंतुलित हो रहे पर्यावरण को संतुलित करने का बीड़ा उठाए पाठक की बगिया में औषधीय पौधों व फूलों की भी भरमार है। यहां देसी के साथ विदेशी पौधे पेड़ बन कर खड़े हैं तो हरीतिमा की चादर फैल रही है। उनका पर्यावरण प्रेम लोगों को प्रेरणा दे रहा तो धरती को हरा-भरा भी कर रहा। पाठक का पौधरोपण पर भी जोर रहता है। करीब एक एकड़ भूमि पर उनके द्वारा विभिन्न प्रजाति की नर्सरी तैयार की जाती है। पौधरोपण के लिए उनके द्वारा लोगों को भी पौधे मुहैया कराए जाते हैं। बकौल पाठक वर्ष 1979 में स्नातक करने के बाद देहरादून में एक प्राइवेट कंपनी में जाब कर रहे थे। वहां स्थित फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा मिली। नौकरी छोड़ उन्होंने वर्ष 1998 में अपने गांव में पौधशाला की शुरुआत की। यह कुशीनगर जनपद का पहला रजिस्टर्ड पौधशाला है। कहते हैं कि पेड़-पौधे केवल पर्यावरण की रक्षा ही नहीं करते, जीवन को स्वस्थ व जीवंत भी करते हैं। इनमें भी जान होती है, जरूरत है इसे महसूस करने की। मेरी बगिया ही मेरा जीवन है, हरियाली फैलाने में 17 साल बिता दिया, अब अंतिम सांस तक इन्हीं के बीच रहूंगा।

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फूलों व औषधीय पौधों की बहुलता

--राजेश्वर के पौधशाला में काली तुलसी, हरड़, बहेरा, पिपर, चिरइता, एलोवेरा, अश्वगंधा, सर्पगंधा, हींग, विभिन्न प्रजाति के नीबू के पौधे बहुतायत की संख्या में हैं। जबकि चाइनीज, बंगाल, बंगलूरू आदि जगहों के काला, लाल, सफेद गुलाब के साथ कई तरह के गेंदा, टिटोनिया, साल्विया, डहेलिया, डेनफस आदि की महक भी फैल रही है।

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देसी बगिया में खड़े विदेशी पौधे

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सुसवलिया गांव की देसी बगिया में विदेशी पौधे अब पेड़ बन कर खड़े हैं। यहां जियांड बंबू (राक्षस बांस), चाइनीज नीबू, फिश पाम, चिल्टा, फाइकर्स विन, एरोकेरिया, लोनिया, आइरिका पाम, मोटल पाम, फाक्सटेल पाम, रबर, रेडिस पाम, चाइना पाम, फोनिक्स पाम सहित अन्य प्रजातियों की भरमार है।


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