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ऊसर और बंजर भूमि की सेहत सुधारेगी पालक

पालक की एक ऐसी प्रजाति विकसित की गई है जो ऊसर बंजर भूमि में तैयार होगी। इस फसल को कई बार तैयार करने के बाद भूमि की प्रकृति में बदलाव होगा। उस ऊसर बंजर-भूमि पर हर फसल का उत्पादन हो सकेगा। इसका परीक्षण कृषि विज्ञान केंद्र कौशांबी में दो वर्ष पूर्व किया गया था। पिछले वर्ष कुछ किसानों ने बंजर भूमि पर पालक की खेती की थी। उसे बढ़ाया देने के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 11:44 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 11:44 PM (IST)
ऊसर और बंजर भूमि की सेहत सुधारेगी पालक
ऊसर और बंजर भूमि की सेहत सुधारेगी पालक

जासं, कौशांबी : पालक की एक ऐसी प्रजाति विकसित की गई है, जो ऊसर बंजर भूमि में तैयार होगी। इस फसल को कई बार तैयार करने के बाद भूमि की प्रकृति में बदलाव होगा। उस ऊसर बंजर-भूमि पर हर फसल का उत्पादन हो सकेगा। इसका परीक्षण कृषि विज्ञान केंद्र कौशांबी में दो वर्ष पूर्व किया गया था। पिछले वर्ष कुछ किसानों ने बंजर भूमि पर पालक की खेती की थी। उसे बढ़ाया देने के लिए कृषि वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं।

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जिले की लगभग 36 हजार हेक्टेयर भूमि ऊसर बंजर है। ऊसर बंजर की प्रकृति क्षारीय होने के कारण इस भूमि की स्थित में सुधार किया जा सकता है। इस भूमि को सुधारने के लिए जिले में ऊसर सुधार कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। भूमि सुधार के लिए पालक की फसल किसानों के लिए वरदान साबित होगी। कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह की ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय से ऐसी पालक तैयार की गई है, जो ऊसर बंजर में उगेगी। उन्होंने बताया कि पालक की फसल आम तौर पर बलुई, दोमट व मटियार भूमि में तैयार होती है, लेकिन नई प्रजाति की पालक का उत्पादन ऊसर बंजर भूमि पर किया जा सकता है। इस वर्ष 400 हेक्टेयर भूमि पर पालक की खेती कराई जाएगी। दावा है कि एक बीघे ऊसर भूमि में 35 से 40 कुंतल तक की फसल तैयार की जा सकती है। पालक का उत्पादन कई बार उस जमीन पर करने से उसमें सुधार हो जाएगा। पूरे वर्ष भर रहती है मांग

पालक एक ऐसी फसल है। जिसकी मांग पूरे वर्ष भर रहती है। किसान इसको खेत में तैयार कर बाजार में आसानी से बेच सकते है। इसके लिए कही परेशान होने की जरूरत नहीं। अपने औषधीय गुणों के कारण पालक आंख की रोशनी, पाचन तंत्र, खून की सफाई आदि की बीमारियों में प्रयोग होती है। इन प्रजातियों पर हो रहा शोध

कृषि विज्ञान केंद्र में पालक की आल ग्रीन, तूसा पालक, तूसा हरित, हेसार सलेक्शन-23 आदि प्रजातियों पर शोध किया जा रहा है। अक्टूबर से किसानों को पालक का बीज कृषि विज्ञान केंद्र से मिल सकते हैं। कैसे तैयार होगी फसल

किसी भी माह में ऊसर भूमि को समतल कर जिप्सम डालकर तीन से चार बार मिट्टी को हैरो व कल्टीवेटर से पलट दें। इसके बाद खेत का पलेवा कर दें। खेत बुआई की स्थित में आ जाए तो किसान छह टन प्रति बीघे की दर से गोबर की खाद, 25 किग्रा नीम की खली या नीम की पत्ती की खाद खेत में डालकर जुताई कर दें। साथ ही बीज डाल दें। फसल अंकुरित होने के बाद उसकी मांग के अनुरूप सिचाई करते रहें। पहली कटाई के बाद नीम की खली दोबारा खेत में डालकर सिचाई कर दें। जिले में ऊसर भूमि का क्षेत्रफल अधिक है। रासायनिक खाद का प्रयोग पर नियंत्रित करने के लिए जैविक खादों का प्रयोग करें। ऊसर में तैयार होने वाली पालक की खेती करें, इससे सुधार होगा।

डॉ. मनोज सिंह, मृदा वैज्ञानिक


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