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    नारायणी के किनारे मिली धान की प्राचीन प्रजातियां, जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने में सक्षम

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 02:04 PM (IST)

    कुशीनगर में नारायणी नदी के किनारे धान की प्राचीन किस्में मिली हैं, जिन्हें वैज्ञानिक डा. सुधीर अहलावत और प्रोफेसर वैदूर्य प्रताप शाही ने उपयोगी बताया है। खेड़ा, सेंगर, भदई और झारन प्रजाति के ये धान जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक होंगे। झारन धान आपदा में भी फलते हैं और पौष्टिक होते हैं। इन किस्मों को एनबीपीजीआर, नई दिल्ली को दिया जाएगा ताकि नई प्रजातियां विकसित की जा सकें।

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    रामपुर बरहन में धान की प्रजाति के बारे में किसान से जानकारी लेते (बाएं से दूसरे)नैनी विश्वविद्यालय के प्रो. वेदूर्य प्रताप शाही व डा. सुधीर अहलावत। जागरण

    अजय कुमार शुक्ल, कुशीनगर। नारायणी नदी के जिस तट से राकेट के प्रक्षेपण से नवाचार व शोध की चमक पूरे देश को दिखी, उसी नदी के किनारे बसे रामपुर बरहन, दरोगाडीह व लक्ष्मीपुर गांवों में धान की प्राचीन किस्में मिलीं हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के एनबीपीजीआर (राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) के वरिष्ठ विज्ञानी डा. सुधीर अहलावत व नैनी कृषि संस्थान के प्रोफेसर वैदूर्य प्रताप शाही ने कुशीनगर में तीन दिन तक सर्वेक्षण कर जंगली धान की इन प्रजातियों के उपयोगी होने पर मुहर लगाई है। कृषि विज्ञानियों का मानना है कि खेड़ा, सेंगर, भदई व झारन प्रजाति के धान पौष्टिकता के साथ ही जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने तथा धान की नई प्रजातियां विकसित करने में उपयोगी सिद्ध होंगे।

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    झारन तो बाढ़ या किसी भी प्रकार की आपदा में स्वत: फलते हैं। विपरीत जलवायु का असर नहीं पड़ता। पौष्टिकता में भी इसका कोई जवाब नहीं है। झारन धान को एनबीपीजीआर नई दिल्ली को दिया जाएगा, जिससे नई किस्में विकसित की जा सकें। एनबीपीजीआर में वर्तमान में पांच लाख से अधिक जंगली धान की प्रजातियां संरक्षित हैं, जिन पर शोध चल रहा है।

    एनबीपीजीआर प्राचीन किस्मों की तलाश कर उसका संवर्द्धन करती है। उसी के तहत कुशीनगर में सर्वेक्षण किया गया। विज्ञानियों ने बताया कि हमने धान की अति प्राचीन प्रजातियों की तलाश की। बतायाद कि हजारों वर्ष पुरानी झारन धान की किस्म के आनुवांशिक गुणों संग प्रजनन कर इसी प्रकार की धान की नई प्रजाति विकसित की जाएगी, जो किसी भी जलवायु में स्वत: पैदा हो सकेगी।

    बताया कि एनबीपीजीआर में वर्तमान में पांच लाख से अधिक जंगली धान की प्रजातियां संरक्षित हैं, उन पर शोध चल रहा है। डाॅ. अहलावत व प्रो. शाही ने बताया कि कुशीनगर जिले में धान की जैविक संपदा अत्यंत समृद्ध है, जिसका संरक्षण विज्ञानियों व किसानों के संयुक्त प्रयास से किया जाना चाहिए। इससे किसानों की दशा बदलेगी तो यहां की आर्थिकी भी नया रूप लेगी। एनबीपीजीआर का मुख्य कार्य इसी प्रकार के प्राचीन किस्मों की तलाश, संवर्द्धन करना है।