मूरतगंज के दो दिनी मेले में व्यापारियों ने डाला डेरा
संसू, मूरतगंज : मूरतगंज पशु व किसान दो दिवसीय भदई मेला शुरू हो गया है। इसमें दर्जनों व्यापारियों ने घोड़े, खच्चर व गर्दभ को बेचने के लिए आ गए हैं। पशु मेला को देखने व खरीदारी के लिए क्षेत्रीय व गैर जनपद के सैकड़ों लोग पहुंच गए हैं। पहले दिन पशुओं की बिक्री कम हुई है, लेकिन व्यापारियों को उम्मीद है कि रविवार को बिक्री अधिक होगी, जिससे वह हजारों कमाएंगे।
संसू, मूरतगंज : मूरतगंज पशु व किसान दो दिवसीय भदई मेला शुरू हो गया है। इसमें दर्जनों व्यापारियों ने घोड़े, खच्चर व गर्दभ को बेचने के लिए आ गए हैं। पशु मेला को देखने व खरीदारी के लिए क्षेत्रीय व गैर जनपद के सैकड़ों लोग पहुंच गए हैं। पहले दिन पशुओं की बिक्री कम हुई है, लेकिन व्यापारियों को उम्मीद है कि रविवार को बिक्री अधिक होगी, जिससे वह हजारों कमाएंगे।
वर्ष 1961 से मूरतगंज मेला परिसर में भदई के अवसर पर लगने वाला पशु मेला जनपद के साथ अन्य प्रदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। यहां पर मध्य प्रदेश, बिहार, जम्मू, जालौन, झारखंड, हरियाणा के व्यापारी घोड़ा, गर्दभ व खच्चर को बेचने व खरीदने के लिए व्यापारियों ने डेरा डाल दिया है। पशु मेला को क्षेत्रीय लोगों में भी खास उत्साह है। वह भी अपने मवेशी को बेचने के लिए मेले में पहुंच गए हैं। बाहर से आए व्यापारियों की रहने व खाने की व्यवस्था भी मेला प्रबंधक की ओर से की गई है। इससे व्यापारियों को काफी सहूलियत मिल रही है। बलिया के व्यापारी छरीलाल ने बताया कि पहले दिन मवेशियों की बिक्री कम हुई है। दूसरे दिन अधिक बिक्री होने की उम्मीद है। मशीनी यंत्रों से कम हुई जरूरत
पहले मशीनी यंत्र कम थे। लोग अधिकतर कार्य मवेशियों के सहारे ही पूरा करते थे। तांगा से लोग सफर करते थे। इसके अलावा ईंट भट्ठे में भी घोड़ा व गर्दभ का प्रयोग होता था, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। ई रिक्शा, बिक्रम व जुगाड़ गाड़ी से लोग अपने जरूरतों को पूरा करते हैं। इसकी वजह से घोड़ा व गर्दभ की बिक्री कम हो गई है।
मशीनरी युग में कम हुआ इनका उपयोग
कौशांबी के अब्दुल अहमद, जलील अहमद, अमरनाथ का कहना है कि पहले वह तांगा चलाकर अपने घर का पालन पोषण करते थे। हर साल अपने घोड़े को बेचकर नई नस्ल के घोड़ों को खरीदकर तांगा और घोड़ागाड़ी चलाते थे, लेकिन जबसे बिक्रम ऑटो चलने लगा तबसे से सवारियों में काफी कमी आई। करीब पांच साल पहले ईंट भट्ठों में खच्चरों द्वारा कच्चे ईंट ले जाया करता था लेकिन अब इसका प्रयोग कम हो गया है। छतरपुर से आए ननकू का कहना है कि साल पहले तक मैं यंहा से 8 से 10 खच्चर खरीद कर हर साल ले जाया करता था और ईंट भट्ठे में कच्चे ईंट ढोने के काम में लगाता था लेकिन अबलकड़ी की गाड़ी भट्ठों में चलने लगी तो इन खच्चरों की जरूरत नहीं पड़ती है। तीर्थ स्थलों में बंद हुआ प्रयोग
पहले जम्मू में माता वैष्णव के दर्शन के लिए जाने वाले भक्त इन खच्चरों पर सवार होते हैं। अब तो वहां पर लिफ्ट लग गई है। उसी के सहारे लोग मां के धाम में पहुंच जाते हैं। मशीनी यंत्र घोड़ा व गर्दभ के कार्य पूरा कर रही हैं। इससे मवेशियों की बिक्री में काफी असर पड़ा है।