गमगीन माहौल में जवान का हुआ अंतिम संस्कार
पश्चिम शरीरा कौशांबी छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवान कामता प्रसाद का शनिवार को सुबह गमगीन माहौल में अंतिम संस्कार किया गया।
पश्चिम शरीरा, कौशांबी : छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद हुए सीआरपीएफ के जवान कामता प्रसाद का शनिवार की सुबह अंतिम संस्कार किया गया। सीआरपीएफ के अफसरों ने शहीद को सलामी दी। महायात्रा व अंतिम संस्कार में हजारों ग्रामीणों का हुजूम रहा। जनप्रतिनिधियों के अलावा प्रशासनिक अफसर भी मौजूद रहे।
महेवाघाट के अलवारा गांव निवासी कामता प्रसाद पुत्र रघु छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ की 151वीं बटालियन में तैनात था। जारपल्ली जंगल में गुरुवार की भोर हुए नक्सली हमले में कामता प्रसाद शहीद हो गया। शुक्रवार की रात सीआरपीएफ के सहायक कमांडेंट विजय यादव और राजवेश कुमार के साथ 23 जवान पार्थिव शरीर लेकर गांव पहुंचे। आधी रात को सन्नाटे के माहौल में एक बार फिर कोहराम मच गया। रोने-चीखने की आवाज सुनकर जो लोग अपने घरों में सो रहे थे, वह भी जाग गए और शहीद के घर पहुंच गए। दहाड़े मारकर रो रहे परिवार के लोगों को ढांढस बंधाते रहे। सुबह हुई तो सीआरपीएफ के आइजी डॉ. सुभाष चंद्रा व डीआइजी मनीष कुमार सच्चर भी पहुंच गए। कुछ देर में एसडीएम मंझनपुर राजेश चंद्रा और तहसीलदार समेत विधायक मंझनपुर लालबहादुर, जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रतिनिधि जगजीत सिंह, पूर्व सांसद शैलेंद्र कुमार, प्रदेश के पूर्व मंत्री इंद्रजीत सरोज आदि भी पहुंच गए। सीआरपीएफ के जवानों द्वारा सलामी देने के बाद पार्थिव शरीर को गांव के बाहर ग्राम समाज की भूमि पर ले जाया गया जहां गमगीन माहौल में सुबह दस बजे के लगभग शहीद का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
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पिता ने दी बेटे को मुखाग्नि :
बुढ़ापे का सहारा इकलौते बेटे यानि शहीद कामता को मुखाग्नि पिता रघु प्रसाद ने दी। दिव्यांग मां श्यामकली भी अपने कलेजे के टुकड़े की शहादत पर बिलखती रही। उसके मुंह से बस यही निकल रहा था कि उसने क्या कसूर किया था, जो इकलौते बेटे को बूढ़ी आंखों के सामने छीन लिया।
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बहू के लिए मांगी नौकरी :
अंतिम संस्कार के बाद एसडीएम व तहसीलदार समेत जनप्रतिनिधि शहीद जवान के पिता रघु से मिले। उन्होंने शासन की तरफ से आर्थिक सहायता दिलाने का आश्वासन दिया। इस पर पिता रघु फूट-फूट कर रोने लगा और हाथ जोड़कर बोला कि उसने तो बेटे के साथ अपना सबकुछ खो दिया है। वह अपनी पत्नी के साथ किसी तरह जीवन गुजर कर लेगा, लेकिन बेवा हुई बहू की जिदगी कैसे कटेगी। कहा कि कुछ देना ही चाहते हैं तो उसकी बहू को सरकारी नौकरी दे दें और शहीद के लिए गांव में एक स्मारक बनवा दें।