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प्रकृति मित्र बनकर रोपे पौधे, अब वृक्षों का कर रहे संरक्षण

संपूर्ण सृष्टि में प्रकृति ही एक ऐसी मित्र है जो कम कीमत पर ही आपको सब कुछ देना चाहती है। आप एक बीज बोते हैं वह हजार बीज वापस करती है। प्रकृति हमें व्यवहार की वह शर्त को पूरा करना सिखाती है कि जितना मैंने पाया तुमसे उससे कहीं अधिक दे जाऊं। इसी शर्त को प्रकृति मित्र के रूप में पूरा करते आ रहे हैं दीपनारायण मिश्र।

By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 11:02 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 11:02 PM (IST)
प्रकृति मित्र बनकर रोपे पौधे, अब वृक्षों का कर रहे संरक्षण
प्रकृति मित्र बनकर रोपे पौधे, अब वृक्षों का कर रहे संरक्षण

संसू, टेढ़ीमोड़ : संपूर्ण सृष्टि में प्रकृति ही एक ऐसी मित्र है जो कम कीमत पर ही आपको सब कुछ देना चाहती है। आप एक बीज बोते हैं वह हजार बीज वापस करती है। प्रकृति हमें व्यवहार की वह शर्त को पूरा करना सिखाती है कि जितना मैंने पाया तुमसे, उससे कहीं अधिक दे जाऊं। इसी शर्त को प्रकृति मित्र के रूप में पूरा करते आ रहे हैं दीपनारायण मिश्र। दीपनारायण मिश्र पेशे से शिक्षक हैं और इनके माता पिता भी सेवानिवृत्त अध्यापक हैं। जिनका खेती किसानी से उतना वास्ता नहीं रहा जिसकी वजह से नौकरी पाने के पहले तक कोई भी पौधे नहीं लगाए। शिक्षक दीपनारायण मिश्र सिराथू तहसील के गंगा किनारे स्थित मोहनपुर गांव के निवासी हैं। सन 2015 में बेसिक शिक्षा में नियुक्त होने के बाद विद्यालय को देखकर उसे हराभरा एवं गुरुकुल के रूप में बनाने की सोच ने इन्हें पौधे रोपित करने को प्रेरित किया। जिसे इन्होंने अब अपने जीवन शैली में अपना लिया है। विकास खंड कड़ा के अपनी प्रथम नियुक्ति के विद्यालय प्राथमिक विद्यालय घड़ियालीपुर में एक बरगद का पौधा एक सोच के साथ रोपित किया। जिससे बच्चे उसके नीचे शिक्षा ग्रहण कर सकें। वटवृक्ष होने की वजह से गांव की महिलाओं ने इनके लगाए वृक्ष की अब पूजा करना भी शुरू कर दिया है। वर्तमान में शिक्षक दीपनारायण मिश्र प्राथमिक विद्यालय रामपुर धमावां में सहायक अध्यापक पद पर तैनात हैं। यहां भी विद्यालय को हरा भरा एवं आकर्षक बनाने का प्रयास जारी है। इनके अनुसार इन्होंने अभी तक विद्यालय की जमीन का उपयोग करते हुए अब तक एक बरगद, छह अशोक, दो चितवन, दो कदम्ब, एक नीम, दो सहजन, एक गूलर, एक आम एवं दर्जनों चांदनी, गुड़हल, कनेर के पौधे रोपित कर उनकी देखभाल करते हुए सुरक्षित रखा है। फूल के पेड़ों से अब गांव वाले पूजा के लिए पुष्प भी तोड़ ले जाते हैं जो इन्हें संतुष्टि प्रदान करता है।

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