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कलश यात्रा के साथ शतचंडी महायज्ञ शुरू

क्षेत्र के गांव भठही खुर्द के शुकदेव प्रसाद त्रिपाठी महाविद्यालय के दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय शतचंडी महायज्ञ के लिए श्रद्धालुओं ने सोमवार कलश यात्रा निकाली।

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 11:22 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 11:22 PM (IST)
कलश यात्रा के साथ शतचंडी महायज्ञ शुरू
कलश यात्रा के साथ शतचंडी महायज्ञ शुरू

कुशीनगर : क्षेत्र के गांव भठही खुर्द के शुकदेव प्रसाद त्रिपाठी महाविद्यालय के दुर्गा मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय शतचंडी महायज्ञ के लिए श्रद्धालुओं ने सोमवार कलश यात्रा निकाली। दिन के 11 बजे हाथी-घोड़े व गाजे-बाजे से सजी कलश यात्रा यज्ञ स्थल से निकल बनकटा बाजार, कोइलवा होते हुए घुरना कुंड नदी के घाट पर पहुंची। वहां जल भरने के बाद पकहां, बघौचघाट, खैरटिया, बेलवा आलमदास होते हुए पुन: यज्ञ स्थल पर पहुंच यात्रा संपन्न हुई। बनारस के यज्ञाचार्य पंडित संतोष तिवारी के नेतृत्व में पंद्रह सदस्यीय टीम ने मुख्य यजमान सुभाष त्रिपाठी व डॉ. निर्मला त्रिपाठी द्वारा पूजन-अर्चन करा कलश की स्थापना कराई। कलश यात्रा में लगने वाले जयघोष से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया। यज्ञ के दौरान प्रतिदिन कथा वाचक पं. त्रियुगी नारायण मणि द्वारा मानस कथा का रसपान कराया जाएगा। रात में सांस्कृतिक संगम सलेमपुर के द्वारा रामायण का सजीव मंचन होगा। आयोजक पं. भोला प्रसाद त्रिपाठी, उद्भव त्रिपाठी, डॉ. धर्मेंद्र त्रिपाठी, डॉ. अर्चना त्रिपाठी, ब्रजेश, विश्वामित्र, गिरिजेश त्रिपाठी, अवधेश, शैलेंद्र मिश्र, प्रदीप दूबे, डॉ. नीरज पांडेय, डॉ. पुष्पा मिश्रा, छोटेलाल, सुनील तिवारी, अमित, सच्चिदानंद राय, अनूप, नागेंद्र चौबे, ब्रजेश मणि त्रिपाठी आदि उपस्थित रहे।

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अनुराग से ही भगवान की होती है प्राप्ति : पं. त्रियुगी नारायण

बेलवा कारखाना : यज्ञ के प्रथम दिन मंगलवार को श्रद्धालुओं को कथा में पं. त्रियुगी नारायण मणि ने कहा कि परमात्मा की प्राप्ति प्रेम से होती है। कहा कि तप, ज्ञान, वैराग्य में भी प्रेम की आवश्यकता होती है। जब व्यक्ति के अंत:करण में अनुराग की जागृत होती है तो वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। मनु महराज को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने अनुराग के साथ भगवान के मंत्र का जाप किया। प्रसन्न होकर परमात्मा उनको पुत्र राम के रूप में प्राप्त हुए। कहा कि जानकी को जब राम को पति के रूप में प्राप्त करने की जिज्ञासा हुई तो भगवती पार्वती का अनुराग के साथ पूजन किया। ऐसे ही जब राम का वन गमन हो गया तो अनुज भरत जी ने भी राम नाम का जप कर चित्रकुट में राम से मुलाकात की थी। केवट व राम का मिलन ही अनुराग का एक परम उदाहरण है।


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