अमवा शीतगृह बंद होने से आलू की खेती पर संकट
फाजिलनगर क्षेत्र का अमवा शीतगृह बंद होने से आलू की खेती पर बुरा असर पड़ा है। दो दशक पूर्व यहां के किसानों के लिए आलू की खेती गन्ना के बाद दूसरी नकदी फसल थी पर भंडारण की कोई व्यवस्था न होने से किसानों ने खेती से मुंह मोड़ लिया। शासन और प्रशासन की उपेक्षा के कारण शीतगृह का भवन कई स्थानों पर ध्वस्त भी हो चुका है।
कुशीनगर : फाजिलनगर क्षेत्र का अमवा शीतगृह बंद होने से आलू की खेती पर बुरा असर पड़ा है। दो दशक पूर्व यहां के किसानों के लिए आलू की खेती गन्ना के बाद दूसरी नकदी फसल थी, पर भंडारण की कोई व्यवस्था न होने से किसानों ने खेती से मुंह मोड़ लिया। शासन और प्रशासन की उपेक्षा के कारण शीतगृह का भवन कई स्थानों पर ध्वस्त भी हो चुका है। इस पीसीएफ शीतगृह का उद्घाटन वर्ष 1982 में तत्कालीन सहकारिता राज्यमंत्री बच्चा पाठक ने किया था। चार वर्ष तक क्षेत्र के असमानपुर, भानपुर, जोकवा, धौरहरा, भठहीं, सठियांव, पटखौली, पिपरा रज्जब, फाजिलनगर सहित दर्जनों गांवों के किसानों ने बड़े पैमाने पर आलू की खेती कर लाभ कमाया। क्षेत्र के सैकडों एकड़ परिक्षेत्र में आलू की खेती होती थी। किसानों के लिए यह फसल खुशहाली का पैमाना हुआ करती थी, लेकिन वर्ष 1986 में किन्हीं कारणों से शीतगृह बंद हुआ, तो फिर से चालू न हो सका। भंडारण की समस्या खड़ी होने से किसानों ने इस फसल को बोने से परहेज करने लगे। किसानों के खुशहाली का सबब रहे शीतगृह की हालत सरकारी उपेक्षा को बयां करने के लिए काफी है।
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किसान हरीलाल यादव कहते हैं कि शीतगृह बंद हुआ इसी के साथ क्षेत्र के किसानों की खुशहाली भी छीन गई। आलू की फसल किसानों के लिए वरदान हुआ करती थी।
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तारकेश्वर सिंह कहते हैं कि आले पैदावार में यह क्षेत्र चार वर्ष के भीतर ही पूर्वांचल में पहला स्थान बना लिया था। शीतगृह बंद हुआ तो किसानों से उनका भाग्य ही रूठ गया।
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राजन शुक्ल का कहना है कि सभी सरकारें एक समान हैं। किसान समस्याओं से किसी को कोई सरोकार नहीं है। अब इस शीतगृह को चालू कराने के लिए किसान आंदोलन करेंगे।
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किसान राजेंद्र पांडेय का कहना है कि आने वाले चुनाव में किसान इस शीतगृह को चुनावी मुद्दा बनाएंगे। जनप्रतिनिधियों से हिसाब लिया जाएगा। जो किसानों के लिए खड़ा नहीं होगा उसका विरोध होगा।