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भगवान शिव का धनुष टूटते ही क्रोधित हुए परशुराम

नगर पंचायत मंझनपुर के रामलीला में रविवार रात परशुराम व लक्ष्मण संवाद चला। लीला प्रसंग के मुताबिक सीता जी के स्वयंवर में जब श्री राम ने शिव धनुष तोड़ा तो शिवजी के धनुष को टूटा देखकर परशुराम प्रकट हुए और चिल्ला कर बोले सुनो जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है वह मेरा शत्रु है वह सामने आ जाए नहीं तो सभी राजा मारे जाएंगे।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 12:34 AM (IST)Updated: Tue, 20 Oct 2020 12:34 AM (IST)
भगवान शिव का धनुष टूटते ही क्रोधित हुए परशुराम
भगवान शिव का धनुष टूटते ही क्रोधित हुए परशुराम

कौशांबी : नगर पंचायत मंझनपुर के रामलीला में रविवार रात परशुराम व लक्ष्मण संवाद चला। लीला प्रसंग के मुताबिक सीता जी के स्वयंवर में जब श्री राम ने शिव धनुष तोड़ा तो, शिवजी के धनुष को टूटा देखकर परशुराम प्रकट हुए और चिल्ला कर बोले सुनो, जिसने शिवजी के धनुष को तोड़ा है, वह मेरा शत्रु है, वह सामने आ जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जाएंगे। मुनि के वचन सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराए और बोले परशुराम जी बचपन में हमने बहुत से धनुष तोड़ डाले, कितु आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इसी धनुष के टूटने पर आप इतना गुस्सा क्यों कर रहे हैं? परशुराम ने कहा कि हे बालक, सारे संसार में विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या कोई छोटा मोटा धनुष समझा है। तू मुझे नहीं जानता, मैं तुझे बालक जानकर नहीं मार रहा हूं। क्या तू मुझे निरा मुनि ही समझता है तूने मेरा गुस्सा नहीं देखा है। जिसके लिए मैं संसार में विख्यात हूं। अपनी भुजाओं के बल से मैंने पृथ्वी को राजाओं से रहित कर दिया। सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस भयानक फरसे को देखो और चुप बैठो। लक्ष्मण जी हंसकर बोले मुनीश्वर आप तो अपने को बड़ा भारी योद्धा समझते हो बार-बार मुझे कुल्हाड़ी दिखाते हो, फूंक मारके पहाड़ उड़ाना चाहते हो। मैं तो आपको संत ज्ञानी समझकर आपकी इज्जत कर रहा हूं। काफी देर तक लक्ष्मण व मुनि परशुराम के बीच शब्दों के बाण चलते रहे। विश्वामित्र जी ने मन ही मन सोचा परशुराम जी, राम-लक्ष्मण को भी साधारण राजकुमार ही समझ रहे हैं। श्री रामचंद्र जी बोले परशुराम जी लक्ष्मण तो नादान बालक है यदि यह आपका कुछ भी प्रभाव जानता, तो क्या यह बेसमझ आपकी बराबरी करता, आप तो गुरु समान हैं, उसे माफ कर दें। श्री रामचंद्रजी के वचन सुनकर वे कुछ ठंडे पड़े। इतने में लक्ष्मणजी कुछ कहकर फिर मुस्कुरा दिए। उनको हंसते देखकर परशुरामजी फिर उबल पड़े। श्री रामचंद्र ने कहा हे मुनि पुराना धनुष था, छूते ही टूट गया इस पर मैं किस कारण अभिमान करूं। एक छोटी सी भूल पर आप इतना गुस्सा मत करें। श्री रघुनाथ जी के वचन सुनकर परशुरामजी की बुद्धि के परदे खुल गए। वो समझ गए कि इस शिव धनुष को तोड़ने वाला कोई साधारण पुरुष नहीं हो सकता तब उनकी समझ में आया कि यह तो साक्षात प्रभु राम हैं। परशुरामजी बोले - प्रभु, क्षमा करना, मुझसे भूल हो गई, मैंने अनजाने में आपको बहुत से अनुचित वचन कहे। मुझे क्षमा कीजिए। मंचन को देख मौजूद लोगों ने प्रभु श्रीराम के जयकारे लगाए।

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