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किसानों को दी जैविक खेती की जानकारी

जासं कौशांबी फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को तकनीकी खेती के लिए जागरूक करन

By JagranEdited By: Published: Thu, 30 Jan 2020 11:33 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jan 2020 11:33 PM (IST)
किसानों को दी जैविक खेती की जानकारी
किसानों को दी जैविक खेती की जानकारी

जासं, कौशांबी : फसल उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को तकनीकी खेती के लिए जागरूक करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें वैज्ञानिक किसानों को प्राकृतिक तरीके अपनाकर खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

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गुरुवार को सिराथू विकास खंड के बधेला उपरहार गांव में आयोजित कृषि गोष्ठी में मृदा वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह ने कहा कि किसान खेतों में उवर्रक का अधिक प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में मिट्टी के प्राकृतिक तत्व नष्ट होते जा रहे हैं। कहा कि उर्वरकों के अधिक प्रयोग से जहां धरती बंजर होने के कगार पर पहुंच रही है। वहीं फसल में पोषक तत्वों की कमी हो रही है। ऐसे में अब किसानों को प्राकृतिक तरीके से खेती करनी चाहिए। जीरो बजट की इस खेती से लागत में कमी आने के साथ फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से लगातार पांच दिनों से अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें किसानों को गोबर व गोमूत्र से कीटनाशक व मोटे अनाज उत्पादन के लिए प्रेरित किया जा रहा है। गुरुवार को कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा सिराथू ब्लाक के बधेला उपरहार के अलावा उलाचूपुर, सिपाह, शहजादपुर, रामपुर, हिसामपुर परसखी, तरसौरा, बढ़नावा, कड़ा गांव में एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर ग्रामीणों को प्राकृतिक खेती के लाभ बताए गए।

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क्या है जीरो बजट प्राकृतिक खेती

-कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज सिंह ने बताया कि जीरो बजट प्राकृतिक खेती गाय के गोबर व गो-मूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर व गो-मूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। गोवंश के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घन जीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक या दो बार खेत में छिड़काव कर सकते हैं। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने में बाजार से किसी प्रकार की खाद व कीटनाशक डालने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिचाई के लिए पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है।

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पोषक तत्वों की होती है भरमार

-प्राकृतिक विधि से खेती करने के बाद उत्पादित होने वाली फसलों में पोषक तत्वों की भरमार रहती है। कृषि वैज्ञानिक डा. मनोज के मुताबिक किसी प्रकार के रासायनिक पदार्थ का प्रयोग न होने से यह पूरी तरह से केमिकल मुक्त होती है। बिना किसी केमिकल के फसल की गुणवत्ता बेहतर रहती है।


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