तीन तलाक : रिश्तों की डोर टूटी तो बनी आत्मनिर्भर
तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए केंद्र सरकार ने कानून बनाकर पीड़ित महिलाओं को ताकत दी है लेकिन उत्पीड़न के खिलाफ आर्थिक मदद दिलाने का प्रावधान न तो सरकार से है और न पति से।
कौशांबी : तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए केंद्र सरकार ने कानून बनाकर पीड़ित महिलाओं को ताकत दी है लेकिन उत्पीड़न के खिलाफ आर्थिक मदद दिलाने का प्रावधान न तो सरकार से है और न पति से। लगातार मुश्किल हालातों से संघर्ष करते हुए तमाम पीड़ित महिलाओं ने खुद को आत्मनिर्भर बना लिया है मगर उन्हें तमाम मुश्किल झेलनी पड़ रही है।
सिराथू क्षेत्र के नारा निवासी मजीद अहमद की बेटी मेहनाज की शादी गांव के ही एकलाख के साथ 15 साल पहले हुई थी। करीब पांच साल तक वह पति के साथ रही। इसके बाद उसका पति से तलाक हो गया। तलाक के बाद पति की ओर से उसे किसी प्रकार का गुजारा भत्ता नहीं मिला। मेहनाज मायके में आकर रहने लगी। किसी प्रकार मेहनत मजदूरी और बीड़ी बनाकर उसने गृहस्थी तैयार की और पुत्र शानू व बेटी शना को पढ़ा रही है। पति ने दूसरी शादी कर ली है। इसी गांव की शमा पुत्री मुख्तार की हालत भी ऐसी है। करीब 20 साल पहले उसकी शादी गांव के खेसारी के साथ हुई थी। करीब 15 साल पहले पति ने तलाक दे दिया। पति से तलाक के बाद शमा अपनी बेटी खुशबू के साथ अलग रहने लगी। मेहनत मजदूरी कर उसने पाई-पाई जोड़ी और अब बेटी की शादी की तैयारी में लगी है। शमा ने बताया कि तीन तलाक कानून बना तो लगा कुछ मदद मिलेगी। मगर इस कानून से पीड़ित महिलाओं को कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। महिला आयोग से शिकायत के बाद भी अब तक न तो पति और न ही शासन की ओर से कोई मदद मिली।
नारा गांव की अंसार अहमद की बेटी अफसाना, अब्दुल गफ्फार की बेटी आसमां की शादी करीब 15 साल पहले हुई थी। उनको पति से तलाक मिला है, लेकिन अब तक किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली है। ऐसे में अब वह सरकार की ओर मदद की आस से देख रही हैं। उनका कहना है कि मजदूरी से गुजारा तो हो जाता है भविष्य में तो अंधेरा ही दिख रहा है।