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जिक्र-ए-शहीदा ने कर्बला में दिया अमन का दर्स

संसू, सिराथू : अरबी महीना मोहर्रमुल हराम का चांद दिखते ही गांव व कस्बों में मजलिश का एहतेशाम शुरू हो गया। महीने की सात तारीख को कड़ा नखास में जिक्र-ए-शहीदाने कर्बला मुनक्किद किया गया जिसमें दूर-दराज से आए उलमा-ए-किराम व शोरा-ए-जाम ने इमाम हुसैन की शान में नातो, मनकबत व तकरीर पेश की। जिसे सुनकर मजलिश में बैठे लोगों ने दादो-तहशीन से खूब नवाजा। लोगों का जज्बा बेदार हुआ तो नारे तकबीर, नारे हैदरी की सदाएं बुलंद कीं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 06:36 PM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 08:32 PM (IST)
जिक्र-ए-शहीदा ने कर्बला में दिया अमन का दर्स
जिक्र-ए-शहीदा ने कर्बला में दिया अमन का दर्स

संसू, सिराथू : अरबी महीना मोहर्रमुल हराम का चांद दिखते ही गांव व कस्बों में मजलिश का एहतेशाम शुरू हो गया। महीने की सात तारीख को कड़ा नखास में जिक्र-ए-शहीदा ने कर्बला मुनक्किद किया गया जिसमें दूर-दराज से आए उलमा-ए-किराम व शोरा-ए-जाम ने इमाम हुसैन की शान में नातो, मनकबत व तकरीर पेश की। जिसे सुनकर मजलिश में बैठे लोगों ने दादो-तहशीन से खूब नवाजा। लोगों का जज्बा बेदार हुआ तो नारे तकबीर, नारे हैदरी की सदाएं बुलंद कीं।

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जिक्र-ए-शहीदाने कर्बला का आगाज तिलावते रब्बानी के साथ हुआ। जिसकी सदारत हाफिज अब्दुल सलाम ने की। जिसके बाद नियाज एहसानी बांदवी ने पढ़ा- जबरों बातिल की आवाज के शेरों में हक का नगमा सुनाने हुसैन आ गए। जुल्म की आंधियां चल रही थीं मगर डुबी शम्मा जलाने हुसैन आ गए। इसे सुनकर लोगों के कुलूब को मोजल्ला किया। इसी तरह रहबर रायबरेली, फरमान रायबरेली ने नातो-मनकबत पेश किया। मौलाना गुफरान अहमद नूरी ने खिताबत करते हुए अल्लाम इकबाल का शेर पढ़ा- जबां से कह दिया लाइलाहा तो क्या हासिल, दिलो-निगाह मुसलमां नहीं तो कुछ भी नहीं। महज कलमा पढ़ने से कोई मुस्लमान नहीं होता है। जब तक लोगों का दिल व निगाह नहीं दुरुस्त रहेगी तक तब वह कामिल मुस्लमान नहीं। साथ ही कहा कि अली का जिक्र भी इबादत है। वहीं दूसरी तरफ सहाबा व अहले बैत से मोहब्बत करने पैगाम दिया। इसी तरह अल्लामा कारी रूहुल अमीन जबलपुरी ने तकरीर करते हुए कहा कि इस्लमा हमेशा से ही अमन का जामिन है। इसके साथ ही उन्होंने मौला अली की शान तकरीर पेश की। साथ ही कहा कि कर्बाला की जंग में इमाम हुसैन ने बातिल के साथ सुलह नहीं किया। नाना के दीन के खातिर शहीद हो गए। बैठे लोगों ने सुब्हान अल्लाह, माशाअल्लाह की सदाओं के साथ इनमों से भी नवाजा तथा अपनी बेदारी का सुबूत दिया। जिसके बाद लोगों ने सालातों सलाम पढ़ा और अमन-चैन की दुआ की। मजलिस की जेरे निजामत मौलाना कलीम र•ा आरफी ने किया।


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