प्रभु आप नहायो, अब मोहे न भायो
मिथिला जाते समय भगवान राम ने किया था विश्राम व स्नान - कभी करती थी लोक को पावन अब नहीं रही मनभावन
कुशीनगर: 'सौ कासी ने एक बांसी' जैसी कहावत से अपनी धार्मिक महत्ता बताने वाली रामायणकालीन नदी बांसी प्रदूषण से काली हो गई है। पुण्य सलिला के नाम से भी पहचान रखने वाली इस नदी में खुद प्रभु राम नहाए थे। अब यह आम आदमी के नहाने लायक भी नहीं रही। इसकी दुर्दशा देख लोग कह पड़ते हैं, प्रभु आप नहायो, अब मोहे न भायो।
क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि सौ बार काशी के गंगा नदी में स्नान का जो पुण्य प्राप्त होता है, उतना बांसी में एक बार के स्नान से प्राप्त हो जाता है। त्रेतायुगीन इस नदी के तट पर मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्राम भी किया था। इसलिए माना जाता है कि इसमें स्नान से पुण्य की प्राप्ति होती है। लोगों को पवित्र करने वाली यह नदी प्रदूषण से अपना वजूद खोती जा रही है। अभी दो दशक पूर्व तक इसका पानी स्वच्छ हुआ करता था। अब लोक (आमजन) को पावन करने वाली यह नदी, मनभावन नहीं रही। जन प्रतिनिधि या प्रशासन इस ओर अपने कदम बढ़ाते नहीं दिख रहे कि नदी का कायाकल्प हो सके।
--
डा. विवेक पांडेय ने बताया कि नदी के संरक्षण के लिए पहल की जरूरत है।
--
राजा महेश्वर प्रताप शाही ने बताया कि नदी के वजूद को बचाना जरूरी हो गया है।
--
मायाशंकर निर्गुणायत ने बताया कि गंगा की तरह बांसी परियोजना की जरूरत है।
--
डा. एसके गुप्ता ने कहा कि नदियां ऐसे ही प्रदूषित होती रहेंगी तो मानव जीवन के लिए खतरा बढ़ जाएगा।