सुनीता के हौसले ने बढ़ाया बेटियों का सम्मान, दौड़ में सुनीता को गोल्ड मेडल मिला
ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी और आज देश व प्रदेश में कौशांबी की पहचान बन चुकी सुनीता। अपने दम पर एक अलग मुकाम बनाने का हौसला रखती है। उनकी रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो किलोमीटर की दौड़ में वह राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ने में महज पांच सेकेंड से ही चुक गई। फिलहाल वह गुवाहाटी में हुई राष्ट्रीय स्तर की हुई प्रतियोगिता में विजय प्राप्त कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया है। इस वक्त वह स्पोर्ट हास्टल लखनऊ में सुनीता प्रशिक्षण ले रही हैं। बेटियों के लिए सुनीता एक रोल माडल की तरह हैं। प्रथम मां शैलपुत्री पुत्री जो ²ढ़ता की परिचायक है। आज संसार में स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध और दुराचार से निपटने के लिए स्त्री का ²ढ़ होना पहली आवश्यकता है। शैलपुत्री स्वरूप है उस बेटी का जो माता-पिता के गौरव का प्रतीक है अभिमान है और अपने कार्य से उनके मान-सम्मान में वृद्धि करती है।
कौशांबी। ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी और आज देश व प्रदेश में कौशांबी की पहचान बन चुकी सुनीता। अपने दम पर एक अलग मुकाम बनाने का हौसला रखती है। उनकी रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दो किलोमीटर की दौड़ में वह राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ने में महज पांच सेकेंड से ही चुक गई। फिलहाल वह गुवाहाटी में हुई राष्ट्रीय स्तर की हुई प्रतियोगिता में विजय प्राप्त कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया है। इस वक्त वह स्पोर्ट हास्टल लखनऊ में सुनीता प्रशिक्षण ले रही हैं। बेटियों के लिए सुनीता एक रोल माडल की तरह हैं। प्रथम, मां शैलपुत्री: पुत्री जो ²ढ़ता की परिचायक है। आज संसार में स्त्रियों के प्रति बढ़ते अपराध और दुराचार से निपटने के लिए स्त्री का ²ढ़ होना पहली आवश्यकता है। शैलपुत्री स्वरूप है उस बेटी का जो माता-पिता के गौरव का प्रतीक है, अभिमान है और अपने कार्य से उनके मान-सम्मान में वृद्धि करती है।
नन्हीं उड़नपरी के नाम से जिला स्टेडियम में पहचानी जाने वाली मंझनपुर तहसील की गुवारा के बराई बंधवा निवासी सनीता के पिता चुन्नीलाल किसान है। वह खेती किसानी कर सुनीता को बेहतर शिक्षा देने का प्रयास कर रहे थे। सुनीता का खेले के प्रति लगाव बचपन से था। आठवीं आते आते उसकी क्षमता ने उसे सामान्य बच्चों से अलग कर दिया। साथ पढ़ने वाले ही क्या आसपास गांव के कोई बच्चे उसे छू भी नहीं सकते थे। उसकी रफ्तार ने उसे सब से अलग बना दिया। इसकी जानकारी पिता को हुई तो उन्होंने बेटी को धावक बनाने का फैसला कर दिया। 2018 में उसका स्पोर्ट स्टेडियम में प्रशिक्षण के लिए आना शुरू हुआ। सुनीता की प्रतिभाग कौशांबी में ही नहीं रही। उसका चयन स्पोर्ट हास्टल लखनऊ के लिए हो गया। फिलहाल इन दिनों वह स्पोर्ट हास्टल में रहकर दौड़ की बारीकियां सीख रही है। हास्टल से ही सुनीता को जूनियर नेशनल खेलने का अवसर मिला। 2020 की प्रतियोगिताओं का आयोजन जनपद-फरवरी के मध्य 2021 में किया गया। सुनीता ने प्रतियोगिता में अपना लोहा मनवा दिया। 2000 मीटर दौड़ में सुनीता को गोल्ड मेडल मिला। इतना ही नहीं वह 2000 मीटर के राष्ट्रीय रिकार्ड छह मिनट 24 सेकेंड को तोड़ने से महज पांच सेकेंड से चूक गई। सुनीता को जूनियर नेशनल 2000 मीटर दौड़ व दो किमी क्रास कंट्री दौड़ में गोल्ड मैडल मिल चुका है। सुनीता की इस सफलता ने उसे आज बेटियों के लिए रोल माडल बना दिया है।