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ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान ने अंगुली पर धारण किया पर्वत

सिराथू कस्बे में आयोजित हो रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन रविवार को कथावाचक ने गोवर्धन पूजा कृष्ण बाल लीला व छप्पन भोग की कथा श्रोताओं को सुनाई।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 11:00 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 06:08 AM (IST)
ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान ने अंगुली पर धारण किया पर्वत
ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान ने अंगुली पर धारण किया पर्वत

संसू, सिराथू : सिराथू कस्बे में आयोजित हो रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन रविवार को कथावाचक ने गोवर्धन पूजा, कृष्ण बाल लीला व छप्पन भोग की कथा श्रोताओं को सुनाई।

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कथा व्यास प्रदुम्न कृष्ण भूषण जी महाराज ने कहा कि एक समय की बात है ब्रज वासियों ने इंद्र की पूजा न कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। इस पर इंद्रदेव अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने बादलों को आदेश दिया कि ब्रज में जाकर इतना पानी बरसाओ की सब लोग दहशत में आ जाएं। इसके बाद बादलों ने मूसलधार बारिश ब्रज में की। पूरी तरीके से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली में धारण कर सभी ब्रज वासियों को उसके नीचे खड़ा कर इंद्र के प्रकोप से बचाया। देवराज इंद्र का अभिमान चूर हो गया। सभी ब्रज वासियों ने इसके बाद गोवर्धन पर्वत की पूजा की, तभी से भगवान श्री कृष्ण का नाम गोवर्धन धारी हो गया। कथा व्यास ने कथा के दौरान ही श्री कृष्ण की बाल लीला का बखान किया। इसे सुनकर श्रोता आनंदित हो गए। अंत में उन्होंने छप्पन भोग की कथा सुनाई। इसके भगवान की आरती व प्रसाद का वितरण किया गया।

मूरतगंज क्षेत्र पल्हाना घाट स्थित हनुमान कुटी में चल रही कथा में रविवार को कथा वाचक सिद्धेश्वरी त्रिपाठी ने सीता स्वयंवर की कथा सुनाई। कहा कि सीता जी विवाह के योग्य हुई तो उनके पिता जनक को चिता होने लगी कि सीता के लिए योग्य वर कहां मिलेगा। योग्य वर की तलाश के लिए उन्होंने राज्य सभा में स्वयंवर किया। इसमें शिव धनुष को रखा गया। सीता जी के अलावा इस धनुष को कोई नहीं उठा पाता था। विवाह के लिए धनुष को सभा के मध्य में रखा गया। रावण समेत तमाम राजाओं ने धनुष को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वह सफल नहीं हुए। राम व लक्ष्मण भी अपने गुरू विश्वामित्र के साथ स्वयंवर में पहुंचे थे। गुरू के आदेश में राम ने धनुष उठा लिया। प्रत्यंचा चढ़ाते समय धनुष टूट गया। धनुष टूटने की विकराल आवाज सुनकर शिव भक्त परशुराम पहुंचे। शिव के धनुष तोड़ने को लेकर राम व परशुराम के बीच वाद-विवाद हुआ। इसके बाद राम और सीता का विवाह संपन्न हुआ। कथा के दौरान ही भक्तों ने भगवान राम व सीता के नाम के जयकारे लगाए। इसके साथ ही रविवार की कथा का समापन हो गया।


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