दोहरी खेती से आíथक समृद्ध हो रही हैं महिलाएं
श्रवण पटेल, मूरतगंज : बदलते दौर में महिलाएं किसी से पीछे नहीं है। खेत से लेकर देश के बार्डर तक महिलाओं ने लोहा मनवाया है। खेती में महिलाएं हमेशा से पुरुष के साथ काम करती रहीं, लेकिन जब पारंपरिक खेती छोड़ इसे रोजगार का जरिया बनाया। आíथक संकट आया तो समूह बनाकर काम शुरू कर दिया है। यह कर दिखाया मूरतगंज ब्लाक के गांव देवरा की महिलाओं ने।
श्रवण पटेल, मूरतगंज : बदलते दौर में महिलाएं किसी से पीछे नहीं है। खेत से लेकर देश के बार्डर तक महिलाओं ने लोहा मनवाया है। खेती में महिलाएं हमेशा से पुरुष के साथ काम करती रहीं, लेकिन जब पारंपरिक खेती छोड़ इसे रोजगार का जरिया बनाया। आíथक संकट आया तो समूह बनाकर काम शुरू कर दिया है। यह कर दिखाया मूरतगंज ब्लाक के गांव देवरा की महिलाओं ने।
गंगा के कछार पर बसे गांव में महिलाएं खासकर सब्जी की दोहरी खेती कर रही हैं। वह खेती संभालती है और पति बाजार में उसे बेचते हैं। इससे उनके परिवार की आíथक स्थिति मजबूत हो रही है और बच्चों का पालन पोषण सही ढंग से हो रहा है। महंगाई के दौर में खेती घाटे का सौदा है लेकिन इसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो फायदा है। खासकर नकद फसल यानि सब्जी की खेती करने में किसानों का नुकसान नहीं है। इसे बेहतर तरीके से करने के लिए मूरतगंज ब्लाक के देवरा गांव की महिलाओं ने समूह बनाकर काम शुरू कर दिया। देवरा गांव की वंदना देवी ने गांव की राजकुमारी, सविता, नंदनी, बीनू, मीना, बेगम, नीता देवी, सुशीला और लक्ष्मी के साथ मिलकर यीशु स्वयं सहायता समूह का गठन कर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक मूरतगंज में बचत खाता खुलवाया। इसके बाद समूह की महिलाओं ने हर माह सौ रुपये बचत कर खेती करनी शुरू की। वंदना ने बताया कि शुरू-शुरू कुछ कठिनाइयों का सामना जरूर करना पड़ा। लेकिन घर के पुरुषों का साथ मिलने के बाद आज नकदी फसल से अच्छा मुनाफा हो रहा है। समूह गठित कर बचत के साथ वह एक साथ मटर और सोवा, करेला और परवल, आलू और सरसों व गोभी की दोहरी खेती कर रही हैं। नकदी फसल के लिए पैसों की जरूरत होती है तो वह समूह से निकाल लेते हैं। फिर कमाई करके बचत खाते में पैसा जमा करते रहते हैं। यह बचत उन्हीं के काम आती है। उनका कहना है कि इस समय खेत में मटर के साथ सोवा की बुआई की है। फसल की निराई गुड़ाई से लेकर खेती की सभी काम वह करती है। तैयार फसल सोवा को उनके पति बाजार में बेचते हैं। सोवा खत्म होते ही मटर की फली तैयार हो जाएगी। नकदी और दोहरी फसल होने से मुनाफा भी दोहरा हो रहा है। इससे उनकी आíथक स्थिति में सुधार हुआ है और वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रही हैं।