दिखने लगी दीपावली की धमक, तैयारियां जोरों पर
कुशीनगर: दीपोत्सव पर्व दीपावली 27 अक्टूबर को है। त्योहार को लेकर चहुंओर उत्साह का माहौल है। बाजार मे
कुशीनगर: दीपोत्सव पर्व दीपावली 27 अक्टूबर को है। त्योहार को लेकर चहुंओर उत्साह का माहौल है। बाजार में दीपावली की धमक ठीक से महसूस होने लगी है। घरों व दुकानों की साफ-सफाई, रंगाई-पोताई कार्य परवान पर है।
मकानों की रौनक बढ़ने लगी है। सार्वजनिक स्थलों पर जमा कूड़े-कचरे हटाए जा रहे हैं तो घर के कोने में लटक रहे झालों को निकाला जा रहा है। महीनों से बर्चे, दो छत्ती व आलमारी पर पड़े सामानों को हटाकर सफाई कार्य में गृहणियां जुट गई हैं। बिजली की दुकानों पर रंग-बिरंगे जलते-बुझते झालर सहसा दीपावली की धमक को महसूस करा रहे हैं। मिठाई बनाने को लेकर हलवाई भी अपनी तैयारी में लगे हैं। कर्मचारी अंगुली पर गिन रहे छुट्टियों को यादगार बनाने की तैयारी में योजना को अंजाम दे रहे हैं।
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क्या कहते हैं पेंट विक्रेता
-नौरंगिया में पेंट विक्रेता सुरेंद्र जायसवाल कहते हैं घरों की रंगाई पोताई के लिए एक पखवारे से चूना, कली, पेंट, ब्रश आदि सामानों की बिक्री हो रही है। कहते हैं कि गत वर्ष की तुलना में इस वर्ष अलग-अलग सामानों के भाव में 10 से 15 फीसद तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रेलवे स्टेशन रोड पर पेंट विक्रेता राहुल गुप्ता कहते हैं कि दुकानों के लिए सफेद पेंट की खपत अधिक हो रही है। रेगमार्ग, पत्ती, ब्रश, रोलर, आयल पेंट, समोसम, कली चूना, पुट्टी, आदि की मांग तेजी पर है।
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बोले झालर दुकानदार
-नगर समेत जिले भर में झालरों की भरमार है। प्रेम चौरसिया कहते हैं चाइनीज झालरों ने मार्केट में अच्छी पकड़ बनाई है, लेकिन इंडियन झालरों का भी कोई जोर नहीं हैं। दीपावली को लेकर 50 रुपये से लेकर 200 रुपये तक बिक्री वाली झालरों की खेप आ चुकी हैं। बिक्री भी शुरू हो गई है। मोतीलाल कहते हैं स्थानीय स्तर पर बने झालर थोड़े महंगे जरूर होते, लेकिन टिकाऊ होते हैं। चाइनीज झालर सस्ते व आकर्षक होने के कारण इसकी मांग ज्यादे होती है।
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पेंटरों की जुबानी
-सुसवलिया निवासी राम औतार कहते हैं बीते एक पखवारे से घर, दुकान की रंगाई, पोताई का कार्य चल रहा है। एक दिन की फुर्सत नहीं है। अधिकांश जगह ठेका पर कार्य किया जा रहा है। देवरिया पांडेय निवासी भीम कहते हैं हम दस लोग एक साथ हैं। टीम बनाकर ठेका पर पेटिग का कार्य कर रहे हैं। बड़ा व तेजी वाला काम होने पर सभी एक साथ जुट जाते हैं। नहीं तो दो से तीन जगह एक साथ पेटिग का कार्य कर रहे हैं।
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कुम्हारी कला पर लगा ग्रहण
-भटवलिया में चाक पर दीया बनाते कपिलदेव प्रजापति कहते हैं कि मिट्टी की बनी चीजें अब केवल त्योहारों में ही प्रयोग होती हैं। प्लास्टिक के आने से कुम्हारी कला पर ग्रहण लग गया है। कहते हैं दीपावली, शादी-विवाह आदि आयोजनों में ही मिट्टी के बने सामान की जरूरत पड़ती है। इसलिए नई पीढ़ी का इस कला से मोहभंग हो रहा है। मिट्टी की महंगाई, दीया, जाता, परई, कोशी, नदिया आदि अब जरूरत भर के ही बनाए जाते हैं। नेबुआ नौरंगिया स्थित पांडेय छपरा निवासी मदन प्रजापति कहते हैं कि दीया बनाने का कार्य एक महीने से चल रहा है। पकाकर इसे दीपावली के लिए रखा जा रहा है। दो-तीन दिन और बनाने ककेकार्य होगा।
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